कान्हा पिचकारी मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय - KANHA PICHKARI MAT MAAR


शब्दार्थ :  कुलवंसिन = कुलीन, औगुन = अवगुण,  गारो = अत्यन्त
कान्हा पिचकारी मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय |

  चूनर नई हमारी प्यारे 
       हे मनमोहन बंसी वारे
             इतनी सुन ले नन्द-दुलारे
पूछेगी वह सास हमारी, कहाँ से लाई भिजोय || 
कान्हा पिचकारी -----

सबको ढंग भयो मतवारो
     दुखदाई है फागुन वारो
             कुलवंसिन को औगुन गारो 
राह मेरी न रोक कान्हा मैं समझाऊँ तोय || 
कान्हा पिचकारी ------

तान दई रंग की पिचकारी
       हँस-हँस के रसिया बनवारी
             भीज गईं सबरी ब्रजनारी
राधा ने हरि का पीताम्बर खींचा मद में खोय ||
 कान्हा पिचकारी ---------


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें