आज पर्दा हटा दो, कन्हैया कुंवर,
दोहा- छुपाए किस लिए हो तुम रूखे रुख़सार पर्दे में
नही पीता है चंचल शरबते दीदार पर्दे में
बहुत अब हो चुका साज़ ओर सृंगार पर्दे में
रहोगे कब तलक सांवरे सरकार पर्दे में
आज पर्दा हटा दो, कन्हैया कुंवर,
मैं तुम्हे देख लूँ, तुम मुझे देख लो,
देखते देखते,उम्र जाए गुजर,
मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।
मोर के पंख वाला,पहन लो मुकुट,
थाम लो हाथों में,रस भरी बांसुरी,
आज जलवा दिखाते,रहो रात भर,
मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।
ये शरद पूर्णिमा की,चटक चांदनी,
और बंसी की मीठी,मधुर रागनी,
सारी दुनिया से,हो जाऊं मैं बेखबर,
मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।
प्यारे जु प्यारी जु का भी,यूँ साथ हो,
उससे बढ़कर भला,कोई क्या बात हो,
धन्य हो जाऊं,जोड़ी युगल देखकर,
मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।
मैं नहीं चाहता,लोक की सम्पदा,
मैं नहीं चाहता,मुझको ध्रुव पद मिले,
आज चंचल मिले बस,नज़र से नज़र,
मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।
आज पर्दा हटा दो,
कन्हैया कुंवर,मैं तुम्हे देख लूँ,
तुम मुझे देख लो,
देखते देखते,उम्र जाए गुजर,
मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।