कान्हा पिचकारी मत मारे, मेरे घर सास लड़ेगी रे- KANHA PICHKARI MAT MARE

कान्हा पिचकारी मत मारे


यह गोपी पहले वाली से अधिक चतुर सुजान दिखाई देती है। कान्हा पिचकारी की धार मारें, उससे पहले ही चिरौरी कर रही है। उस समय के समाज का क्या सही चित्रण कर रही है। सास गालियाँ तो देगी ही (जब वह भीगी चुनरी और टूटी माला लेकर घर पहुँचेगी), रोटी भी नहीं देगी।  ननद बिजुलिया पिया से एक की चारऔर चार की सोलह लगाएगी।

कान्हा पिचकारी मत मारे, मेरे घर सास लड़ेगी रे
सास लड़ेगी रे, मेरे घर नन्द लड़ेगी रे || कान्हा पिचकारी ------

सास डुकरिया मेरी बड़ी खोटी, गारी दे, ना देगी रोटी
द्योरानी-जिठानी मेरी जनम की दुश्मन, सुबह करेंगी रे || कान्हा पिचकारी ------

जा-जा झूठ पिया से बोले, एक की चार, चार की सोलह
ननद बिजुलिया जाय पिया के कान भरेगी रे || कान्हा पिचकारी ------

कुछ नहीं बिगड़े श्याम तुम्हारा, मुझे होएगा देश-निकाला
ब्रज की नारी दे ताली, मेरी हँसी करेंगी रे || कान्हा पिचकारी ------

हा-हा खाऊँ पडूँ तोरी पइयाँ, डालो श्याम मती गलबहियाँ
नाजुक मोतिन की माला मेरी टूट पड़ेगी रे || कान्हा पिचकारी ------

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