फागुन के दिन चार रे, होली खेल मना रे,
फागुन के दिन चार।
बिन करताल पखावज बाजे, अनहद की टंकार रे
बिन सुर राग छतीसों गावे, रोम-रोम झंकार रे
होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥
शील-संतोष की केसर घोरी, प्रेम-प्रीत पिचकार रे
उड़त गुलाल लाल भयो अम्बर, बरसत रंग अपार रे
होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥
घूँघट के पट खोल दिए हैं, लोक लाज सब ड़ार रे
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, चरण-कमल बलिहार रे
होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥
बिन करताल पखावज बाजे, अनहद की टंकार रे
बिन सुर राग छतीसों गावे, रोम-रोम झंकार रे
होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥
शील-संतोष की केसर घोरी, प्रेम-प्रीत पिचकार रे
उड़त गुलाल लाल भयो अम्बर, बरसत रंग अपार रे
होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥
घूँघट के पट खोल दिए हैं, लोक लाज सब ड़ार रे
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, चरण-कमल बलिहार रे
होली खेल मना रे, फागुन के दिन चार ॥
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