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RACHA HE SHRISTI KO // रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है

इसी धरा से शरीर पाए,

इसी धरा में फिर सब समाए,
है सत्य नियम यही धरा का,
है सत्य नियम यही धरा का,
एक आ रहे है एक जा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

 
जिन्होने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
वही तो वापस बुला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

बैठे है जो धान की बालियो में,
समाए मेहंदी की लालियो में,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
गुल रंग बिरंगे खिला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥ 

 

RAM KAHNE KA MAJA JISKI - राम कहने का मजा, जिसकी जुबान पर आ गया,

राम कहने का मजा, जिसकी जुबान पर आ गया,
मुक्त जीवन हो गया, चारो पदार्थ पा गया ॥

लुटा मज़ा प्रह्लाद ने, इस राम के प्रताप से,
नरसिंह हो दर्शन दिए, त्रिलोक में यश छा गया।।
राम कहने का मजा......

जाती की थी भीलनी, उस प्रेम से सुमिरन किया,
घर आकर परमात्मा, उस हाथ के फ़ल खा गया।।
राम कहने का मजा......

कलिकाल के जो भक्त है, उनका भी रुतबा है बड़ा,
नरसिंह की हुंडी द्वारिका में, सांवरा सिक्रा गया।।
राम कहने का मजा......

क्या भक्ति निर्मल छा रही, देखकर संसार में,
अब्र के मानिंद तुलसी, दास यशवर छा गया।।
राम कहने का मजा......

UTRA SAGAR ME JO USKO MOTI MILA - उतरा सागर में जो, उसको मोती मिले खोज की जिसने मेरी, मुझे पा गया

 उतरा सागर में उसको ही मोती मिला।
खोज जिसने भी की मैं उसी को मिला।।

उतरा सागर में जो, उसको मोती मिले
खोज की जिसने मेरी, मुझे पा गया

खोज की जिसने मेरी, मुझे पा गया

तूने मूरत  कहा मैं मुरति वान था
तूने पत्थर कहा मैं भी पाषाण  था

ये तो तेरे ही विश्वाश की बात है
ये तो तेरे ही विश्वाश की बात है

धन्ना जात बुलाया मैं झट आ गया
धन्ना जात बुलाया मैं झट आ गया

उतरा सागर में जो, उसको मोती मिले
खोज की जिसने मेरी, मुझे पा गया

ये तो सच है की तूने बुलाया नही
बिन बुलाए कभी मैं भी आया नही

तूने प्रेम से मुझको खिलाया नही
तूने प्रेम से मुझको खिलाया नही
मैं विदुरानी के छिलके तक खा गया
तूने प्रेम से मुझको खिलाया नही

उतरा सागर में जो, उसको मोती मिले
खोज की जिसने मेरी, मुझे पा गया

प्रेम तो प्रेम  है सीधी सी बात है
प्रेम तो प्रेम है सीधी सी बात है
प्रेम कब पूछता  है की क्या जात है
चाहे हिंदू हो चाहे कोई मुसलमान
मुझको रस्खान सलवार पहना गया

खोज की जिसने मेरी मुझे पा गया
नुकता ची संका वाडी को मैना मिला
मुझको तो सबरी का भोलापन  भा गया

उतरा सागर में जो उसको मोती मिले
उतरा सागर में जो उसको मोती मिले

 

 

 



1. तूने मंदिर में ढूँढा मैं पाषाण था,
तूने मस्जिद में ढूँढा मैं आज़ान था।
देख भीतर हूँ तेरे तेरे पास था,
तूने देखा नहीं मैं दिखा भी नहीं।।

2. देह मिट्टी की मिट्टी में मिल जाएगी,
शान तेरी यह सारी ही घुल जाएगी।।
यूँ न अपने जीवन को तू गंवा।
तू टिकाए नहीं मन टिके भी नहीं।।

3. तूने चाहा नहीं मैं मिला भी नहीं।
तूने ढूँढा नहीं मैं दिखा भी नहीं।।
मैं वो मेहमान हूँ बिन बुलाए हुए।
जो कहीं न गया जो कभी न गया।।

उतरा सागर में जो उसको मोती मिले
खोज की जिसने मेरी मुझे पा गया

उतरा सागर में जो उसको मोती मिले
खोज की जिसने मेरी मुझे पा गया

नुकता ची संका वाडी को मैना मिला
मुझको तो सबरी का भोला पं भा गया

उतरा सागर में जो उसको मोती मिले
खोज की जिसने मेरी मुझे पा गया

तूने मूर्ति कहा मैं मूर्ती वान था
तूने पत्थर कहा मैं भी पाशन था

ये तो तेरे ही विश्वाश की बात है
ये तो तेरे ही विश्वाश की बात है

धन्ना जात बुलाया मैं झट आ गया
धन्ना जात बुलाया मैं झट आ गया

उतरा सागर में जो उसको मोती मिले
उतरा सागर में जो उसको मोती मिले
खोज की जिसने मेरी मुझे पा गया

ये कहना ग़लत है की उसका पता नही है
ढूँढने की हद तक कोई धुनता नही

खोज की जिसने मेरी मुझे पा गया
नुकता ची संका वाडी को मैना मिला
मुझको तो सबरी का भोला पं भा गया

ये तो सच है की तूने बुलाया नही
बिन बुलाए कभी मैं भी आया नही

तूने प्रेम से मुझको खिलाया नही
तूने प्रेम से मुझको खिलाया नही
मैं विदुरानी के छिलके तक खा गया
तूने प्रेम से मुझको खिलाया नही

खोज की जिसने मेरी मुझे पा गया
नुकता ची संका वाडी को मैना मिला
मुझको तो सबरी का भोला पं भा गया

प्यार प्यार तो प्यार है सीधी सी बात है
प्यार प्यार तो प्यार है सीधी सी बात है
प्रेम कब पूचहता है की क्या जात है
चाहे हिंदू हो चाहे कोई मुसलमान
मुझको रस्खान सलवार पहना गया

खोज की जिसने मेरी मुझे पा गया
नुकता ची संका वाडी को मैना मिला
मुझको तो सबरी का भोला पं भा गया

उतरा सागर में जो उसको मोती मिले
उतरा सागर में जो उसको मोती मिले

गोविंद गोपाल

यार की मर्ज़ी के आगे
यार का दूं भरके देख
तर्क से मिलता नही
अर्ज़ करके ही तू देख

बे इरादा मरने वेल
बा इरादा मरके देख
सारे तमाशे कर चुका
ये भी तमाशा करके देख
जिंदगी बन जाएगी
तेरे लिए आबे हयात
सब को अपना करके देखा
उनको अपना करके देखा
उनको बना के देख

यार जब तेरा है तो
सारी है तेरी कयनात
जिंदगी पे मरने वेल
जिंदगी में मरके देख

यार की मर्ज़ी के आगे
यार का दूं भरके देख
तर्क से मिलता नही
अर्ज़ करके ही तू देख
अर्ज़ करके ही तू देख

TERI MEHRBANI KA HAI BOJH ITNA - तेरी मेहरबानी का है बोज इतना,

 तेरी मेहरबानी का है बोज इतना,
की मैं तो उठाने के काबिल नही हूँ ।

मैं आ तो गया हूँ मगर जानता हूँ,
तेरे दर पे आने के काबिल नही हूँ ॥

ज़माने की चाहत में खुद को भुलाया,
तेरा नाम हरगिज़ जुबा पे ना लाया ।
गुन्हेगार हूँ मैं खतावार हूँ मैं,
तुझे मुहं दिखने के काबिल नही हूँ ॥

तुम्ही ने अदा की मुझे जिंदगानी,
मगर तेरी महिमा मैंने ना जानी ।
कर्जदार तेरी दया का हूँ इतना,
कि कर्जा चुकाने के काबिल नही हूँ ॥

ये माना कि दाता है तू कुल जहान का,
मगर झोली आगे फैला दूँ मैं कैसे ।
जो पहले दिया था वो कुछ कम नही है,
उसी को निभाने के काबिल नही हूँ ॥

तमन्ना यही है की सर को झुका दू,
तेरा दीद दिल में मैं एक बार पालू ।
सिवा दिल के टुकड़ो के ऐ मेरे दाता,
कुछ भी चडाने के काबिल नही हूँ



यदि नाथ का नाम daya nidhi he

 यदि नाथ का नाम दयानिधि है

तो दया भी करेंगे कभी ना कभी
दुःख हारी हरी दुखियारी जन की
दुःख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी
दुःख हारी हरी दुखियारी जन की 
दुःख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी
यदि नाथ का नाम दयानिधि है 

जहाँ वेद निषाद का आदर है
जहाँ जाद अजनिल का घर है
वही भेष बदल कर उसी घर में
हम जा ठहेरेंगे कभी न कभी
यदि नाथ का नाम दयानिधि है
तो दया भी करेंगे कभी ना कभी
दुःख हारी हरी दुखियारी जन की 
दुःख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी
यदि नाथ का नाम दयानिधि है
तो दया भी करेंगे कभी ना कभी
दुःख हारी हरी दुखियारी जन की
दुःख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी
यदि नाथ का नाम दयानिधि है 

जिस अंग की शोभा सुहावनी है
जिस श्यामल रंग में मोहिनी है
उसी रूप सुधा से स्नेहियो के
दृग प्याल भरेंगे कभी ना कभी
यदि नाथ का नाम दयानिधि है
तो दया भी करेंगे कभी ना कभी
दुःख हारी हरी दुखियारी जन की 
दुःख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी
यदि नाथ का नाम दयानिधि है
तो दया भी करेंगे कभी ना कभी
दुःख हारी हरी दुखियारी जन की
दुःख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी 
यदि नाथ का नाम दयानिधि है 

हम द्वार पर आपके आअ ज खड़े
मुद्दत से इसी जिद पर अड़े
अब्सिंधू तारे जो बड़े से बड़े
तो बिंदु तरे कभी ना कभी
यदि नाथ का नाम दयानिधि है
तो दया भी करेंगे कभी ना कभी
दुःख हारी हरी दुखियारी जन की 
दुःख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी
यदि नाथ का नाम दयानिधि है
तो दया भी करेंगे कभी ना कभी
दुःख हारी हरी दुखियारी जन की
दुःख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी 
यदि नाथ का नाम दयानिधि है

teri bigdi banaye ga vishwas jaruri तेरी बिगड़ी बनाएगा विश्वास जरूरी है

तेरा साथ निभाएगा विश्वास जरूरी है,            
तेरी बिगड़ी बनाएगा विश्वास जरूरी है,
तेरा साथ निभाएगा विश्वास जरूरी है॥

जिस दिन भी तू सच्चे मन से इसका हो जाएगा,
उस दिन से तू हर पल इसको अपने संग पाएगा,
तेरे संग संग चलेगा ये आभास जरूरी है,
तेरा साथ निभाएगा विश्वास जरूरी है॥

होके मगन तू जब भी इसके भजनों को गाएगा,
गर हो भरोसा सच्चा तेरे सामने आ जाएगा,
प्यास नैनो की बुझाएगा पर प्यास जरूरी है,
तेरा साथ निभाएगा विश्वास जरूरी है॥

श्याम नाम की मस्ती में तू अरविंद अब तो खो जा,
छोड़के चिंता और फिकर तु उसकी गोद में सो जा,
हाथ सिर पर फिर आएगा एहसास जरूरी हैं,
तेरा साथ निभाएगा विश्वास जरूरी है॥

न जाने कौन से गुण पर दया निधि

 प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर प्रभु को नियम बदलते देखा .

अपना मान भले टल जाये भक्त मान नहीं टलते देखा ..

ना जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही सद् ग्रंथ कहते हैं, यही हरि भक्त गाते हैं ॥

नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप सुयोधन का ।
विदुर के घर पहुँचकर भोग छिलकों का लगाते हैं ॥

न आये मधुपुरी से गोपियों की दु:ख व्यथा सुनकर।
द्रुपदजा की दशा पर, द्वारका से दौड़े आते हैं ॥

न रोये बन गमन में श्री पिता की वेदनाओं पर ।
उठा कर गीध को निज गोद में आँसु बहाते हैं ॥

कि जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही सद् ग्रंथ कहते हैं, यही हरि भक्त गाते हैं ॥

नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप दुर्योधन का ।
विदुर के घर पहुँचकर, भोग छिलकों का लगाते हैं ॥

न आये मधुपुरी से गोपियों की, दु: ख कथा सुनकर ।
द्रुपदजा की दशा पर, द्वारका से दौड़े आते हैं ॥

न रोये बन गमन में , श्री पिता की वेदनाओं पर ।
उठा कर गीध को निज गोद में , आँसु बहाते हैं ॥

कठिनता से चरण धोकर मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।
वो चरणोदक स्वयं केवट के घर जाकर लुटाते हैं ॥

TERA DAR MIL GAYA MUJKO - तेरा दर मिल गया मुझको सहारा हो तो ऐसा हो

 तेरा दर मिल गया मुझको सहारा हो तो ऐसा हो

मुझे रास आ गया है,तेरे दर पे सर झुकाना,
तुझे मिल गया पुजारी,मुझे मिल गया ठिकाना।
मुझे कौन जानता था,तेरी बंदगी से पहले,
तेरी याद ने बना दी,मेरी ज़िन्दगी फसाना ॥

*    तेरा दर मिल गया मुझको सहारा हो तो ऐसा हो,
      तेरे टुकड़ो पर पलता हु,
      गुजारा हो तो ऐसा हो,

*    किसी को ज़माने की दौलत मिली है,
      किसकी को जहान की हुकूमत मिली है,
      मैं अपने मुकद्दर पर कुर्बान जाऊं,
     मुझे अपने कान्हा की चोखट मिली है,


*    क्यों कहीं जाए किस्मत आजमाने के लिए,
     मेरे कान्हा है मेरी बिगड़ी बनाने के लिए,
     तेरा दर मिल गया मुझकों,सहारा हो तो ऐसा हो,
     तेरे टुकड़ो पर पलता हूँ,
     गुजारा हो तो ऐसा हो ॥


*    जमाने में नही देखा,कोई सरकार के जैसा,
      हमें ये नाज है रहबर,हमारा हो ऐसा हो,
      तेरा दर मिल गया मुझकों,सहारा हो तो ऐसा हो,
      तेरे टुकड़ो पर पलता हूँ,
      गुजारा हो तो ऐसा हो ॥

*    मरुँ मैं तेरी चोखट पर,मेरे कान्हा मेरे दिलबर,
      रहे तू रूबरू मेरे,नजारा हो तो ऐसा हो,
      तेरा दर मिल गया मुझकों,सहारा हो तो ऐसा हो,
      तेरे टुकड़ो पर पलता हूँ,गुजारा हो तो ऐसा हो ॥

*    मेरी सांसो में बहती है,तेरे ही नाम की खुशबु,
      महक जाए हर एक मंजर,जिकर भी तुम्हारा हो,
      तेरा दर मिल गया मुझकों,सहारा हो तो ऐसा हो,
      तेरे टुकड़ो पर पलता हूँ,
      गुजारा हो तो ऐसा हो ॥


 

KARO RE MAN CHALNE KI ... करो रे मन चलने की तैयारी

करो रे मन चलने की तैयारी,

दोहा 

जाते नहीं है कोई,

दुनिया से दूर चल के,

आ मिलते हैं सब यहीं पर,

कपड़े बदल बदल के।

करो रे मन चलने की तैयारी,

चलने की तैयारी।।

आए हो तो जाना होगा -2

शास्त्र नियम निभाना होगा - 2

सूरज नित प्रद करता रहता.....ढलने की तैयारी...

करों रे मन चलने की तैयारी।।

कितनों के अरमान अधूरे-2

जाने कौन करेगा पूरे-2

काल बली संकल्प कर चुका...छलने की तैयारी

करों रे मन चलने की तैयारी।।

हमसे कोई तंग ना होगा-2

महफिल होगी रंग ना होगा-2

गंगा के तट धू-धू कर.......जलने की तैयारी

करों रे मन चलने की तैयारी,

चलने की तैयारी।।

mati ka khilo na mati me mil माटी का खिलौना माटी में मिल जाएगा

 

मान मेरा कहना, नहीं तो पछतायेगा।
माटी का खिलौना माटी में मिल जाएगा

मात पिता तेरा,कुटुंब कबीला।

विपदा पड़े पर,कोई ना किसी का।

एक दिन हंसा,अकेला उड़ जायेगा।

मिट्टी का खिलौना, मिट्टी में मिल जायेगा।
                                                                    मान मेरा.......

बेटा बेटा क्या करता है।बेटा तेरा एक दिन,
पडोसी बन जायेगा।

माटी का खिलौना माटी में मिल जाएगा
                                                                  मान मेरा........

बेटी बेटी क्या करता है। बेटी तेरी एक दिन,
जवाई ले जायेगा।

माटी का खिलौना माटी में मिल जाएगा
                                                            मान मेरा.........

पडोसी पडोसी क्या करता है। पडोसी तो एक दिन,
जला कर चला जायेगा।
माटी का खिलौना माटी में मिल जाएगा
                                                   मान मेरा..........

धन दौलत तेरे, कोठी रे बंगले।
इन से ममता,छोड़ दे पगले।
सब कुछ तेरा,यही रह जायेगा।
माटी का खिलौना माटी में मिल जाएगा
                                                        मान मेरा...........

मनुस्ये जनम तूने, पाया रे बन्दे।
करम ना कर तू ,जग में गंदे।
जैसा बीज बोया तू ,वैसा फल पायेगा।
माटी का खिलौना माटी में मिल जाएगा
                                                मान मेरा...........

बूटी हरि के नाम की buti hari ke nam ki

 बूटी हरि के नाम की सबको पिलाके पी ।
चितवन को चित के चोर से चित को चुराके पी ॥

         अंतरा

पीने की तमन्ना है तो खुद मिटाके पी ।
ब्रम्हा ने चारो वेदों की पुस्तक बनाके पी ॥ बूटी ॥

शंकर ने अपने शीश पे गंगा चढ़ाके पी।
ठोकर से श्री राम ने पत्थर जगाके पी ।
बजरंग बली ने रावण की लंका जलाके पी ॥ बूटी ॥

पृथ्वी का भार शेष के सिर पर उठाके पी ।
बालि ने चोट बाण की सीने पर खाके पी ॥ बूटी ॥

अर्जुन ने ज्ञान गीता का अमृत बनाके पी ।
श्री जी बाबा ने भक्तों को भागवत सुनाके पी ॥ बूटी ॥  

संतो ने ज्ञान सागर को गागर बनाके पी ।
भक्तों ने गुरु चरण रज मस्तक लगाके पी ॥ बूटी ॥

यह हर्ष हवस की मंडी है

कोई आए कोई जाए ये तमाशा क्या है
 मैं तो समझा नहीं यह महफिल ए दुनिया क्या है

यह हर्ष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं 

कागज के कड़क के नोटों पर 

दुनिया के चमन बिक जाते हैं
ये हर्ष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
हर चीज यहां पर बिकती है
हर चीज का सौदा होता है
इज्जत भी बेची जाती है
ईमान खरीदे जाते हैं
यह हरष हबस की मंडी है
 अनमोल रतन बिक जाते हैं
 बिकते हैं मुल्लों के सजदे
पंडित के भजन बिक जाते हैं 

बिकती है दुल्हन की रातें
मुर्दों के कफन बिक जाते हैं
यह हरष हवस की मंडी है  
अनमोल रतन बिक जाते हैं
यह हर्ष हवस की मंडी है
 अनमोल रतन बिक जाते हैं 

कागज के कड़क के नोटों पर 

दुनिया के चमन बिक जाते हैं 

ये इश्क़ हवस की मंडी है , अनमोल रतन बिक जाते है ,
मुल्लाओ के सजदे बिकते है ,पंडित के भजन बिक जाते है

मंदिर भी यहाँ पर बिकता है , मस्जिद भी ख़रीदी जाती है चाँदी के खनकते सिक्कों पर ,शायर के शकुन बिक जाते है

बिकती है सुहाग की रात यहाँ , दुल्हन के चलन बिक जाते है
दुनिया के चलन का ज़िक्र ही क्या , मुर्दों के कफ़न बिक जाते है।