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AAJ PARDA HATA DO आज पर्दा हटा दो, कन्हैया कुंवर,

आज पर्दा हटा दो, कन्हैया कुंवर,

 दोहा- छुपाए किस लिए हो तुम रूखे रुख़सार पर्दे में

नही पीता है चंचल शरबते दीदार पर्दे में 

बहुत अब हो चुका साज़ ओर सृंगार पर्दे में

रहोगे कब तलक सांवरे सरकार पर्दे में


आज पर्दा हटा दो, कन्हैया कुंवर,

मैं तुम्हे देख लूँ, तुम मुझे देख लो,

देखते देखते,उम्र जाए गुजर,

मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।


मोर के पंख वाला,पहन लो मुकुट,

थाम लो हाथों में,रस भरी बांसुरी,

आज जलवा दिखाते,रहो रात भर,

मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।


ये शरद पूर्णिमा की,चटक चांदनी,

और बंसी की मीठी,मधुर रागनी,

सारी दुनिया से,हो जाऊं मैं बेखबर,

मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।


प्यारे जु प्यारी जु का भी,यूँ साथ हो,

उससे बढ़कर भला,कोई क्या बात हो,

धन्य हो जाऊं,जोड़ी युगल देखकर,

मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।


मैं नहीं चाहता,लोक की सम्पदा,

मैं नहीं चाहता,मुझको ध्रुव पद मिले,

आज चंचल मिले बस,नज़र से नज़र,

मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।। 


आज पर्दा हटा दो, 

कन्हैया कुंवर,मैं तुम्हे देख लूँ,

तुम मुझे देख लो,

देखते देखते,उम्र जाए गुजर,

मैं तुम्हे देख लूँ,तुम मुझे देख लो।।



umrbhar barsana me rahu //वृंदावन मे बस लिजीये //दर्दे दिल की दवा दीजिए // उम्र भर बरसाना


दर्दे दिल दवा दीजिये,

हाय मेरा दिल मेरा दिल दिल दिल 

श्याम मेरा दिल मेरा दिल दिल दिल,

दर्दे दिल मेरे बाबा की दवा दीजिये,

कम से कम मेरे साई मुस्कुरा दीजिये 

उम्र भर बरसाना मैं रहूँ 

कोई ऐसी सजा दीजिए 

मेरा दिल आपका घर हुआ मेरे बाबा जी,

 आते आते जाते रहा कीजिये,

ज़ख़्म दुनिया ने मुझको दिए मेरे बाबा,

आप मरहम लगा दीजिये ,

क्या सही क्या गलत, क्या पता, मैं क्या जानू,

आप ही फैसला कीजिये,

आंधियो में जो न भुझ  सके मेरे बाबा,

ऐसा दीपक जला दीजिये,

एक समंदर ये कहने लगा बाबा से,

मुझको मीठा बना दीजिये,

एक होकर रहे सारे बाबा 

ऐसा भारत बना दीजिए ॥ 

कुछ भी  देना हो मारे मालिक 

मेरे हक मे दुआ कीजिए 

आप के नाम से नाम हो मेरे प्यारे 

ऐसी  शोहरत ''हम'' को अदा कीजिये,

बेस्ट शायरी best shayri



    बेस्ट  शायरी 

आंखें तो प्यार में दिल की जुबान होती हैं,
सच्ची चाहत तो सदा बे जुबान होती है,
प्यार में दर्द भी मिले तो मत घबराना,
सुना है दर्द से चाहत और जवान होती है।

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफिर ने समंदर नहीं देखा,
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला,
मैं मोम हूँ उसने मुझे छू कर नहीं देखा।

जोड़कर रिश्ता मोहब्बत का किसी से,
उसे तन्हा अकेले छोड़ा नहीं जाता,
कांच से होते है यह दिल के रिश्ते,
इन दिल के रिश्तों को यु ही तोड़ा नहीं जाता।

मोहब्बत कि ज़ंज़ीर से डर लगता है,
कुछ अपनी तकलीफ से डर लगता है,
जो मुझे तुजसे जुदा करते है,
हाथ कि वो लकीरो से डर लगता है।

प्यास दिल की बुझाने वो कभी आया भी नहीं,
कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं,
बेरुखी इससे बड़ी और भला क्या होगी,
एक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नही।

हमारी दास्तां उसे कहां कबूल थी,
मेरी वफायें उसके लिये फिजूल थीं,
कोई आस नहीं लेकिन कोई इतना बतादो,
मैंने चाहा उसे क्या ये मेरी भूल थी।

दर्द में इस दिल को तड़पते देखा,
अपने सामने हर रिश्ते को बिखरते देखा,
कितने प्यार से सजाये ख्वाबों की दुनिया,
उसी आँखों से अपने उजड़ते देखा। 


पहले कभी ये यादें ये तनहाई थी,
कभी दिल पे मदहोशी छायी ना थी,
जाने क्या असर कर गयीं उसकी बातें,
वरना इस तरह कभी याद किसी की आयी ना थी।

रात की तन्हाई में उसको आवाज़ दिया करते हैं,
रात में सितारों से उनका ज़िक्र किया करते हैं,
वो आयें या ना आयें हमारे ख्वाबों में,
हम तो बस उन्ही का इंतज़ार किया करते हैं।

प्यार सभी को जीना सिखा देता है,
वफ़ा के नाम पे मरना सिखा देता है,
प्यार नहीं किया तो करके देख लो यार,
ज़ालिम हर दर्द सहना सिखा देता है।

जान से ज्यादा प्यार उन्हें किया करते थे,
याद उन्हें दिन रात किया करते थे,
अब उन राहों से गुज़रा नहीं जाता,
जहाँ बैठकर उनका इंतजार किया करते थे।

जिंदगी कितनी खूबसूरत होती,
अगर तेरी चाहत अधूरी ना होती,
कुछ उलझने कुछ मजबूरियां होती बेशक,
मगर प्यार में इतनी दूरियां ना होती।

 



अगर तुम बेनक़ाब आओ agar tum benqab aao lyric

 अगर तुम बेनक़ाब आओ
क़यामत की घड़ी होगी
अगर तुम बेनकाब आओ
क़यामत की घड़ी होगी।

तुम्हे अपनी पड़ी होगी
हमें अपनी पड़ी होगी
अगर तुम बेनक़ाब आओ
क़यामत की घड़ी होगी।

सरे महफ़िल कभी आकर
जो तुम जलवे बिखेरोगे
निगाहों की छुरी जब तुम
हुमारे दिल पे फरोगे।

ना पूछो हाल क्या होगा
ना पूछो हाल क्या होगा
लबों पे जान खड़ी होगी।

अगर तुम बेनक़ाब आओ
क़यामत की घड़ी होगी।

मोहब्बत से मोहरत से
तुम्हे रब ने बनाया है
तेरी नाज़ुक जवानी को
नज़ाकत से सजाया है।

बड़ी आबिद तस्सली से
बड़ी आबिद तस्सली से
तेरी मूरत घड़ी होगी।

अगर तुम बेनक़ाब आओ
क़यामत की घड़ी होगी।

चमकते चाँद चेहरे से
जो तुम ज़ूलफें हटाओगे
सामने बैठ कर मेरे
अगर तुम मुस्कुराओगे।

करेगा दिल तुम्हे सजदे
करेगा दिल तुम्हे सजदे
नज़र तुमसे लड़ी होगी।

अगर तुम बेनक़ाब आओ
क़यामत की घड़ी होगी
अगर तुम बेनक़ाब आओ
क़यामत की घड़ी होगी।



GANG KE DOHE कवि गंग के दोहे

 

वृद्धावस्था में हरी नाम (कवित)

बाँभन को जनम जनेऊ मेलि जानी बूझि, जीभ ही बिगारिबे कौ जाच्यो जन जन में।
कहै कवि गंग कहा कीजै जौ न जाने जात, बाउ ग्यान देखौ जु बुढ़ाई ध्यान धन में।
काम क्रोध लोभ मोह तिनहि के बस परयो, तिहुँ पुर नायक बिसारियो तिहुँ पन में।
कालिमा के चलत कलापति ज्यों चेत होत, केस आए सेत ह्वै न केसौ आए मन में।।

 

बुद्धि विवेक विचार बढ़ै (सवैया)

ज्ञान बड़े गुणवान की संगत ध्यान बड़े तपसी संग किन्हा।
मोह बढ़े परिवार की संगत काम बढे तिरिया संग किन्हा।
क्रोध बढे नर मूढ़ की संगत लोभ बढे धन में चित् दिन्हा।
बुद्धि विवेक विचार बढे कवि गंग कहे सजन संग किन्हा।।

शब्दार्थ:-
यह इस संसार का सार्वभौमिक परम सत्य है कि व्यक्ति जैसी संगत में रहता है वह वैसा ही बन जाता है संस्कारी व्यक्ति के संग में रहने पर हमारे अंदर भी शुभ संस्कारों का समावेश होने लगता है अगर ज्ञान चाहिए तो गुणवान व्यक्तियों का संग करो ध्यान एकाग्रता चाहिए तो तपस्वी व्यक्ति का संग करो ज्यादा परिवार के बीच रहने पर मोह की वृद्धि होती है स्त्री के नजदीक ज्यादा रहने से काम में वृद्धि होती है जैसे ज्ञानहीन मुढ़ी व्यक्ति का संग करने पर क्रोध में वृद्धि होती है धन का चिंतन ज्यादा करने पर लोभ में वृद्धि होती है बुद्धि विवेक एवं सद्गुणों की वृद्धि और शुद्ध विचार कवि गंग कहते हैं कि सज्जन व्यक्ति के संग से बढ़ते हैं।

सांसारिक संबंध की क्षणभंगुरता(सवैया)

रांक ऋषीसुर पामर पंडित चक्रवती चतुरंग चमू के।
गंग कहै पसु पंछी जु संख मुए कुलि कान-फनिन्द के फुँके।
काम बँध्यो कमला के कलोलनी भूलत है क़त कूर कहूँ के।
को सुत नारि हितु दिन चारि के बारि के बूंद बयारि के झुंके।।

काहू के साथ चली न हली अजहुँ किन चेति दई के सँवारे।
जा दसकन्ध के बन्दी हुते सुर तेहु परे रण माहि उघारे।
लंक पराई भई कवि गंग दसो दिशि बैठि रहे रखवारे।
रावन के मुख नावन को सु रति भरि को बिनती करि हारे।।

मित्रता का (दोहा एवं)

पिता बंधु परिजन सजन गंग जगत यह खेल।
ऊंच-नीच अपनो अपर जो मन मिले तो मेल।।

(सवैया)

हंस तो चाहत मानसरोवर मानसरोवर है रंग राता।
निर की बूंद पपीहा चाहत चंद्र चकोर के नेह का नाता।
प्रीतम प्रीत लगाई चले कवि गंग कहे जग जीवन दाता।
मेरे तो चित में मित बसे अरु मित्र के चित्र की जाने विधाता।।

प्रीत करो नित जान सुजान सो और हैवान सो प्रीति कहां।
छह मास सुवा तरु सेमल सेह्यों सु देश तज्यो परदेश रहा।
फल टूटी पड़ा पंछी राज उड़े जब चोच दई तो कपास लहा।
कवि गंग कहे सुनी शाह अकबर छाछ मिली यह दूध महान।।

गंग तरंग प्रवाह चले तहँ कूप को नीर पियो न पियो।
आनि ह्रदय आदि राम बसे तब और को नाम लियो न लियो।
कर्म संजोग सुपात्र मिले तो कुपात्र को दान दियो न दियो।
जिन मात पिता गुरू सेवा करि तिन तीर्थ व्रत कियो न कियो।
जिन सेवा टहल करि संतन की तिन योग ध्यान कियो न कियो।
कहे कवि गंग सुनि शाह अकबर मूर्ख को मित्र कियो न कियो।।

मेटि के चैन करे दिन रैन ज्यौ चाकरियो न सदा सुखकारी।
ताकौ न चेत धरे गुन सौ भए नेकु सो दोष निकारत गारी।
ले है कहा हम छाड़ि महाप्रभु हैं जु महा रिझवार बिहारी।
राज को संग कहै कवि गंग सुसिंघ को संग भुजंग की यारी।।

नारी-समोहन (कवित)

राजा राउ उमराउ कोउ जौ रिझाइ आप, ताहूँ सों बरयाइ गहि पाइ बगसाइये।
और अंग बेदनी को बैद बोलि लीजै गंग, देव भूत लाग्यौ होइ दीया दिखराइये।
रूप की ठगौरी मेली डोरी ज्यों जरत तन, ढोरीलागी मोहनी मोहनी जीभ नाइये।
तै तो लै परायो मन सरग पतार मेल्यो, तरुनी न तेरो नेक तारा मन्त्र पाइये।।

नारी की प्रीत (सवैया)

चंचल नारी की प्रीत न कीजिये प्रीत किए दुख होत है भारी।
काल परे कछु आन बने कब नारी की प्रीत है प्रेम कटारी।
लोहे को घाव दवा सो मिटे पर चित को घाव ने जाई विसारी।
गंग कहे सुनी शाह अकबर नारी की प्रीत अंगार ते छारी।।

सज्जन-महिमा (कबित)

सहत संताप आप पर को मिटावे ताप करुणा को द्रुम शुभ छाया सुख कारी है।
शूरवीर क्षमावान कोटपति नहीं मान ज्ञान को निधान भान धीर गुण धारी है।
शरण आए सुख देवे दोष दिल नहीं लेवे परमार्थ वृत्ति जिन सदा प्राण प्यारी है।
कहत है कवि गंग सुनो मेरे दिल्ली पति विरले सज्जन ऐसे विश्व बलिहारी है।।

धन देवै धाम देवै बात को विराम देवै, राज को लगाम देवै ऐसो प्रिय पेख्यों है।
समय अनुकूल रहे भूल थाप नाहीं देवै, निष्कपट न्यायिक कपट जानी छेख्यो है।
बात गुप्त राखें ढाखै बोले ना कभी हु भाखै, प्रकृति पिछान जाने लायकनी लेख्यो है।
कहत हैं कवि गंग सुनो मेरे दिल्लीपति समय पर सीख देवे ऐसो कोई देख्यो है।।

सज्जन नम्रता (छप्पय)

नवै तुरी बहु तेज नवै दाता धन देतो।
नवै अम्ब बहु फल्यो नवै घन जल बरसेतो।
नवै पुरुष गुणवान नवै गज बैल सवारी।
नवै सो भारी होय नवै कुलवंती नारी।
कंचन पै कसियो नवै गंग बैन सांचौ कह्वे।
सुका काठ अजान नर भाग पड़े पर नही नवै।।

यश की स्थिरता (कबित)

जोर जात जोर ही तै जर्ब परे भूमि जात, झूमि जात जोबन औ राग रंग रस है।
गढ़ गिरी जात गरुवाई औ गरब जात, जात महारूप औ सरूप सरबस है।
कहै कबि गंग सुख सम्पति समाज जात, जात मिटि दंपति दरिद्र परबस है।
बाग कटि जात कुआ ताल पटि जात, नदी नद घटि जात पै न जात जग जस है।।

स्वभाव-नियंत्रण (सवैया)

पावक को जल बूंद निवारण सूरज ताप को छत्र कियों है।
व्याधि को वैध तुरंग को चाबुक चौपग को वृख दंड दियो है।
हस्ती महामद को कीये अंकुश भूत पिचास को मंत्र कीयो है।
औखद है सबको सुखकारी स्वभाव को औखद नाही कियो है।।

भावार्थः कवि गंग आदत से लाचार व्यक्ति के बारे में कह रहे हैं कि जैसे अग्नि के जले हुए कोल पर पानी डालने से वो शांत हो जाता है (बुझ जाता है) सर पर छाता रखने से सूरज की गर्मी से बचा जा सकता है किसी भी प्रकार का रोग है उसकी औषधि लेने से वह रोग शांत हो जाता है चार पाव वाले पशु को किसी छड़ी के माध्यम से अधिकार में लिया जा सकता है महान बलशाली हाथी को अंकुश व घोड़े को चाबुक और भूत पिचास आदि को मंत्रों द्वारा वश में किया जा सकता है। औषधि सबके लिए सुखदाई होती है। लेकिन स्वभाव से कमजोर व्यक्ति के लिए कोई औषधि नहीं है।

मानव-महत्व (कबित)

कुपात्र को हेत कहा खादी बिन खेत जैसे, प्रीति बिन मित्र वाकू चितहु न आनिये।
मति बिना मर्द अरु नूर बिना नारी कहा, अर्थ बिना कवि वाकू पसु ज्यों प्रमानिये।
तोपें बिन फौज कहा हस्ती बिन हौद कहा, द्रव्य बिन देवै दान देव करि मानिये।
कहै कबि गंग सुनो साहिन के साहि सूरा, आदमी को मोल एक बोल में पिछानिये।।

गुणी की परख (कबित)

गुनी की रचना बीच बसना फुलेलन कों, बोले और खोले बिन कैसे करि जानिये।
जुरैगी बिरादरी महिपन की चारु जहाँ, गुनी और गँवार तहाँ कैसे पहचानिये।
मोती मोती एक रंग मोल भाँति भाँति कहै, जौहरी के आए बिन कैसे करि मानिये।
कहै कबि गंग देखौ भँवर कुरेवा दोऊ, एक रंग डार बैठे जाती अनुमानिये।।

राजाहीन देश में निवास-निषेध(छप्पय)

जहाँ न चंदन होइ तहाँ नहिं रहै भुवंगम।
जहाँ न तरुबर होइ तहाँ नहिं रहै विहंगम।
जहाँ न सत संतोष तहाँ आचार रहै किमि।
जहाँ नायिका समूह तहाँ व्रत शील रहै किमि।
परधान नही जिहिं राज में चोर साह नहिं अंतरौ।
बसिये न तहाँ कबि गंग कहि, खरि गुर जहाँ पटंतरौ।।

गुण की अज्ञानता (सवैया)

जट का जानहिं भट्ट को भेद कुंभार का जानहिं भेद जगा को।
मूढ़ का जानहिं गूढ़ कै बातन भील का जानहिं पाप लगा को।
प्रीति की रीति अतीत का जानहिं, भैस का जानहिं खेत सगा को।
गंग कहै सुनी साह अकबर गिद्ध का जानहिं नीर गंगा को।।

अवसर पर परख (सवैया)

नीति चले तो महीपति जानिये भोर में जानिये शील धिया को।
काम परै तब चाकर जानिये ठाकुर जानिये चूक किया को।
पात्र तो बातन माहिं पिछानिये नैन में जानिये नेह तिया को।
गंग कहै सुनि साह अकबर हाथ में जानिये हेत हिया को।।

नकार-महत्व(दोहा)

न न अच्छर सब सों निरस सुनि उपजत अनहेत।
कामिनि के मुख कबि गंग पल पल शोभा देत।।

दिनन का फेर (कबित्त) कवि गंग के दोहे

एक दिन ऐसो जा में सिबिका है गज बाजि एक दिन ऐसो जामें सोइबे को सैसो है।
एक दिन ऐसो जामें गिलम गलीचा लागै, एक दिन ऐसो जामें तामे को न पैसो है।
एक दिन ऐसो जामें राजन सों प्रीति होत, एक दिन ऐसो जामें दुस्मन को धैसो है।
कहै कबि गंग नर मन में बिचारि देखि, आज दिन ऐसो जात काल दिन कैसो है।।

बेद होत फूहर, थूहर कलपतरु, परमहंस चूहर की होत परिपाटी को।
भूपति मँगैया होत, ठाँठ कामधेनु होत, गैयर झरत मद, चेरो होत चाँटी की।
कहै कबि गंग पुनि पुन्य कियें पाप होत, बैरी निज बाप होत, साँप होत साँटी को।
निर्धन कुबेर होत, स्यार सम सेर होत, दिनन के फेर सों सुमेर होत माटी को।।

जिनको निहारि रूप, मोहत अनूप जन, तेई तिय-बिरह बिरूप-मुख भटके।
जिनको सुनत गुन भूप उमहै अनूप, तेई लघु लोगन के लोभ लगे लटके।
आए रन-रंग रँगि जिनको सराहियत, तेई सूर कूरन आगे सीस पटके।
ढूँढत जिनहिं गंग पैयै न परसिबे कों, तेई द्वार द्वारनि रुपैयन कों भटके।।

कर्म-गोपन असंभवता(सवैया)

तारा की ज्योति में चंद छिपे नहीं सूरज छिपे नही घन बादर छाया।
चंचल नारी के नैन छिपे नहीं प्रीत छिपे नहीं पीठ दिखाया।
रण चड्यो रजपूत छिपे नहीं दातार छिपे नहीं घर मांगन आया।
कहे कवि गंग सुनी शाह अकबर कर्म छिपे नहीं भभूत लगाया।।

शब्दार्थ:-
इस छंद के माध्यम से कवि हमें यह बता रहे हैं कि जैसे आसमान में तारों की अधिकता हो जाए तो भी चंद्रमा की रोशनी को नहीं दबा सकते अगर आसमान में बहुत सारे बादल छा जाए तो भी सूर्य की रोशनी को ज्यादा देर तक छिपाया नहीं जा सकता चंचल स्त्री के नैन बता देते हैं कि उसका चरित्र कैसा है आपकी किसी से प्रीती है तो आप छुपा नहीं पाओगे चाहे मुंह फेर लो युद्ध के मैदान में क्षत्रिय राजपूत की कीर्ति छुप नहीं सकती और दातार यानी दानी का घर पर आए याचक से पता लग ही जाता है कि कितना दातार है आप चाहे अनेकों भेष कर लो पर आपके कर्म नहीं छिप सकते आप अपने कर्म पवित्र रखो शुद्ध रखो कवि गंग का भाव यह है।

(सवैया)

रैन भए दिन तेज छिपै अरु सूर्य छिपै अति-पर्व के छाए।
देखत सिंह छिपै गजराज, सो चंद छिपै है अमावस आए।
पाप छिपै हरिनाम जपे, कुलकानि छिपै है कपूत के जाए।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर कर्म छिपै न भभूत लगाए।।

फूट-परिणाम (कबित्त) कवि गंग के दोहे

फूटि गएँ हीरा की बिकानी कनी हाट हाट, काहू घाट मोल, काहू बाट मोल को लयो।
दूटि गई लंका फूटि मिल्यो जौ बिभीषन है, रावन समेत बंस आसमान को ठयो।
कहै कबि गंग दुरजोधन सो छत्रधारी, तनक में फूटे तें गुमान वाको नै गयो।
फूटे तें नरद उठि जात बाजी चौसर की, आपुस के फूटें कहु कौन को भलो भयो।।

मूढ़ आगे विद्या (कबित्त)

कहे तें समझ नाहिं, समझाए समझै ना, कबि लोग कहैं काहि करै अब सारसी।
काक कों कपूर जैसे, मरकट को भूषन, जैसे ब्राह्मन को मक्का, पीर को बनारसी।
बहिरे के आगे तान गाए को सवाद जैसे, हिंजरे के आगे नारि लागत अँगार सी।
कहै कबि गंग मन मा ह तौ बिचारि देखौ, मूढ़ आगे बिद्या जैसे अंध आगे आरसी।।

अविवेकी-सेवानिषेध (छप्पय)

कहा नीच की प्रीत, कहा कोटू का कीड़ा।
कहा चिड़ी की लात, कहा गाड़र का धीड़ा।
कहा कृपन का दान, कहा पाहन का बूटा।
कह बिषधर सों नेह, कहा केहरि का टूटा।
गंग कहै गुनवंत सुनि, फुटी नाव क्यों खेइये।
गुन औगुन समझें नहीं, ते कुट्टन क्यों सेइये।।

कुमानुष को सीख (सवैया)

दाख बड़ो फल है सुखदायक, काग भखै तौ महा दुख पावै।
मिस्त्र अमोल, बहोत मिठास मै, जौ खर खावै तौ प्रान नसावै।
सीत बिना फल खाइ छुहारे तौ, ताते तुरंग को तेज नसावै।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर, सीख कुमानुष कों नहिं भावै।।

अन्यायी नृपति (कबित्त)

रजो गुन कहत हैं, दीनन कों जानैं नहीं, ताते बोलैं बोल ताते तेल में नहायँगे।
न्याव न्याव कहैं कछु न्याव की न बूझै बात, बिगर सुन्याव सो बड़ीयै मार खायँगे।
कहै कबि गंग खोटे जीव दुखदाई सब, मीडि मीडि हाथ कों वे फेरि पछतायँगे।
कहा भयो दिना चार गद्दी के मुसद्दी भए, बद्दी के करैया सब रद्दी होइ जायँगे।।

कुटेव का न जाना (सवैया)

लैहसुन गाँठ कपूर के नीर में, बार पचासक धोइ मँगाई।
केसर के पुट दै दै कै फेरि, सु चंदन बृच्छ की छाँह सुखाई।
मोगरे माहिं लपेटि धरी गंग, बास सुबास न आव न आई।
ऐसेहि नीच कों ऊँच की संगति, कोटि करौ पै कुटेव व जाई।।

शब्दार्थ:-
कवि इस छंद में लहसुन के माध्यम से यह कहना चाह रहे हैं कि लहसुन को देखिए वह अपना स्वाभाविक गुण नहीं छोड़ता चाहे कपूर के पानी में रख दो 50 बार धो लो केसर के लेप लगा लो चाहे चंदन के वृक्ष की छाया में सुखाने के लिए रख दो चाहे मोगरे के पुष्पों की टोकरी में रख दो फिर भी उसमें किसी की भी सुगंध नहीं आयेगी सिर्फ उनके अपने निजी गुण के अलावा ऐसे ही दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति चाहे कितनी भी ऊंची संगति में रह ले लेकिन वह अपने स्वभाव को कुछ भी हो जाए नहीं त्यागता दुष्ट व्यक्ति अपने दुर्गुण के प्रति दृढ़ संकल्प वाला होता है। कवि गंग के दोहे

दूर रहना (सवैया)

बाल सों ख्याल, बड़े सों बिरोध, अगोचर नारि सों ना हँसिये।
अन्न सों लाज, अगिन्न सों जोर अजानत नीर में ना धंसिये।
बैल को नाथ, घोड़े को लगाम, मतंग कों अंकुस में कसिये।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर, कूर तें दूर सदा बसिये।।

दुर्जन (कबित्त) कवि गंग के दोहे

अकारन क्लेस करै, ईरषा में अंग जरै, रंग देखि रीझै नहिं दृष्टिदोष खड़ो है।
आप को न करै काज पर कों करै अकाज, लोगन की छाँडी लाज, असूया में अड़ो है।
मन बानी काया कूर और कों सतावै सूर, काम क्रोध हो हजूर बिधना क्यों घड़ो है।
कहत है कबि गंग साहिन के साहि सूरा, दुनिया में दुख्ख एक दुर्जन को बड़ो है।।

ठगी (कबित्त)

देखत कै बृच्छन में दीरघ सुभायमान, कीर चल्यो चाखिबेकों प्रेम जिय जग्यो है।
लाल फल देखि कै जटान मँडरान लागो, देखत बटोही बहुतेरो डगमग्यो है।
गंग कबि फल फूटें भुआ उधिरान लखि, सबन निरास है कै निज गृह भग्यो है।
ऐसो फलहीन बृच्छ बसुधा में भयो यारो, सेमर बिसासी बहुतेरन को ठग्यो है॥

दानी और सूम (सवैया)

जौहिरी लोग जवाहिर जाँचक दानी औ सूम की कीरति गावै।
तौन के भौन को स्वाल कहा, जिनि हाल के देखे हवाल बतावै।
गंग भनै कुलधर्म छिपै नहिं चाम की टूकरी काम न आवै।
स्यारथरी में खुरी पुंछ कंथरे सिंहथरी मुकता-गज पावै॥

दान (कबित्त)

कन्यादान लेत सब छत्रपती छत्रधारी, हयदान गजदान भूमिदान भारी है।
राजा माँगे रावन पै, राव माँगै खानन पै, खान सुलतानन पै भिच्छा कछु डारी है।
मिच्छा के काजै कबि गंग कहै ठाडै द्वार, बलि से नृपति तहाँ बावन बिहारी है।
संपदा के काजै कहौ कौनै नहिं ओड्यो हाथ, जहाँ जैसो दान तहाँ तैसाई भिखारी है।।

दान में टाँच मारना (सवैया)

गंग कहे सुन लीजो गुनी अरे मंगन बीच परो मती कोई।
बीच परो तो रहो चुप हवे करी आखिर इज्जत जात है खोई।
बली के बामन के दरमियान में आन भई जो भई गति जोई।
लेत है कोई ओ देत है कोईपे शुक्र ने आंख अनाहक खोई।।

कृपण (सवैया)

धूर परै उनके धन पै जिनको धन पुन्न के काम न आवै।
धूर परै उनके तप पै जिनके तप तें अघ दूर न जावै।
काह कहूँ उन भूपन तें जिनको अरि पैर की धूर न खावै।
धाम ढहौ तिनके कहि गंग जिके घर मंगन मानन पावै।।

भट्ट कैसा होता है (कबित्त)

पवन को तोल करै, गगन को मोल करै, कबि सों बाँधहि डोल ऐसो नर भाट है।
पत्थर सों कातै सूत, बाँझ को बढ़ावै पूत, मसान में बसै भूत ताको घर भाट है।
बिजली करै कलेवा दवनी सों राखै देवा, राहु कों खवावै मेवा, सो सद्धर भाट है।
मेघन को राखै ढेरा, तख्त का लुटावै डेरा, मन का सँभारे झेरा, ऐसा नर भाट है।।

चौधरी (कबित्त)

चूतिया चलाक चोर चौपट चवाई च्युत, चौकस चिकित्सक चिबिल्ला औ’ चमार है।
चौसरखिलार सिर चाँदुल चपल चित, चतुर चुहेड़ा चरगन चिड़ीमार है।
चिहुकन चटना चुहुलबाज गंग कहै, चुगल चंडाल चरपरिया चपार है।
जुलम की चाल सब जाल को हवाल जाने, चौधरी बखानौं जामें चौबिस चकार है।।

सपूत-कपूत (छप्पय)

छप्पर रेंड छबाय तबै तरु कौन करावै।
खर तें हो संग्राम ताजिया कौन चरावै।
लहसन गंधित होय कौन केसरहि बहोरै।
बेस्या तें घर चलै कौन कुलवंती खोरै।
जौ होय तमासा काग तें तौ बाजै कौन सिकारियै।
जौ काज कपूता तें सरै तौ कौन सपूता पारियै।।

भूख (सवैया)

भूख में राज को तेज सबै घटै भूख में सिद्ध की बुद्धिहु हारी।
भूख में कामिनी काम तजै अरु, भूख में तज्जत पूरुष नारी।
भूख में कोऊ रहै व्यवहार न भूख में कन्या रहत्त कुमारी।
भूख में गंग बनै न भजन्नहु चारहु बेद तें भूख है न्यारी॥

सूँघन बास को नाक दई, अरु आँख दई जग जोवन कों।
दान के काज दिये दोऊ हाथ, सो पाँउ दिये पृथी घूमन कों।
कान दिये सुनिबे कों पुरान, सु जीभ दई भज मोहन कों।
गंग कहै सब नीको दियो, पर पेट दियो पत खोवन कों॥

सुख-सामग्री (दोहा)

पान पुराना घी नया, अरु कुलवंती नारि।
चौथी पीठि तुरंग की, स्वर्ग निसानी चारि॥

नारी-कुचाल (कबित्त)

कुंती के पाँच पुत्र पति को न भयो एक, दुसासन को गर्भ गिरयो जग गीत जानी है।
कहै कबि गंग उनको गंगा तें कुल चल्यो, गाँग को न भयो ब्याह झूठी ही बखानी है।
तिहारौ तौ पांडव फेर कछु ही कहौं नाहिं, पाँच पति एक नारि औसरे सों मानी है।
धीयन के मामले में कोऊ कछु कहै नाहिं, ऐसे सब बैठे मेरी नेक आँख कानी है।।

बैठे इंद्र इनके हजार भग पैदा भई, छाप लागी चंद्र के दलाली की निसानी है।
बैठे मुनि ज्ञानी मृगछालाहू बिछाइ रहे, बेस्या के मित्र इन तें नेक ना गिलानी है।
क्वारी के कर्न भए पंडु तें न पांडौ भए, दादी मछोदरी की जगत्त जाति जानी है।
गोपिका अहीर कृस्न वाकी कुछ जाति नाहिं, ऐसे सब बैठे मेरी नेक आँख कानी है।।

जीम-निंदा (कवित्त)

नाटक साटक बर बंधन प्रबंध छंद
ठगारी बयारी गारी कहा न कहति है।
कहि कबि गंग राम नाम तें बिमुख नित एकहु निमिष, सिख सूधे न गहति है।
याहू माँझ आधि व्याधि झरति उपाधि और ठौर काढ़ि काढ़ि कै कहाँ तें उलहति है।
बारू बारू जनम बिगारू बनि दारू की सी, नारू या निगोड़ी जीभ तारू में रहति है।।

ऋणग्रस्तता (सवैया)

नटवा लौं नटै न टरै पुनि मोदी, सु डाँडिन में बहु भाव भरै।
सजि गाजै बजाज अवाज मृदंग लौं, बाँकियै तान गिनौरी लरै।
पट धोबी धरै, अरु नाई नरै, सु तमोलिन बोलिन बोल धरै।
कबि गंग के अंगन मंगनहार, दिना दस तें नित नृत्य करै।।

कानी आँख (सवैया)

मेरी कानी आँखि कछु पाप तें न फूटि गई, अपने जन की पीर कौने नहिं मानी है।
कोई लेइ कोई देइ आप कछु काम नाहि, साँची के कहे में कछु आवति ही हानी है।
क्यों रे पानी कृस्न सब बलि को लयो तें लूटि, मेरी फोड़ी आँखि करी पाप की निसानी है।
कहै कबि गंग यहै सुक्र ने जवाब दयो मेरी आँखि कानी वाकी आनी जग मानी है।।

गरज (सवैया)

गर्ज ते अर्जुन क्लीब भए, अरु गर्ज तें गोबिंद धेनु चरावै।
गर्ज तें द्रौपदी दासी भई, अरु गर्ज तें भीम रसोई पकावै।
गर्ज बडी त्रय लोकन में, अरु गर्ज बिना कोइ आवै न जावै।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर, गर्जतें बीबी गुलाम रिझावै।।

रति (सवैया)

रती बिन राज, रती बिन पाट, रती बिन छत्र नहीं इक टीको।
रती बिन साधु रती बिन संत, रती बिन जोग न होय जती को।
रती बिन मात रती बिन तात, रती बिन मानस लागत फीको।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर, एक रती बिन एक रती को॥

रुपया (सवैया)

मात कहै मेरो पूत सपूत है, भैन कहै मेरो सुंदर भैया।
तात कहै मेरो है कुलदीपक, लोक में लाज रु धीरबँधैया।
नारि कहै मेरो प्रानपती अरु जीवन जान की लेउँ बलैया।
गंग कहै सुनि साहि अकब्बर, सोई बड़ो जिन गाँठ रुपैया।।

शब्दार्थ:-
इस छंद के माध्यम से कवि गंग हमें इस संसार की वास्तविकता हमारे सामने रख रहे हैं कि आपका अपना यहां कोई नहीं है माता भी आपको सपुत्र कह रही है बहन भी आपको सुंदर बता रही है पिता आपको अपने कुल का चिराग अपनी वंशवेल कह रहे हैं और पत्नी कह रही है कि मेरे पति मेरे प्राणप्रिय मेरे भगवान है मैं इनकी बलैया लेती हूं इतना कुछ होने के बाद भी कवि गंग हमें यह कह रहे हैं कि आपके पास पद पैसा और प्रलोभन है तो आपको सब यही कहेंगे जब इनमें से एक भी उपाधि आपके पास नहीं है तो यह सब आपको इसके विपरीत बताएंगे यह सिर्फ नियम है वास्तव में आपका अपना तो वह परमपिता परमात्मा है जो इस आत्मा का जनक है जिसे हम:-

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।। कवि गंग के दोहे

बुराई (छप्पय)

बुरो प्रीति को पंथ, बुरो जंगल को बासो ।
बुरो नारि को नेह, बुरो मूरख सों हाँसो।
बुरी सूम की सेव, बुरो भगिनी-घर भाई।
बुरी कुलच्छनि नारि, सास-घर बुरो जमाई।
बुरो पेट पप्पाल है, बुरो जुद्ध तें भागनो।
गंग कहै अकबर सुनौ, सबतें बुरो है माँगनो।।

शब्दार्थ:-
इस संसार में कुछ नियमों को निभाना कठीन है जैसे हम किसी से प्रीति करते हैं यह आसान है मगर उसे निभाना बड़ा कठिन होता है जंगल दूर से अच्छा दिखता है मगर उसमें रहना पड़ जाए तो यह कठिन है पर स्त्री से नेह लगाना बहुत बुरा है एक बार भी फस गए कभी नहीं निकल पाएंगे मूर्ख व्यक्ति की हंसी बुरी होती है क्योंकि बे मतलब की बात अच्छी नहीं होती कंजूस व्यक्ति की सेवा करना कठिन है बहन के घर भाई बुरा है कुल्टा स्त्री कुल के लिए बहुत बुरी होती है घर जमाई की ससुराल में कोई कदर नहीं होती अगर आप अपना काम कर रहे हो ससुराल में हो उसे घर जमाई नहीं कहते घर जमाई का अर्थ ससुर की रोटियों पर पलना है इस संसार में पेट की भुख कभी नहीं मिटती है नहीं उसकी पूर्ति में सारा जीवन लगा लेते हैं बहुत कठिन है युद्ध क्षेत्र से भागना भागने वाले की मृत्यु से ही भी भयानक स्थिति हो जाती है और इस संसार में मांगना सबसे बुरी चीज है मांगन मरण समान है। कवि गंग के दोहे

अकबर-निंदा (सवैया)

एक को छोड़ि बिजा को भजै, रसना सु कटौ उस लब्बर की।
अब तौ गुनिया दुनिया को भजै, सिर बाँधत पोट अटब्बर की।
कबि गंग तौ एक गोबिंद भजै, कछु संक न मानत जब्बर की।
जिनकों हरि की परतीति नहीं सो करौ मिलि आस अकब्बर की।। कवि गंग के दोहे

शादर्थ:-
इस छंद के माध्यम से कवि हमें जीवन का सार समझाते हुए कहना चाहते हैं कि उसे एक पूर्ण परमात्मा सबका मालिक सर्वशक्तिमान परमपिता को छोड़कर किसी और पर भरोसा रखता है किसी अन्यत्र पर आश्रित रहता है प्रभु को भूल कर किसी और के गुणगान करता है ऐसे व्यक्ति की जीव्या क्यों नहीं कट जाती उस लब्बार की जो गुणवान होते हुए भी इस संसार के झूठे मालिकों का गुणगान करते हैं वह तो अपने लिए पाप की गठरी लाद रहे हैं मैं कवि गंग तो एक परमात्मा को भजता हूं और उस पर ही आश्रित रहता हूं उसके अलावा मेरा कोई स्वामी नहीं है हां जिनको उस परमपिता परमात्मा के ऊपर विश्वास नहीं है वह इस संसार रूपी अकबर पर निर्भर रहेंगे इसकी आशा करेंगे

उपरोक्त रचना की अंतिम पंक्ति अकबर को अपमानजनक लगी इसलिए अकबर ने कवि गंग को उसका साफ अर्थ बताने के लिए कहा। कवि गंग इतने स्वाभिमानी थे कि उन्होंने अकबर को यह जवाब दियाः

एक हाथ घोडा एक हाथ खर
कहना था सो कह दिया करना है सो कर।।

कवि गंग अत्यन्त स्वाभिमानी थे। उनकी स्पष्टवादिता के कारण ही उन्हें हाथी से कुचलवा दिया गया था। अपनी मृत्यु के पूर्व कवि गंग ने कहा थाः

कभी ना भड़वा रण चढ़े कभी न बाजी बंब।

सकल सभा प्रणाम करी विदा होत कवि गंग।। कवि गंग के दोहे

विजया-प्रशस्ति (कबित्त)

बिजया बिलार खास स्वानहू के कान गहै, स्वानहू जौ खाय सो तौ धावै गजराज कों।
गजराजहू जौ खाय कोटि सिंह हाथ डारै, बनिया जो खाय तौ लुटाय देत नाज कों।
नामरद खाय तौ मरद के से काम करै, महरी जौ खाय सो तौ धावै काम काज कों।
कहै कबि गंग गुन देखौ बिजया के ऐसे, चिड़िया जौ खाय तौ झपटि परै बाज कों।।

मृग (छप्पय)

सवन गीत-हित दिये नैन दिय बर तियानि कहि।
शृंग दिये जोगीन माँस भोगीन पुरुष महि।
जीव बधिक को दियो तुचा मुनिबर कह दीनी।
ससिरथ दिये जु कंध, नृपति-तन मृगमद भीनी।
सगुन सरस पंथीन कह रन काइर दिय चरन सोइ।
कबि गंग कहै इमि साह सुनि, मृग समान दाता न कोइ।।

कबि गंग की सीख (कबित्त)

कायर को खेत कहा, कपटी सों हेत कहा, बेस्या बिसवास कहा, कब लौं पत्याइयै।
बारू की भीत कहा, ओछे सों प्रीति कहा, राँग को रुपैया कहा, बार बार ताइयै।
काठ की कटार लैकै कौन जंग जीति आयो, कागज को घोड़ा कहौ कौं लगि दौड़ाइये।
गुलाम के तिलाम औ तिलामन के बादसा गंग से गुनी कहा गयंद पै तुड़ाइयै ।।

गाय की अकबर से पुकार (छप्पय)

दंतन त्रिन जे देहिं तिन्हैं मारै न सबल कोइ।
हम नित प्रति तृन चरै बोल बोलैं सुदीन होइ।
हिंदू कौं दै मधुर, बिषै तुरकैं न पिवावहिं।
दुहूँ दीन के काज पुत्र महि थंभन जावहिं।
फिरयाद अकब्बर साह सुनि गऊ कहत जोरै करन।
मारियै कौन अपराध सों, (हम) मुए चाम सेवे चरन।।

मूर्ख की हठ नहीं छोड़ता (कबित)

जार को बिचार कहा, गनिका को लाज कहा, गधा कों किताब कहाँ, आँधरे को आरसी।
सूमन की सेव कहा, दरिद्री को दान कहा, निगुने कों गुन कहा, एरैंड की डार सी।
मदिरा को सुचि कहा, नीच को बचन कहा, लंपट को साँच कहा, स्यार की पुकार सी।
कहै कबि गंग सठ टरत न हठ क्यों हूँ, भावै सूधी बात कहौ भावै कहौ पारसी।।

बारह नालायक (सवैया)

पूत कपूत, कुलच्छनि नारि, लराक परोस, लजावन सारो।
भाई भटीट, पुरोहित लंपट, चाकर चोर अतीव धुतारो।
साहब सूम, अड़ाक तुरंग, किसान कठोर दिमान चिकारो।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर बारहुँ बाँधि कुवा महिं डारो।।

गंग-प्रशस्ति

बानी बिनोद रची तुक दंड बची न गई कबि उप्पमा सोऊ।
आज कबित्त बनै तबही जब वेई सुअच्छर आनि समोऊ।
कहै परसोतम ऐसे गुनीन ही छैहै न वै गए पाछिले कोऊ।
सूर सुजान बड़े कबि गंग ये आँधरे ऊधम कै भए दोऊ।।

सुंदर पद कबि गंग के उपमा को बरबीर।
केसव अर्थ गंभीर को सूर तीन गुन धीर।।

सब देवन को दरबार जुस्यो तहँ पिंगल छंद बनाय कै गायो।
जब काहु तें अर्थ कह्यो न गयो तब नारद एक प्रसंग चलायो।
मृतलोक में है नर एक गुनी कबि गंग को नाम सभा में बतायो।
सुनि चाह भई परमेसर को तब गंग को लेन गनेस पठायो।।

तुलसी गंग दोऊ भए, सुकबिन के सरदार।
इनकी काब्यनि में मिली, भाषा बिबिध प्रकार॥

साह अकबर महाकबि नरहरि जी कों दीन्ह्यो महापात्र पद मरजाद जाती में।
तापै चौर चोपदार चामीकर पग दीन्ह्यो पालकी में कंध केते पुर लिखि पाती में।
गंग कबि हेत घने तैसे गज ग्राम दीन्हें आज लगि वा न मान भोज अधिकाती में।
संगदिल साह. जॅहगीर सो उमंग आज देत है मतंग पद सोई गंग छाती में।।

सत्संग की महिमा (सवैया)

मेरा चित्त बसें उस मित की पास तौ मित का चित्त की जाणें विधाता।
तां बिछड़ा मोहे धान न भावै नो पाणी न फूल न पान सुहाता।
जागत जागत रैन पड़ी महि नींद न आवे जि सेज सुहाता।
हरिबंस के सामी कूँ जैसें भजू जैसें सावण बूंद पपीहा लबाता।।

है सतसंग बड़ो जग में हरि अंकित सिंधु सिला उतराने।
पारस के परसे तन लोह दिपै दुति हेमस्वरूप समाने।
गंग कहै मलयाचल बात छुए तरु ईस के सीस चढ़ाने।
कीट कृमी अति के परसंग फिरै अलि है मकरंद छकाने।।

कवि गंग के दोहे सुनने के लिए कृपया यहां क्लिक करें

भस्मी में रमावत शंकर के

भस्मी लगावत शंकर के अहि लोचन मध्य परो झरि कै।।
अहि फुफकार लगी शशी को तब अमृत बूंद परी चरी कै।।
उठ मृगराज घृणाट कियाे तब सुरभी सुत भाग परि कै।।
कवि गंग एक अचंभो भयो तब गवर हंसी मुख यूं करि कै।। कवि गंग के दोहे

शब्दार्थ:-
एक बार शिव जी अपने निजधाम में विराजमान थे और अपने अंग पर भभूति लगा रहे थे भूलवश वह भस्मी सर्प के आंख में गिर गई सर्प ने जोर से फूफकार की तो ऊपर चंद्रमा को जाके लगी चंद्रमा से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर गिर गई वह अमृत की बूंद शिव जी के बाघअंबर पर गिरि खाल से अमृत का स्पर्श होने पर वह खाल बाघ अमृत की वजह से जीवित हो गया और खड़ा हुआ जोर से दहाड़ मारी तो नंदी महाराज डर के मारे भाग गए यह नजारा पार्वती जी ने देखा तो शिवजी के सामने देख उन्होंने मुंह फेर कर जोर से हंसने लगी यह चित्रण कवि ने अपने सुंदर काव्य में किया है इसको एक अन्य अज्ञात कवि द्वारा भी वर्णन किया गया है

भभूत लगावत शंकर को, अहिलोचन मध्य परौ झरि कै।

अहि की फुँफकार लगी शशि को, तब अंमृत बूंद गिरौ चिरि कै।
तेहि ठौर रहे मृगराज तुचाधर, गर्जत भे वे चले उठि कै।
सुरभी-सुत वाहन भाग चले, तब गौरि हँसीं मुख आँचल दै॥

शब्दार्थ:-
अर्थात् (प्रातः स्नान के पश्चात्) पार्वती जी भगवान शंकर के मस्तक पर भभूत लगा रही थीं तब थोड़ा सा भभूत झड़ कर शिव जी के वक्ष पर लिपटे हुये साँप की आँखों में गिरा। (आँख में भभूत गिरने से साँप फुँफकारा और उसकी) फुँफकार शंकर जी के माथे पर स्थित चन्द्रमा को लगी (जिसके कारण चन्द्रमा काँप गया तथा उसके काँपने के कारण उसके भीतर से) अमृत की बूँद छलक कर गिरी। वहाँ पर (शंकर जी की आसनी) जो मृगछाला थी वह (अमृत बूंद के प्रताप से जीवित होकर) उठ कर गर्जना करते हुये चलने लगा। सिंह की गर्जना सुनकर गाय का पुत्र – बैल, जो शिव जी का वाहन है, भागने लगा तब गौरी जी मुँह में आँचल रख कर हँसने लगीं मानो शिव जी से प्रतिहास कर रही हों कि देखो मेरे वाहन (पार्वती का एक रूप दुर्गा का है तथा दुर्गा का वाहन सिंह है) से डर कर आपका वाहन कैसे भाग रहा है।

ठनन ठनन ठनन ठहक्यो ?

करी कै जू श्रृंगार अटारी चढ़ी मन लालन सों हियरा लहक्यों।।
सब अंग सुबास सुगंध लगाइके बास चहुं दिश को महक्यों।।
कर ते इक कंगन छुटी परियों सीढियां सीढ़ियां सीढियां बहक्यो।।
कवि गंग भने इक शब्द भयौ ठनन ठनन ठनन ठहक्यो।।

शब्दार्थ:-
एक बार बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था बादशाह को वह घटना बता रखी थी तब बादशाह ने सबके सामने एक प्रश्न रखा कि ठनन ठनन ठनन क्या ठहकयो इस प्रश्न का उत्तर देने वाले को 10000 स्वर्ण मुद्राएं दी जाएगी कवि गंग ने इस चुनौती को स्वीकार किया और 1 दिन का समय मांगा दूसरे दिन कवि गंग ने उत्तर दिया कि जहांपना बेगम ने अपना पूरा श्रृंगार करके आपसे मिलने के लिए आपकी तरफ बढ़ रही थी मन में आपसे मिलने की उमंग हिलोरे ले रही थी पूरे अंगों में इत्र की सुगंध उससे सारा महल महक रहा था आपसे मिलने की बेसब्री में हाथ से कंगन गिर गया और वह कंगन महल की सीढ़ियों से टकराता हुआ नीचे आ रहा था उसकी आवाज ठनन ठनन वह ठहक रहा था बादशाह बड़ा खुश हुआ।

कवि गंग के विषय में भिखारीदास जी का कथन हैः “तुलसी गंग दुवौ भए, सुकविन में सरदार”। कवि गंग के दोहे

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गिरधर कविराय की कुंडलियां मंगलगिरी जी की कुंडलियाँ सगराम दास जी की कुण्डलिया रसखान के सवैया उलट वाणी छंद गोकुल गांव को पेन्डो ही न्यारौ

धर्म क्या है दोहे अर्थ सहित पढ़ाई कैसे करें दोहे अर्थ सहित गुरु महिमा के दोहे

lagan tumse laga baithe lyrics- लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा


अंदाज में - धन्वंतरि दास  जी महाराज के 

         किसी से उनकी मंजिल का पता तर्ज

    लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा
    तुम्हें अपना बना बैठे जो होगा देखा जाएगा ||

    कभी दुनियाँ से डरते थे छुप छुप याद करते थे
    लो अब परदा उठा बैठे जो होगा देखा जाएगा
    लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा
    तुम्हें अपना बना बैठे जो होगा देखा जायेगा ||

            कभी यह ख़याल था दुनियाँ हमें बदनाम कर देगी
            शर्म अब बेच खा बैठे जो होगा देखा जाएगा
            लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा
            तुम्हें अपना बना बैठे जो होगा देखा जायेगा ||

            दीवाने बन गए तेरे तो फिर दुनियाँ से क्या मतलब
            तेरी गलियों में आ बैठे जो होगा देखा जाएगा
            लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा
            तुम्हें अपना बना बैठे जो होगा देखा जायेगा
            लगन तुमसे लगा बैठे जो होगा देखा जाएगा
            तुम्हें अपना बना बैठे जो होगा देखा जायेगा ||



 


मोस्ट दोहे सवैया

ऋणग्रस्तता (सवैया)

नटवा लौं नटै न टरै पुनि मोदी, सु डाँडिन में बहु भाव भरै।
सजि गाजै बजाज अवाज मृदंग लौं, बाँकियै तान गिनौरी लरै।
पट धोबी धरै, अरु नाई नरै, सु तमोलिन बोलिन बोल धरै।
कबि गंग के अंगन मंगनहार, दिना दस तें नित नृत्य करै।।

कानी आँख (सवैया)

मेरी कानी आँखि कछु पाप तें न फूटि गई, अपने जन की पीर कौने नहिं मानी है।
कोई लेइ कोई देइ आप कछु काम नाहि, साँची के कहे में कछु आवति ही हानी है।
क्यों रे पानी कृस्न सब बलि को लयो तें लूटि, मेरी फोड़ी आँखि करी पाप की निसानी है।
कहै कबि गंग यहै सुक्र ने जवाब दयो मेरी आँखि कानी वाकी आनी जग मानी है।।

गरज (सवैया)

गर्ज ते अर्जुन क्लीब भए, अरु गर्ज तें गोबिंद धेनु चरावै।
गर्ज तें द्रौपदी दासी भई, अरु गर्ज तें भीम रसोई पकावै।
गर्ज बडी त्रय लोकन में, अरु गर्ज बिना कोइ आवै न जावै।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर, गर्जतें बीबी गुलाम रिझावै।।

रति (सवैया)

रती बिन राज, रती बिन पाट, रती बिन छत्र नहीं इक टीको।
रती बिन साधु रती बिन संत, रती बिन जोग न होय जती को।
रती बिन मात रती बिन तात, रती बिन मानस लागत फीको।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर, एक रती बिन एक रती को॥

रुपया (सवैया)

मात कहै मेरो पूत सपूत है, भैन कहै मेरो सुंदर भैया।
तात कहै मेरो है कुलदीपक, लोक में लाज रु धीरबँधैया।
नारि कहै मेरो प्रानपती अरु जीवन जान की लेउँ बलैया।
गंग कहै सुनि साहि अकब्बर, सोई बड़ो जिन गाँठ रुपैया।।

शब्दार्थ:-
इस छंद के माध्यम से कवि गंग हमें इस संसार की वास्तविकता हमारे सामने रख रहे हैं कि आपका अपना यहां कोई नहीं है माता भी आपको सपुत्र कह रही है बहन भी आपको सुंदर बता रही है पिता आपको अपने कुल का चिराग अपनी वंशवेल कह रहे हैं और पत्नी कह रही है कि मेरे पति मेरे प्राणप्रिय मेरे भगवान है मैं इनकी बलैया लेती हूं इतना कुछ होने के बाद भी कवि गंग हमें यह कह रहे हैं कि आपके पास पद पैसा और प्रलोभन है तो आपको सब यही कहेंगे जब इनमें से एक भी उपाधि आपके पास नहीं है तो यह सब आपको इसके विपरीत बताएंगे यह सिर्फ नियम है वास्तव में आपका अपना तो वह परमपिता परमात्मा है जो इस आत्मा का जनक है जिसे हम:-

त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देव।। कवि गंग के दोहे

बुराई (छप्पय)

बुरो प्रीति को पंथ, बुरो जंगल को बासो ।
बुरो नारि को नेह, बुरो मूरख सों हाँसो।
बुरी सूम की सेव, बुरो भगिनी-घर भाई।
बुरी कुलच्छनि नारि, सास-घर बुरो जमाई।
बुरो पेट पप्पाल है, बुरो जुद्ध तें भागनो।
गंग कहै अकबर सुनौ, सबतें बुरो है माँगनो।।

शब्दार्थ:-
इस संसार में कुछ नियमों को निभाना कठीन है जैसे हम किसी से प्रीति करते हैं यह आसान है मगर उसे निभाना बड़ा कठिन होता है जंगल दूर से अच्छा दिखता है मगर उसमें रहना पड़ जाए तो यह कठिन है पर स्त्री से नेह लगाना बहुत बुरा है एक बार भी फस गए कभी नहीं निकल पाएंगे मूर्ख व्यक्ति की हंसी बुरी होती है क्योंकि बे मतलब की बात अच्छी नहीं होती कंजूस व्यक्ति की सेवा करना कठिन है बहन के घर भाई बुरा है कुल्टा स्त्री कुल के लिए बहुत बुरी होती है घर जमाई की ससुराल में कोई कदर नहीं होती अगर आप अपना काम कर रहे हो ससुराल में हो उसे घर जमाई नहीं कहते घर जमाई का अर्थ ससुर की रोटियों पर पलना है इस संसार में पेट की भुख कभी नहीं मिटती है नहीं उसकी पूर्ति में सारा जीवन लगा लेते हैं बहुत कठिन है युद्ध क्षेत्र से भागना भागने वाले की मृत्यु से ही भी भयानक स्थिति हो जाती है और इस संसार में मांगना सबसे बुरी चीज है मांगन मरण समान है। कवि गंग के दोहे

अकबर-निंदा (सवैया)

एक को छोड़ि बिजा को भजै, रसना सु कटौ उस लब्बर की।
अब तौ गुनिया दुनिया को भजै, सिर बाँधत पोट अटब्बर की।
कबि गंग तौ एक गोबिंद भजै, कछु संक न मानत जब्बर की।
जिनकों हरि की परतीति नहीं सो करौ मिलि आस अकब्बर की।। कवि गंग के दोहे

शादर्थ:-
इस छंद के माध्यम से कवि हमें जीवन का सार समझाते हुए कहना चाहते हैं कि उसे एक पूर्ण परमात्मा सबका मालिक सर्वशक्तिमान परमपिता को छोड़कर किसी और पर भरोसा रखता है किसी अन्यत्र पर आश्रित रहता है प्रभु को भूल कर किसी और के गुणगान करता है ऐसे व्यक्ति की जीव्या क्यों नहीं कट जाती उस लब्बार की जो गुणवान होते हुए भी इस संसार के झूठे मालिकों का गुणगान करते हैं वह तो अपने लिए पाप की गठरी लाद रहे हैं मैं कवि गंग तो एक परमात्मा को भजता हूं और उस पर ही आश्रित रहता हूं उसके अलावा मेरा कोई स्वामी नहीं है हां जिनको उस परमपिता परमात्मा के ऊपर विश्वास नहीं है वह इस संसार रूपी अकबर पर निर्भर रहेंगे इसकी आशा करेंगे

उपरोक्त रचना की अंतिम पंक्ति अकबर को अपमानजनक लगी इसलिए अकबर ने कवि गंग को उसका साफ अर्थ बताने के लिए कहा। कवि गंग इतने स्वाभिमानी थे कि उन्होंने अकबर को यह जवाब दियाः

एक हाथ घोडा एक हाथ खर
कहना था सो कह दिया करना है सो कर।।

कवि गंग अत्यन्त स्वाभिमानी थे। उनकी स्पष्टवादिता के कारण ही उन्हें हाथी से कुचलवा दिया गया था। अपनी मृत्यु के पूर्व कवि गंग ने कहा थाः

कभी ना भड़वा रण चढ़े कभी न बाजी बंब।

सकल सभा प्रणाम करी विदा होत कवि गंग।। कवि गंग के दोहे

 

भूख (सवैया)

भूख में राज को तेज सबै घटै भूख में सिद्ध की बुद्धिहु हारी।
भूख में कामिनी काम तजै अरु, भूख में तज्जत पूरुष नारी।
भूख में कोऊ रहै व्यवहार न भूख में कन्या रहत्त कुमारी।
भूख में गंग बनै न भजन्नहु चारहु बेद तें भूख है न्यारी॥

सूँघन बास को नाक दई, अरु आँख दई जग जोवन कों।
दान के काज दिये दोऊ हाथ, सो पाँउ दिये पृथी घूमन कों।
कान दिये सुनिबे कों पुरान, सु जीभ दई भज मोहन कों।
गंग कहै सब नीको दियो, पर पेट दियो पत खोवन कों॥

सुख-सामग्री (दोहा)

पान पुराना घी नया, अरु कुलवंती नारि।
चौथी पीठि तुरंग की, स्वर्ग निसानी चारि॥

 

दान में टाँच मारना (सवैया)

गंग कहे सुन लीजो गुनी अरे मंगन बीच परो मती कोई।
बीच परो तो रहो चुप हवे करी आखिर इज्जत जात है खोई।
बली के बामन के दरमियान में आन भई जो भई गति जोई।
लेत है कोई ओ देत है कोईपे शुक्र ने आंख अनाहक खोई।।

कृपण (सवैया)

धूर परै उनके धन पै जिनको धन पुन्न के काम न आवै।
धूर परै उनके तप पै जिनके तप तें अघ दूर न जावै।
काह कहूँ उन भूपन तें जिनको अरि पैर की धूर न खावै।
धाम ढहौ तिनके कहि गंग जिके घर मंगन मानन पावै।।

 

दानी और सूम (सवैया)

जौहिरी लोग जवाहिर जाँचक दानी औ सूम की कीरति गावै।
तौन के भौन को स्वाल कहा, जिनि हाल के देखे हवाल बतावै।
गंग भनै कुलधर्म छिपै नहिं चाम की टूकरी काम न आवै।
स्यारथरी में खुरी पुंछ कंथरे सिंहथरी मुकता-गज पावै॥

 

कुटेव का न जाना (सवैया)

लैहसुन गाँठ कपूर के नीर में, बार पचासक धोइ मँगाई।
केसर के पुट दै दै कै फेरि, सु चंदन बृच्छ की छाँह सुखाई।
मोगरे माहिं लपेटि धरी गंग, बास सुबास न आव न आई।
ऐसेहि नीच कों ऊँच की संगति, कोटि करौ पै कुटेव व जाई।।

शब्दार्थ:-
कवि इस छंद में लहसुन के माध्यम से यह कहना चाह रहे हैं कि लहसुन को देखिए वह अपना स्वाभाविक गुण नहीं छोड़ता चाहे कपूर के पानी में रख दो 50 बार धो लो केसर के लेप लगा लो चाहे चंदन के वृक्ष की छाया में सुखाने के लिए रख दो चाहे मोगरे के पुष्पों की टोकरी में रख दो फिर भी उसमें किसी की भी सुगंध नहीं आयेगी सिर्फ उनके अपने निजी गुण के अलावा ऐसे ही दुष्ट प्रवृत्ति के व्यक्ति चाहे कितनी भी ऊंची संगति में रह ले लेकिन वह अपने स्वभाव को कुछ भी हो जाए नहीं त्यागता दुष्ट व्यक्ति अपने दुर्गुण के प्रति दृढ़ संकल्प वाला होता है। कवि गंग के दोहे

दूर रहना (सवैया)

बाल सों ख्याल, बड़े सों बिरोध, अगोचर नारि सों ना हँसिये।
अन्न सों लाज, अगिन्न सों जोर अजानत नीर में ना धंसिये।
बैल को नाथ, घोड़े को लगाम, मतंग कों अंकुस में कसिये।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर, कूर तें दूर सदा बसिये।।

 

दाख बड़ो फल है सुखदायक, काग भखै तौ महा दुख पावै।
मिस्त्र अमोल, बहोत मिठास मै, जौ खर खावै तौ प्रान नसावै।
सीत बिना फल खाइ छुहारे तौ, ताते तुरंग को तेज नसावै।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर, सीख कुमानुष कों नहिं भावै।।

रैन भए दिन तेज छिपै अरु सूर्य छिपै अति-पर्व के छाए।
देखत सिंह छिपै गजराज, सो चंद छिपै है अमावस आए।
पाप छिपै हरिनाम जपे, कुलकानि छिपै है कपूत के जाए।
गंग कहै सुनि साह अकब्बर कर्म छिपै न भभूत लगाए।।

 

तारा की ज्योति में चंद छिपे नहीं सूरज छिपे नही घन बादर छाया।
चंचल नारी के नैन छिपे नहीं प्रीत छिपे नहीं पीठ दिखाया।
रण चड्यो रजपूत छिपे नहीं दातार छिपे नहीं घर मांगन आया।
कहे कवि गंग सुनी शाह अकबर कर्म छिपे नहीं भभूत लगाया।।

 

जट का जानहिं भट्ट को भेद कुंभार का जानहिं भेद जगा को।
मूढ़ का जानहिं गूढ़ कै बातन भील का जानहिं पाप लगा को।
प्रीति की रीति अतीत का जानहिं, भैस का जानहिं खेत सगा को।
गंग कहै सुनी साह अकबर गिद्ध का जानहिं नीर गंगा को।।

अवसर पर परख (सवैया)

नीति चले तो महीपति जानिये भोर में जानिये शील धिया को।
काम परै तब चाकर जानिये ठाकुर जानिये चूक किया को।
पात्र तो बातन माहिं पिछानिये नैन में जानिये नेह तिया को।
गंग कहै सुनि साह अकबर हाथ में जानिये हेत हिया को।।

नकार-महत्व(दोहा)

न न अच्छर सब सों निरस सुनि उपजत अनहेत।
कामिनि के मुख कबि गंग पल पल शोभा देत।।

 

पावक को जल बूंद निवारण सूरज ताप को छत्र कियों है।
व्याधि को वैध तुरंग को चाबुक चौपग को वृख दंड दियो है।
हस्ती महामद को कीये अंकुश भूत पिचास को मंत्र कीयो है।

 
औखद है सबको सुखकारी स्वभाव को औखद नाही कियो है।।

चंचल नारी की प्रीत न कीजिये प्रीत किए दुख होत है भारी।
काल परे कछु आन बने कब नारी की प्रीत है प्रेम कटारी।
लोहे को घाव दवा सो मिटे पर चित को घाव ने जाई विसारी।

गंग कहे सुनी शाह अकबर नारी की प्रीत अंगार ते छारी।। 
हंस तो चाहत मानसरोवर मानसरोवर है रंग राता।
निर की बूंद पपीहा चाहत चंद्र चकोर के नेह का नाता।
प्रीतम प्रीत लगाई चले कवि गंग कहे जग जीवन दाता।
मेरे तो चित में मित बसे अरु मित्र के चित्र की जाने विधाता।।

प्रीत करो नित जान सुजान सो और हैवान सो प्रीति कहां।
छह मास सुवा तरु सेमल सेह्यों सु देश तज्यो परदेश रहा।
फल टूटी पड़ा पंछी राज उड़े जब चोच दई तो कपास लहा।
कवि गंग कहे सुनी शाह अकबर छाछ मिली यह दूध महान।।

गंग तरंग प्रवाह चले तहँ कूप को नीर पियो न पियो।
आनि ह्रदय आदि राम बसे तब और को नाम लियो न लियो।
कर्म संजोग सुपात्र मिले तो कुपात्र को दान दियो न दियो।
जिन मात पिता गुरू सेवा करि तिन तीर्थ व्रत कियो न कियो।
जिन सेवा टहल करि संतन की तिन योग ध्यान कियो न कियो।
कहे कवि गंग सुनि शाह अकबर मूर्ख को मित्र कियो न कियो।।

मेटि के चैन करे दिन रैन ज्यौ चाकरियो न सदा सुखकारी।
ताकौ न चेत धरे गुन सौ भए नेकु सो दोष निकारत गारी।
ले है कहा हम छाड़ि महाप्रभु हैं जु महा रिझवार बिहारी।
राज को संग कहै कवि गंग सुसिंघ को संग भुजंग की यारी।।

 

ज्ञान बड़े गुणवान की संगत ध्यान बड़े तपसी संग किन्हा।
मोह बढ़े परिवार की संगत काम बढे तिरिया संग किन्हा।
क्रोध बढे नर मूढ़ की संगत लोभ बढे धन में चित् दिन्हा।
बुद्धि विवेक विचार बढे कवि गंग कहे सजन संग किन्हा।

वृन्दावन की गैल में, मुक्ति पड़ी विलखाय ।
मुक्ति कहै गोपाल सों, मेरी मुक्ति बताय ॥ [1]
पड़ी रहो या गैल में, साधु संत चलि जाँय ।
उड़-उड़ रज मस्तक लगै, मुक्ति मुक्त ह्वै जाय ॥ [2]

श्री वृन्दावन को वास भलो,
जहाँ पास बहे यमुना पटरानी।
जो जन नहाय के ध्यान धरें,
बैकुण्ठ मिले तिनको रजधानी।।
चारहुँ वेद बखान करें,
संतमुनि अरु ज्ञानी ध्यानी।
यमुना यमदूतन टारत है,
भव तारत हैं श्री राधिका रानी॥

"बली जाऊं सदा इन नैनन पे, बलिहारी छटा पे होता रहूँ।
भूलूँ ना नाम तुम्हारा प्रभु, चाहे जाग्रत स्वप्न में सोता रहूँ। ” 

राधा राधा रटत ही, बाधा हटत हज़ार ।
सिद्धि सकल लै प्रेमघन, पहुँचत नंदकुमार ॥

श्रीवृन्दावन वास दीजिये
आस यहै वृषभानदुलारी । [1]
बंशीवट तट नटनागर संग
करत केलि अवलोकौं प्यारी ॥ [2]
ललितकिशोरी हूक उठत ही
फूंकि वंसुरिया की दइ मारी । [3]
दरसन बिन चित विकल रहत अति
राधा हरौ यह वाधा हमारी ॥ [4]
- ललित किशोरी जी, अभिलाष माधुरी, विनय (4)

दीनदयाल कहाय के धायकें क्यों दीननसौं नेह बढ़ायौ ।
त्यौं हरिचंद जू बेदन में करुणा निधि नाम कहो क्यौं गायौ ॥ [1]
एती रुखाई न चाहियै तापै कृपा करिके जेहि को अपनायौ ।
ऐसौ ही जोपै सूभाव रह्यौं तौ गरीब निबाज क्यौं नाम धरायौ ॥ [2]
- श्री भारतेंदु हरिशचंद्र, भारतेंदु ग्रंथावली

जहाँ राधा राधा गावें। तहां सुनवे कों हम धावें॥ [1]
जहाँ राधा चरचा कीजे। तहाँ प्रथम जान मोहि लीजे॥ [2]
श्रीराधा मेरी संपति। श्री राधा मेरी दंपति॥ [3]
सुंदर वृषभान दुलारी। मेरे हिय ते होत न न्यारी॥ [4]
- ब्रज के सवैया  

काया शुद्ध होत जब ब्रज रज उड़ि अंग लगे।
माया शुद्ध होत कृष्ण सेवा पे लुटाये ते।।
शुद्ध होत कान कथा कीर्तन के श्रवण किये।
नैंन शुद्ध होत दर्श युगल छवि पाये ते।।
हाथ शुद्ध होत श्री ठाकुर की सेवा किये।
पावं शुद्ध होत श्री वृन्दावन जाये ते।।
मस्तक शुद्ध होत श्री बिहारी जी के चरण परे।
रसना शुद्ध होत श्यामा-श्याम गुण गाये ते।।
 
जिसे एक बार जीवन में प्रभु का प्यार मिलता है,,
उसे बस आँसुओं के हार का उपहार मिलता है,,,
न पूछो उस दिल की बेकली का हाल मत पूछो,,
न तन से प्राण जाते है न प्राणाधार मिलता है,,,
भला किसको दिखाए मर्ज की बढती हुई मंजिल,,
न कोई वैद्य मिलता है न कुछ उपचार मिलता है,,,
और दूर रहने पर भी न जाने क्या क्या बात होती है,,
ह्रदय के तार से जब उस ह्रदय का तार मिलता है,,,
और जहाँ कुछ छलछलाता अश्रुजल दिखलाई देता है,,
उसी मानस में हमें वह साँवला सरकार मिलता है,,,
 
“मोहन ! नैना आपके नौका के आकार..
 जो जन इनमें बस गये हो गये भव से पार “
खुसरो दरिया प्रेम का उलटी वा की धार।
जो उभरा सो डूब गया जो डूबा सो पार।।
आ पिया इन नैनन में जो पलक ढांप तोहे लूँ
न मैं देखूँ गैर को न तोहे देखन दूँ
श्याम सुंदर मन मोहन,तूने मारा नयन नजारा है
बिकल हुआ मेरा दिल,दिलवर बिखरा पारा-पारा  है  
किससे कहें ओर कौन सुने, कसके हिये जख्म करारा  है 
सरस  माधुरी दर्शन देना, मरहम यही हमारा है  
 काजर डारूँ किरकिरा जो सुरमा दिया न जाये
जिन नैनन में पी बसे तो दूजा कौन समाये
 
कजरारी तेरी आँखों में, क्या भरा हुआ, कुछ टोना है 
तेरा कुह्सन औरो का मरण, बस जान से हाथ धोना है
 हाथीके दांत के खिलौना बने भाँती भाँती, बाघन की खाल तपस्वी मन भाई है l
 सामर की खाल को बाँधत है सिपाही लोग, गैड़ा की खाल राजा के मन भाई है l
 मृगन की खाल को ओढ़ते जती सती, बकरे की खाल ते या ढोलक बनाई हैl 
 कहे कवि दयाराम के भजन बिना, मानस की देह कछु काम नही आयी है l
 
मेरी भव बाधा हरो, राधा नागर सोए l
जा तन की झाई परै, श्याम हरित दुति होय ll 
ब्रज रज की महिमा अमर, ब्रज रस की है खान,
ब्रज रज माथे पर चढ़े, ब्रज है स्वर्ग समान।
 
भोली-भाली राधिका, भोले कृष्ण कुमार,
कुंज गलिन खेलत फिरें, ब्रज रज चरण पखार।
 
ब्रज की रज चंदन बनी, माटी बनी अबीर,
कृष्ण प्रेम रंग घोल के, लिपटे सब ब्रज वीर।
 
ब्रज की रज भक्ति बनी, ब्रज है कान्हा रूप,
कण-कण में माधव बसे, कृष्ण समान स्वरूप।
राधा ऐसी बावरी, कृष्ण चरण की आस,
छलिया मन ही ले गयो, अब किस पर विश्वास।
 
ब्रज की रज मखमल बनी, कृष्ण भक्ति का राग,
गिरिराज की परिक्रमा, कृष्ण चरण अनुराग।
 
वंशीवट यमुना बहे, राधा संग ब्रजधाम,
कृष्ण नाम की लहरियां, निकले आठों याम।
 
गोकुल की गलियां भलीं, कृष्ण चरणों की थाप,
अपने माथे पर लगा, धन्य भाग भईं आप।
 
ब्रज की रज माथे लगा, रटे कन्हाई नाम,
जब शरीर प्राणन तजे मिले, कृष्ण का धाम।

घर की जरूरतों ने मुसाफिर

 

ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की

आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है||

अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे

जिसकी जितनी जरूरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे ||

बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर

मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है ||

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका

चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ||

ऐसा नहीं कि मुझमेंकोई ऐब नहीं है

पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फरेब नहीं है||

सोचा था घर बनाकर बैठूँगा सुकून से

पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला मुझे ||

जीवन की भागदौड़ में क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?

हँसती-खेलती जिन्दगी भी आम हो जाती है ||

एक सबेरा था जब हँसकर उठते थे हम

और आज कई बार बिना मुस्कुराए ही शाम हो जाती है||

कितने दूर निकल गए रिश्तों को निभाते-निभाते

खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते-पाते ||

लोग कहते हैं हम मुस्कुराते बहुत हैं

और हम थक गए दर्द छुपाते-छुपाते ||

खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ

लापरवाह हूँ ख़ुद के लिए मगर सबकी परवाह करता हूँ ||

मालूम है कोई मोल नहीं है मेरा फिर भीकुछ अनमोल लोगों से रिश्ते रखता हूँ।

Attitude Shayari In Hindi

1. ज़मीं पर रह कर आसमान छूने की फितरत है मेरी,
पर गिरा कर किसी को उपर उठने का शौक नहीं मुझे।

2.दुश्मनो को सजा देने की एक तहजीब है मेरी,
मै हाथ नहीं उठाता बस नजरों से गिरा देता हूँ।

3.अक्सर वही लोग उठाते हैं हम पर उँगलियाँ,
जिनकी हमे छुने की औकात नहीं होती।

4.अभी कांच हूँ इसलिए दुनिया को चुभता हूँ,
जब आइना बन जाऊंगा पूरी दुनिया देखेगी।

5.अभी मुट्ठी नहीं खोली हैं मैंने आसमान सुन ले,
तेरा बस वक़्त आया है मेरा तो दौर आयेगा।

6.ज़िंदगी से हम अपनी कुछ उधार नही लेते,
कफ़न भी लेते है तो अपनी ज़िंदगी देकर

7. भीड़ में खड़ा होना मकसद नहीं हैं मेरा,
बल्कि भीड़ जिसके लिए खडी है वो बनना है मुझे

8.अभी तो हम मैदान में उतरे भी नहीं,
और लोगों ने हमारे चर्चे शुरू कर दिये!!

9.जब से मुझे पता चला है कि मेरा आत्मविश्वास मेरे साथ है,
तबसे मैने ये सोचना बंद कर दिया कि कौन मेरे खिलाफ है!!

10.ये मत समझ कि तेरे काबिल नहीं हैं हम,
तड़प रहे हैं वो जिसे हासिल नहीं हैं हम।

11.गम ए हयात परेसान न कर सकेगा मुझे,
के आ गया हैं हुनर मुझको मुस्कुराने का।

12.अंजाम की परवाह होती तो,
हम मोहब्बत करना छोड़ देते,
मोहब्बत में तो जिद्द होती है,
और जिद्द के बड़े पक्के हैं हम!! 

13.शायरीयो का बादशाह हूँ और कलम मेरी रानी है,
अल्फाज़ मेरे गुलाम है, बाकी रब की महेरबानी है

14. चलो आज फिर थोडा मुस्कुराया जाये,
बिना माचिस के कुछ लोगो को जलाया जाये

15.चलो आज फिर थोडा मुस्कुराया जाये,
बिना माचिस के कुछ लोगो को जलाया जाये

16.अभी सूरज नहीं डूबा ज़रा सी शाम होने दो,
मैं खुद ही लौट जाऊंगा मुझे नाकाम होने दो,
मुझे बदनाम करने का बहाना ढूढ़ते क्यों हो,
मैं खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले नाम होने दो।

17.मिला हूँ ख़ाक में ऊँची मगर औकात रखी है,
तुम्हारी बात थी आखिर तुम्हारी बात रखी है,
भले ही पेट की खातिर कहीं दिन बेच आया हूँ ,
तुम्हारी याद की खातिर भी पूरी रात रखी है।

18. आज मैंने दिल को थोड़ा साफ किया,
कुछ को भुला दिया कुछ को माफ किया।

19.जो हुक्म करता है वो इल्तिजा भी करता है,
आसमान भी कहीं जाकर झुका करता है,
अगर तू बेवफा है तो ये भी सुन ले,
इंतज़ार मेरा कोई बहां भी करता है।

20.आग लगाना मेरी फितरत मे नहीं,
मेरी सादगी से लोग जले तो मेरा क्या कसूर।

21.ठहर सके जो लबों पर हमारे,
हंसी के सिवाय मजाल किसकी।

22.तेरी मोहब्बत को कभी खेल नहीं समझा,
वरना खेल तो इतने खेले हैं कि कभी हारे नहीं।

23.बिकने वाले और भी हैं जाओ जाकर खरीद लो,
हम कीमत से नहीं किस्मत से मिला करते हैं।

24.शांखो से गिर कर टूट जाऊ मै वो पत्ता नही,
आंधियो से कह दो कि अपनी औकात मे रहें। 

25.अकड़ती जा रही हैं हर रोज गर्दन की नसें,
आज तक नहीं आया हुनर सर झुकाने का।

26.माना के इस ज़मीं को गुलज़ार न कर सके,
कुछ खार कम तो कर गए गुजरे जिधर से हम।

27.ये मत समझ के तेरे काबिल नहीं हैं हम,
तड़प रहें हैं वो जिन्हें हासिल नहीं हैं हम।

28.कौन कहता है हम उसके बिना मर जायेंगे
हम तो दरिया है समंदर में उतर जायेंगे
वो तरस जायेंगे प्यार की एक बून्द के लिए
हम तो बादल है प्यार के किसी और पर बरस जायेंगे 

29.सर झुकाने की आदत नहीं है,
आँसू बहाने की आदत नहीं है,
हम खो गए तो पछताओगे बहुत,
क्युकी हमारी लौट के आने की आदत नहीं है!

30.इतना भी गुमान न कर अपनी जीत पर ऐ बेखबर
शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं

31.मौसम बदल गये जमाने बदल गये
लम्हों में दोस्त बरसों पुराने बदल गये
दिन भर रहे जो मेरी मौहब्बत की छॉंव में
वो लोग धूप ढलते ही ठिकाने बदल गये 

 

shayari dil ki

 जो तार से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो साज पे गुजरी है वो किस दिल को खबर है

वो कौन है दुनिया में जिसे गम नहीं होता
किस घर में खुषी होती है मातम नहीं होता
क्या सुरमा भरी आँखांे से आँसू नहीं गिरते
क्या मेंहंदी लगे हाथों से मातम नहीं होता

सबने मिलाए हाथ यहां तीरगी के साथ
कितना बड़ा मजाक है ये रोषनी के साथ
किस काम की रही ये दिखावे की जिंदगी
वादे किये किसी से निभाई किसी के साथ
शर्ते लगाई नहीं जाती दोस्तो के साथ
कीजे मुझे कबूल मेरी हर कमी के साथ
---वसीम बरेलवी ---
कीमत तो खूब बड़ गई शहरों मे धान की
बेटी विदा न हो सकी फिर भी किसान की
-- रईस अंसारी
सजा के चेहरे पर सच्चाई जो निकलता है
वो जिसका घूस से सब कारोबार चलता है
वो जिनके घर में दिया तक नहीं जलाने को
ये चांद उन्हीं के लिए निकलता है
--रईस अंसारी--
जमीनों में जमाना सोना चाँदी जर दबाता है
मगर वह पांव के नीचे मोह अख्तर दबाता है
मोहब्बत आज भी जिंदा है इन कच्चे मकानों में
मेरा बेटा बड़ा होकर भी मेरा सर दबाता है।
-जोहर कानपुरी-
जबान मेरी अच्छी है मेरा बयान अच्छा है
बस इसलिये कि मेरा खानदान अच्छा है
छतें टपकती  है लेकिन खुलूस है तो यहाँ
तेरे महल से ये कच्चा मकान अच्छा है
अभी बाकी है बुर्जुगों का एहतराम यहाँ
मेरे लिये तो मेरा हिन्दुस्तान अच्छा है।
-जोहर कानपुरी-
घास पर खेलता है बच्चा
और माँ मुस्कुराती है
न जाने क्यों ये दुनिया
काबा और सोमनाथ जाती है
- नीदा फाजली -
माँ के कदमों तले ढूंढले जन्नत अपनी
वरना तुमको नहीं जन्नत मिलने वाली
जिनके माँ बाप ने फुटपाथ पर दम तोड़ दिया
उनके बच्चों को कोई छत नहीं मिलने वाली
- हसन काजमी -
जब भी मेरी कष्ती सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है।

हमारा तीर कुछ भी हो निषााने पर पहुँचता है
परिंदा चाहे कुछ भी हो ठिकाने पर पहुँचता है
अभी ऐ जिंदगी तुमको हमारा साथ देना है
अभी बेटा हमारा सिर्फ काँधे तक पहुँचता है
धुँआ बादल नहीं होता कि बचपन दौड़ पड़ता है
अपनी खुषी से कौन बच्चा कारखाने तक पहुँचता है
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बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊंची दीवार हर घड़ी खतरे में रहती है
ये ऐसा कर्ज है जिसको अदा मैं कर नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूं माँ मेरी सजदे में रहती है
  -मुनव्वर राना

मेरी तमन्ना है मैं फिर से फरिष्ता हो जाऊं ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
-मुनव्वर राना
ठंडे दिल से सोच के देखो , क्या होगा जब कल के लोग
पुंछेगे क्यों नस्ल है गुंगी , तुम तो सुखनवर कितने थे
एक गिरा था आँख से आसूँ माँ की पत्थर बह निकले
तुम क्या जानो ऐसे कतरे , आँख के अंदर कितने थे
इस तरह हासिल जहाँ में हमने जन्नत की नहीं
  -माजिद -
क्या सीरत क्या सूरत थी
माॅं ममता की मूरत थी
पांव छुए और काम हुए
अम्मा एक महूरत थी ।
                                 -मंगल नसीम
शायद ये नेकियाँ है हमारी कि हर जगह
दस्तार के बगैर भी इज्जत वही रही
खाने की चीजें माँ ने जो भेजी है गावं से
बासी भी हो गयी है तो लज्जत वही रही
-मुनव्वर राणा-
धुंए को अब्र और गम को मुसर्रत करते रहते है
हम जहन्नुम को जन्नत करते रहते हैं
हमें इन झुर्रियों में आयतों का अक्स दिखता है
हम अपने माँ के चेहरे की हिफाजत करते रहते है।
सच बोलने के तौर तरीके नहीं रहे
पत्थर बहुत है शहर में शीषे नहीं रहे
खुद मर गया था जिनको बचाने में पहले बाप
अबकेे फसाद में वो ही बच्चे नहीं रहें
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कोई दरख्त या सायबा रहे न रहे
बुजुर्ग जिंदा रहे आस्मां रहे न रहे

हमारे कुछ गुनाहो की सजा साथ चलती है।
अब हम तन्हा नहीं चलते दुआ भी साथ चलती है
अभी जिंदा है मां मेरी मुझे कुछ हो नहीं सकता
मैं जब घर से निकलता हूॅ दुआ भी साथ चलती है।
                                           मुनव्वर
मिट्टी में मिला दे मैं तो हो नहीं सकता
अब इससे ज्यादा मैं तेरा हो नहीं सकता
दहलीज पर रख दी है किसी शख्स ने आँखे
दिया कोई हो इतना वो रोषन हो नहीं सकता
-- मुनव्वर --
ये कौन जा रहा है मेरा गांव छोड़कर
आँखे भी रो रही है समंदर निचोड़कर
ना तूफानों का खौफ है ना आंधियों का डर
तुमने दिये बनाए हंै सूरज को जोड़कर

ऐसी हसीन बहारों की रात हैं
एक चाॅद आसमां पे है एक मेरे पास है
ऐ देने वाले तूने तो कोई कमी ना की
अब किसको क्या मिला ये मुकद्दर की बात है

महफिल में चार चाॅद लगाने के बावजूद
जब तक ना आए आप उजाला न हो सका

हर पल ध्यान में बसने वाले लोग अफसाने हो जाते है
आॅखे बूढ़ी हो जाती हैं, ख्वाब पुराने हो जाते हैं
सारी बात ताल्लुक वाली जज्बों की सच्चाई तक है
मेल दिलों में आ जाए तो घर विराने हो जाते है
-- अमजद --
तुम जिस ख्वाब में आँखे खोलो उसका रूप अमर
तुम जिस रंग का कपड़ा पहनो वह मौसम का रंग
तुम जिस फूल को हॅसकर देखो कभी ना वो मुरझाए
तुम जिस हरफ पर उंगली रखदो वो रोषन हो जाए
--अमजद--
     
     
        विदेषों मे बसने पर
एक जबरे वक्त है कि सहे जा रहे है हम
और इसी को जिंदगी कहे जा रहे है हम
रहने की ये जगह तो नहीं है मगर यहाँ
पत्थर बसे हुए है मगर रहे जा रहे है हम
--अमजद--
रोषन जो अपने दोस्तों की जात हो गयी
मालूम हमको अपनी  भी औकात हो गयी
मकतल में हमको कोई भी दुष्मन नहीं मिला
अपने ही दोस्तो से मुलाकात हो गयी
--अमजद--

ये फांकाकषी रोजे की आदत बनने वाली है
ये कमजोरी मेरे बच्चों की ताकत बनने वाली है
--तनवीर गाजी--
जिसे देखते ही खुमारी लगे
उसे उम्र सारी हमारी लगे
हँसी सूरते और भी है मगर
वो सब सैकड़ांे में हजारी लगे
वो ससुराल से आयी है मायके
उसे जितना देखो वो प्यारी लगे
--निदा फाजली--
वो जरा सी बात पर बरसांे के याराने गये
पर ये हुआ कि लोग पहचाने गये
में इसे शोहरत कहँू या मेरी रूसवाई कहूँ
मुझसे पहले मेरे अफसाने गये

जल रहे है माॅं की आॅंखो में मोहब्बत के चिराग
उसने दुनिया में जन्नत का नजारा रख दिया
--असर सिद्धी की --

हालात के कदमों पे कलंदर नहीं गिरता
टूटे भी ये तारे तो जमीं पर नहीं गिरता
गिरते है समंदर में बड़े शौक से दरिया
लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता

रहकर बंगले में भी अखलाक नहीं भूले हमने
अपने बंगलों से दिये सड़को पे उजाले हमने
दौलत आई तो कुत्ते नहीं पाले हमने
--जोहर--
ये बात सच है कि आॅधियां खुदा चलाता है
मगर हमारे दिये भी तो वो ही बनाता है
--जोहर--
मेरे चेहरे पर ममता की फेरहानीचमकती है
मैं बूढ़ा हो रहा हूं फिर भी पेषानी चमकती है
--मुनव्वर राना--
मियाॅ मैं शेर हूॅं शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
लहजा नर्म भी कर लें झल्लाहट नहीं जाती

सूफियान काजी
करे खुद नाज जिनपे साथ ये संसार बेटे दे
जो माहिर हो बड़े फन में वो फनकार बेटे दे
मेरे मौला मेरी बस एक ही दरखास्त है तुमसे
जो लम्बी उम्र देना हो तो खिदमतदार बेटे दे

चमकती शोख चंचल आॅख गम में छोड़ आये हैं
हम अपना अक्स उसकी चष्मे नम में छोड़ आये है
बहुत खिदमत वहाॅ होगी इसी खातिर तो ऐ यारों
अपाहिज बाप को हम आश्रम में छोड़ आये है।

भला कैसे खिलेंगे फूल खुषियों के उस आॅगन में
अपाहिज बाप जब घर में हो और औलाद लंदन में
वो जिसके सर से साया बाप का कम उम्र में उठ जाए
उसे मौका शरारत का कहां मिलता है बचपन में

चूल्हा फूंकते वक्त धुंए से आॅख भर जाती है
उस आलम में देख के माॅ को भुख मेरी मर जाती है

वफादारी मोहब्बत आपसी रिष्ते निभाती थी
वो मां थी जो हमेषा प्यार के गजरे बनाती थी


मोहब्बतो को निभाने का दौर खत्म हुआ
वो इंक थाल में खाने का दौर खत्म हुआ

बेटे के साथ अबके बहू भी अरब गयी
किस खत का अब बूढ़े बाप को इंतजार है

न कमरा जान पाता है ना अंगनाइ समझती है
कहां देवर का दिल अटका है ये भौजाई समझती है
हमारे और उसके बीच एक धागे का रिष्ता है
हमें लेकिन हमेषा वो सगा भाई समझती है


कोयल बोले या गौरैया अच्छा लगता है
अपने गांव में सब कुछ भैया अच्छा लगता है
तेरे आगे माॅ भी मुझको मौसी जैसी लगती है
तेरी गोद में गंगा मैया अच्छा लगता है
माया मोह बुढ़ापे में बढ़ जाता हैं
बचपन में बस एक रूपैया अच्छा लगता है

बेटी बनाके लाए थे लेकिन खबर न थी
बेटा मेरा दबा के दुल्हन बैठ जाएगी
सगीर मजंर खडंवा

मैं बात करता नहीं पर अंधेरे से डरता हूूॅ माॅ
यों तो मैं दिखलाता नहीं पर तेरी परवाह करता हूंॅ माॅ
प्रसुन्न जोषी

बदन से अब मेरी जागीरदारी खत्म होती है
मेरे बेटे तेरी बूढ़ी सवारी खत्म होती है

माॅ बाप की आगोष तो फूलों की तरह है
फिर क्यों तेरा किरदार बबूलों की तरह है

चलन नथिया पहनने का किसी बाजार में होगा
शराफत नाक छिदवानी है, धागा डाल देती है



          जीवन दर्षन
रात की धड़कन, जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम, जिम्मेदारी रहती है
वो मंजील पर अक्सर देर से पहुॅचे है
जिन लोगो के पास सवारी रहती है

उसूलों पर जहाॅ आँच आऐ टकराना जरूरी है
जो जिंदा हूॅं तो जिंदा नजर आना जरूरी है
नयी उम्रो की मुख्तयारियों को कौन समझाए
कहाॅ से बनकर चलना है कहाॅ जाना जरूरी है
थके हारे परिंदे जब बसेरों के लिये लौटें
सलीका मंद शाखों का लचक जाना जरूरी है

मोहब्बत में कषिष रखने पर शर्माना जरूरी है
मेरे होठों पे अपनी प्यास रख दो फिर सोचो
कि इसके बाद भी दुनिया में कुछ पाना जरूरी है

फिर कभी किसी कबूतर की इमानदारी पर शक मत करना
वो तो इस घर को इसी मिनारे से पहचानता है
शहर वाकिफ है मेरे फन की बदौलत मुझसे
आपको जज्बा-ए-दस्तार से पहचानता है

बेखुदी में रेत के कितने समंदर पी गया
प्यास भी क्या शह हैं मैं घबराकर पत्थर पी गया
मयकदे में किसने कितनी पी ये तो खुदा जाने मगर
मयकदा तो मेरी बस्ती के कई घर पी गया

जिस्म पर मिट्टी मलकर खाक हो जाएगें हम
ऐ जमीं एक दिन तेरी खुराक हो जाऐगे हम
ऐ गरीबी देख रस्ते में हमें मत छोड़ना
ऐ अमीरी दूर रह नापाक हो जाएगें हम

बच्चों के छोटे हाथो को चाॅद सितारे छुने दो
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे

हमारी दोस्ती से दुष्मनी भी शर्मायी रहती है
हम अकबर है हमारे दिल में जोधाबाई रहती है

फटी कमीज, नूची आस्तीन कुछ तो है
गरीब ऐसी दषा में कुछ तो है
लिबास कीमती रखकर शहर नंगा है
हमारे गावं में मोटा-महीन कुछ तो है

गिरकर उठना , उठकर चलना
ये क्रम है संसार का
कर्मवीर को फर्क न पड़ता
किसी जीत या हार का

लाख खौफदारी हो जलजले के आने का
सिलसिला न छोड़ेगे हम भी पर बनाने का
कामयाबी तय करती है हौसलों की मजबूती
दिल में हौसला रखिये कष्तियाॅ चलाने का

सर काट के फिर सर पे मेरे वार करेगा
दुष्मन नहीं ये काम मेरा यार करेगा

खुषी से कब कोई मासूम करतब दिखाता है
ये मजबूरी  है पापी  पेट रस्सी पर चलाता है

यहाॅ हर शख्स हर पल हादसा होने से डरता है
खिलौना है जो मिट्टी का फना होने से डरता है
मेरे दिल के किसी कोने में एक मासूम-सा-बच्चा
बड़ो की देखकर दुनिया बड़ा होने से डरता है
न बस में जिंदगी इसके न काबू मौत पर इसका
मगर इंसान फिर भी कब खुदा होने से डरता हूं
अजब यह जिंदगी की कैद है दुनिया का हर इसां
रिहाई मांगता है और रिहा होने से डरता हैं

समझते थे मगर फिर भी न रखी दूरियां हमने
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने

मड़ दो चाहे सोने में
आइना झूठ बोलता ही नहीं

हौसला हो तो उड़ानों में मजा आता है
पर बिखर जाए हवाओं में तो गम मत करना

आप हर दौर की तारीख उठा कर देखें
जुल्म जब हद से गुजरता है फना होता है

रस्में ताजीम न रूसवा हो जाए
इतना मत झुकिये कि सजदा हो जाए
कि जिनको दस्तार मिली है उनको
सर भी मिल जाए तो अच्छा हो जाए

वो जहाॅं भी रहेगा रोषनी लुटाएगा
चिराग का कोई अपना मकां नही होता

वो दौलत और बरकत अपने याद आया
जो अपने घर से लड़कियों को फेंक देते है
तरक्की हो गयी कितनी हमारे मुल्क में देखो
भिखारी एक रूपया और अठन्नी फेंक देते है

जब मेरी उड़ानों को आसमां याद आया
लोग पर कतरने को कैचियां उठा लाए

चिंगारियों को शोला बनाने से क्या मिला
तूफान सो रहा था जगाने से क्या मिला
आॅधी तेरे गुरूर का सर हो गया बुलंद
वरना तुझे चिराग बुझाने से क्या मिला
षिकवा तो कर रहे हो जमाने से क्या मिला

गुजर चुका है जमाना वो इंतजारी का
कि अब मिजाज बना लीजिए षिकारी का
वो बादषाह बन बैठे हैं मुकद्दर से
मगर मिजाज है अब तक वो ही भिखारी का
मंजर
अपने घर में भी सर झुकाकर आया हूं मैं
इतनी मजदूरी को बच्चों की दवाई खा जाएगी

सच कहूं मुझको ये उनमान बुरा लगता हैं
जुल्म सहता हुआ इंसान बुरा लगता है
उनकी खिदमत तो बहुत दूर बहू बेटों को
बूढ़े मो बाप का फरमान बुरा लगता है
किस कदर हो गयी मषरूफ ये दुनिया अपनी
एक दिन ठहरे तो मेहमान बुरा लगता है

डरने वाला हजार बार मरता है
मरने वाला केवल एक बार मरता है

दुष्मन वही बने रहे जो वे थे
धोखा तो उन लोगों से
हुआ जो दोस्त होने का दम भरते रहे हर दम

हमारा दिल तो मुकम्मल सुकून चाहता है
मगर ये वक्त कि हमसे जुनून चाहता है
फरेब इतने दिये हैं उसे सहारों ने
वो छत भी अपने लिये बेसूकूल चाहता है
सफर में बर्फ हवाओं से नींद आती है
लहू हमारा दिसम्बर में जून चाहता है



सियासत किस हुनरमंदी से सच्चाई छिपाती है
जैसे सिसकियों का गम शहनाई छिपाती है
जो इसकी तह में जाता है फिर वापस नहीं आता
नदी हर तैरने वाले से गहराई छिपाती है
ये बच्ची चाहती है और कुछ दिन माॅ को खुष रखना
ये कपड़ो की मदद से अपनी लंबाई छिपाती है

वो जालिम मेरी ख्वाइष ये कहकर टाल जाता है
दिसम्बर जनवरी में कोई नैनिताल जाता है

सो जाते है सड़को पर अखबार बिछाकर
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
दावत तो बहुत दूर हम जैसे कलंदर
हर एक के पैसे से दवा भी नहीं खाते

मोहब्बत भी अजीब शह है कोई परदेस में रोए
तो फौरन हाथ की एकाध चूड़ी टूट जाती है
कभी कोई कलाई एक चूड़ी को तरसती है
कहीं कंगन के झटके से कलाई टूट जाती है
लड़कपन में किये वादे की कीमत कुछ नहीं होती
अंगूठी हाथ में रहती है मंगनी टूट जाती है
किसी दिन प्यास के बारे में उससे पूछिये जिसकी
कुएं में बाल्टी रहती है रस्सी टूट जाती है

लोग मतलब परस्त होते हैं बहती गंगा में हाथ धोते है
नींद आती नहंी अमीरों को हम गरीब चैन की नींद सोते है

मेरे हाथों मे पढ़ गये छाले जलती बस्ती बुझा के आया हूं
जिद थी सूरज को देखने की बहुत अपनी आॅखे गंवा के आया हूं

किस काम की ऐसी  परदेस में कमाई
जब बाप की मैयत में नजर औलाद न आई

एक दिन सब पर मौत की देवी टूटकर मेहरबां होती है
कब्र की नींद क्यों ना मीठी हो उम्र भर की थकान होती है

वो जिनका घर बसाने के लिये खुद लुट गया हूॅं मैं
उन्हंे इस शहर में बस मेरा ही घर अच्छा नहीं लगता
तू सच्चा है तो गम कैसा अगर दुनिया मुखालिफ है
अंधेरो को कभी नूरे सहर अच्छा नहंीं लगता

चिरागांे को ये चाहिये बचाए जिंदगी अपनी
हवाएं तो सफर में है हवाएं कैसे कम चले
बगैर कुछ कहे खुलेगा कैसे राजे गम
जबाने बंद हंै अगर तो हाथों की कलम चले

हर आदमी अपने मुकाम से एक कदम दूर
हर एक के घर में कमरा एक ही कम है

आंगन में जहाॅं खेलने बच्चे नहीं आते
उस घर में यू लगता है फरिष्ते नहीं आते
खुषियांे के लिये भेजे हैं बच्चों को अरब हम
और खुषियों की घडि़यांे में ही बच्चे नहीं आते
अपनी सच्चाई से सपनों की तरफ मत जाना
गांव में हो तो शहरों की तरफ मत जाना
माॅऐ कहती थी तूफानों का रूख मोड़ आओ
माॅऐ कहती है कि लहरों की तरफ मत जाना

जिस दिन भी मैं और तुझे हम हो जाएगा
उस दिन घर का पानी भी जमजम हो जाएगा
माॅ के कदमों पर सर रखकर सो जाओ
दर्द हो चाहे जैसा भी कम हो जाएगा

रिष्तो की कहकषों सरे बाजार बेचकर
घर को बना लिया दरो दीवार बेचकर
शोहरत की भुख हमको कहा ले के आ गयी
हम मोहतरम हूए भी तो किरदार बेचकर
वो शख्स सूरमा है पर बाप भी तो है
रोटी खरीद लाया है तलवार बेचकर
जिनकी कलम ने मुझ तो बोये थे इंकलाब
अब पेट पालता है वो अखबार बेचकर

इस दौर में शायर पर अजब वक्त पड़ा है
बोेले तो जुबां जाए ना बोले तो हुनर जाए
दस्तार की हुकूमत पर कोई हर्फ ना जाए
दस्तार बुर्जुगों की है सर मेरा है सर जाए

लोगों के दिलों और दुआओं में मिलेगा
वो शख्स कहाॅ तुमको गुफाओं में मिलेगा
ठहरे हुए मौसम में कहाॅ उसका ठिकाना
शाहीन है वो तेज हवाओं में मिलेगा

जिंदगी से कुछ न देने की षिकायत क्या करूं
सोचता हूंॅ जिंदगी तुमको मैंने क्या दिया
मैं गिरा तो वो उठा मुझको गिराने के लिये
भीड़ में दानिष्ता खुद जिसने मुझे धक्का दिया

ताल्लुक रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना हो नामुमकीन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

गुलामों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं
मुहब्बत करने वाले खून सूरत लोग होते है
यही अंदाज है मेरा समंदर फतह करने का
मेरी कागज की कष्ती में कई जुगनू भी होते है

इलाजे दर्दे दिल तुमसे मसीहा वो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
तुम्हें चाहूॅ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूॅ
मेरा दिल फेर दो मुझसे यह सौदा हो नहीं सकता

कमाले बुजदिली है तो क्या कुछ हो नहीं सकता
गर जुर्रत है तो क्या कुछ हो नहीं सकता
उभरने ही नहीं देती है ये मजबूरियां दिल की
नहीं तो कौन सा कतरा हैं जो दरियां हो नहंी सकता

रहने दे आसमां जमीं की तलाष कर
सब कुछ यही है ना कही और तलाष कर
हर आरजू पूरी हो तो जीने का क्या मजा
जीने के लिये बस एक कमी की तलाष कर

क्या आफताब लोग थे मिट्टी में मिल गये
मिट्टी का एक घर बनाने की फिक्र में
कुछ लोग हैं कद मेरा घटाने कि फिक्र में
मैं हूॅं सितारे तोड़के लाने की फिक्र में

लहजे की उदासी  कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो रोज हमारे साथ रहो चेहरे पे चमक आ जाएगी
ये चाॅंद सितारों की महफिल मालूम नहीं कब रोषन हो
तुम पास रहो तुम साथ रहो जज्बों मे कसक आ जाएगी
कुछ देर में बादल बरसेंगे कुछ देर में सावन झूमेंगे
तुम जुल्फ यूहीं लहराये रहो मौसम में सनक आ जाएगी

आॅखो का था कसूर ना दिल का कसूर था
आया जो मेरे सामने मेरा गुरूर था
वो थे ना मुझसे दूर न मैं उनसे दूर था
आता ना था नजर तो नजर का कुसूर था
साकी की चष्में मस्त का क्या कीजिये बयान
इतना सुरूर था कि मुझे भी सुरूर था

तुम्हीं को आॅख भर देख पाऊं मुझे इतनी बिनाई बहुत है
नहीं चलने लगी यूं ही मेरे पीछे ये दुनिया मैंने ठुकराई बहुत है

शजर के कद ना शाखों की लंबाई से डरता हॅू
किसी पर्वत ना पर्वत की ऊॅंचाई से डरता हूॅ
समंदर नापना चुटकियों का खेल है लेकिन
तुम्हारे दिल की आॅखों की गहराई से डरता हूॅ
मेरी बस्ती की बेटी मायके में जबसे बैठी है
न जाने क्यों मैं सपने में भी शहनाई से डरता हूॅ
अभी इस शख्स ने तहजीब का दामन नहीं छोड़ा
मैं पापा बन गया हूॅं पर बड़े भाई से डरता हूॅ
मैं इज्जत से जिऊॅं दुनिया में जितने भी दिन जिऊॅ
मैं मरने से नहीं डरता रूसवाई से डरता हूॅ

ये दिल की लगी कम क्या होगी ये इष्क भला कम क्या होगा
जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा

कम होते है जमाने में ऐसे लोग
जिन्हें चाहत की पहचान होती है
सोच लेना किसी पर मरने से पहले
लुटाने के लिये सिर्फ एक ही जान होती है
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है
दिल ना चाह कर भी खामोष रह जाता है
कोई सब कुछ कहकर दोस्ती जताता है
कोई कुछ ना कहकर भी दोस्ती निभाता है

कौन सी बात को हां कैसे कही जाती है
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है

वो कहते है ये मेरा तीर है जो लेकर निकलेगा
मैं कहता हूँ ये मेरी जान है बड़ी मुष्किल में निकलेगी

खुदा करें कि बारिषों में बिछड़े हम
कि मेरी आॅख में आसूं न नजर आये तुझे

नक्षा लेकर हाथ में बच्चा है हैरान
कैसे दीपक खा गई उसका हिन्दुस्तान

ईसा,  अल्लाह,  ईष्वर सारे मंतर सीख
जाने कब किस नाम पर मिले ज्यादा भीख

बादलों से सलाम लेता हूँ, वक्त को मैं थाम लेता हूँ
मौत मर जाती है पल भर के लिये जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ

अपनी मस्ती की शाम मत देना
दोस्तों को ये काम मत देना
जिनको तमीज ना हो पीने की
उनके हाथों में जाम मत देना

इतने बदनाम हुए हम इस जमाने में
तुम्हें लग जाएगी सदियाँ हमें भुलाने में
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर
ऐसे ही लोग चले आए हैं मयखाने में

मिले न खुद जो छलककर वो प्यार मत लेना
खुषी कभी भी किसी से उधार मत लेना
कभी-कभी तो पुराने ही काम आते हैं
तू घर के सारे कैलेंडर उतार मत लेना
दवा के बदले जहर ही मिलेगा दुनिया में
कभी गमों में उसे तू पुकार मत लेना

सितारे तोड़ने की मेरी ख्वाहिष तुमसे पूरी हो
दुआ है तुम सभी कद से मेरे ऊँचे निकल जाओ

तरक्कियों की दौड़ में उसी का दौर चल गया
बना के अपना रास्ता जो भीड़ से निकल गया
कहाँ तो बात कर रहा था खेलने की आग से
जरा सी आंच क्या लगी तो मोम सा पिघल गया

कामयाबी के वो सफात आ जाता है
काबू करना जिसे जज्बात पे आ जाता है
बात करते हुए डरती है शराफत उससे
चंद लम्हों में जो औकात पे आ जाता है

तुम अक्सर जहन मेरा होष वाला छीन लेेते हो
अंधेरा बोट देते हो उजाला छीन लेते हो
अमीरे शहर होने का यकीनन हक तुम्ही को है
कि तुम मुफलिस के मुँह का भी निवाला छीन लेेते हो



सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इष्क के इम्तिहां और भी है
इसी रात दिन में उलमा कर न रह लेना
जमीं और भी है आस्मां और भी है

निर्माण घर में बैठ कर होता नहीं कभी
बुद्ध की तरह कोई मुझे घर से निकाल दे
पीछे बंधे है हाथ मगर शर्त है सफर
किससे कहूॅ कि पांव से कांटा निकाल दे

न कर शुमार कि हर शै गिनी नहीं जाती
ये जिंदगी है हिसाबों से जी नहीं जाती

चारों ओर खड़े है दुष्मन बीचों-बीच अकेला मैं
जबसे मुझको खुषफहमी हैं,सब घटिया है, बढि़या मैं

छोटी-छोटी उम्मीदों पर लहरा लहरा मरता हँू
जो जन्नत को तज आया था उस आदम का बेटा हूँ

अपने हाथ कहां तक जाते भागदौड़ बस यूं ही थी
उनके बांस बहुत थे लंबे जो कन कैया लूट गये
बाहर धूप थी षिद्धत की और हवा भी अंदर थी बेचैन
गुब्बारे वाले के आखिर सब गुब्बारे फूट गये

नुमाइष के लिये जो मर रहे हैं
वो घर के आइनों से डर रहे है
बला से जुगनुओं का नाम दे दो
कम से कम रोषनी तो कर रहे है

घर की तामीर चाहे कैसी हों, इसमें रोने की कुछ जगह रखना
उम्र कहने को है पचास के पार कौन है किस जगह पता रखना

कत्ल करने या कराने पे खबर बनती है
अस्मतें लुटने लुटाने पे खबर  बनती है
कोई पूछेगा नहीं लिख लो किताबें कितनी
अब किताबों को जलाने पे खबर बनती है

अब प्रतिस्पर्धा व्यर्थ है, व्यर्थ हुए सब ढंग
वायुयान में बैठकर उड़ने लगी पंतग

समय समय की बात है उलट पुलट परिवेष
आज पतंगे दे रही, पेड़ों को उपदेष

जरा सा कतरा कहीं आज अगर उभरता है
समुंदरो के ही लहजे में बात करता है
खुली छतो के दिये कबसे बुझ गये होेते
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है
शराफतों की जमाने में कोई अहमियत ही नहीं
किसी का कुछ ना बिगाड़ो तो कौन डरता है
तुम आ गये हो तो कुछ चाँदनी सी बाते हो
जमीं पर चाँद कहां रोज-रोज उतरता है
जमीं की कैसी वकालत हो कुछ नहीं चलती
अगर आसमां से कोई फैसला उतरता है

वो झूठ भी बोल रहा था बड़े सलीके से
मैं एतबार ना करता तो और क्या करता

तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है
बड़े सौदे नजर में हो तो छोटा होना पड़ता है
जुंबा देता है जो आॅसू तुम्हारी बेजुबानी को
उसी आँसु को फिर आँखो से बाहर होना पड़ता है
मोहब्बत जिंदगी के फैसलों से लड़ नहीं सकती
किसी का खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है

उसके तेवर समझना भी आसां नहीं
बात औरो की थी, हम निगाहों में थे

अपनी सूरत से जो जाहिर हो छुपाये कैसे
तेरी मर्जी के मुताबिक नजर आएं कैसे

जिसके उसूल हमको इबादत में ले गये
अफसोस हम उसी को अदालत में ले गये

कमा तो लाउंगा कफ्र्यू में रोटियाँ लेकिन
तुम्हारे हाथों में कंगन रहे दुआ करना

खामोष समंदर ठहरी हवा, तूफां की निषानी होती है
डर और ज्यादा लगता है, जब नाव पुरानी होती है
एक ऐसा वक्त भी आता है आँखो में उजाले चुभते हैं
हो रात मिलन की अंधियारी , तो और सुहानी होती है
अनमोल बुजुर्गो की बातें अनमोल बुजुर्गो का साया
उस चीज की कीमत मत पूछो जो चीज पुरानी होती है
इस कहरे इलाही का यारों लफ्जों में बयां हैं नामुनकिन
जब बाप के कांधो को मय्यत बेटो की उठानी होती है
औरों के काम जो आते है मरकर भी अमर हो जाते है
दुनिया वालों के होठों पे उनकी कहानी होती है
हो जाएगी ठंडी रोने से यह आग तुम्हारे दिल की मयंक
होती है नवाजिष अष्को की तो आग भी पानी होती है

बनाओ शौक से ऊँची इमारतें लेकिन
किसी फकीर के आने का रास्ता रखना
वो शख्स चिखता फिरता है आज सड़को पर
मुसिबतों में जो कहता था हौसला रखना

तलब की राह में पाने से पहले खोना पड़ता है
बड़े सौदे नजर में हो तो छोटा होना पड़ता है
जुंबा देता है जो आँसू तुम्हारी बेजुबानी को
उसी आँसू को फिर आँखो सेे बाहर होना पड़ता है
मोहब्बत जिंदगी को फैसलों से लड़ नहीं सकती
किसी को खोना पड़ता है किसी का होना पड़ता है







राजनीति
पीली शाखें सूखे पत्ते , खुषरंग शजर बन जाते हैं
जब उसकी नवाजिष होती है, सब एक हुनर बन जाते हैं
चलते हैं सभी एक साथ मगर, मंजिल पर पहुँचने से पहले
कुछ राहनुमा बन जाते है, कुछ गर्दे सफर बन जाते हैं
ये शौके सियासत भी है अजब, इस शौके सियासत में यारों
कुछ लोगों के घर बिक जाते है, कुछ लोगों के घर बन जाते हैं

बारूदों के ढेर पर बैठी हुई दुनिया
शोलो से हिफाजत का हुनर कुछ रही है

कसम खुदा की हम उनको ही प्यार करतेे हैं
जो दिल के तीर से दिल का षिकार करते हैं
सफेद पोषों से दिल की कहानियाँ मत कहो
ये लोग दिल से नहीं दिल्ली से प्यार करते हैं
किसी से छीन कर खाना हमें नहीं आता
हम तो शेर हैं अपना षिकार खुद करते है
मजा तो तब है जब मौत से मिलो खुष होकर
कि जिदंगी से कुत्ते भी प्यार करते है
                                    जौहर कानपुरी

सारी बस्ती कदमों में है ये भी एक फनकारी है
वरना बदन को छोड़कर अपना जो कुछ है सरकारी है
फूलो की खुषबू लूटी है कांटो की चैकीदारी में
ये रहजन का काम नहीं है रहनुमाओं की मक्कारी है।

क्लींटन पर- राहत इंदौरी

अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूं
मैं चाहता था सितारों को आफताब करूं
उस आदमी को बस एक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन हैं दुनिया इसे खराब करूं

आँखो में आसूं रखो, होठों में चिंगारी रखो
जिदंा रहना है, तरकीब बहुत सारी रखो

खातिर से या लिहाज से मैं मान तो गया
झूठी कसम से आपका ईमान तो गया

तारीके वक्त उतर आया अदाकारी पर
लोग मजबूर हैं जालिम की तरफदारी पर
कल इसी जुर्म पर सर काट दिये जाते थे
आज एजाज दिया जाता है गद्दारी पर

यह भी एक रास्ता है मंजिलो को पाने का
सीख लो तुम भी हुनर हाँ में हाँ मिलाने का

भूली बिसरी सी एक कहानी दे
मुझको वापस मेरी जवानी दे
इन अमीरो से कुछ नहीं होगा
हम गरीबों को हुक्मरानी दे
ष्
ऐ यार समझते हैं, खूब तेरे धोखे
तू हमको बुलाता है, दरबान तेरा रोके

तुम्हारा कद मेरे कद से बहुत ऊँचा सही लेकिन
चढ़ाई पर कमर सबको झुकाकर चलना पड़ता है
सियासत साजिषों का ऐसा खेल है जिसमें
कभी चालों को खुद से छुपाकर चलना पड़ता है

चलन नथिया पहनने का किसी बाजार में होगा
शराफत नाक छिदवाती है धागा डाल देती है

हर मैंदा में पापा जीते मैंने मानी हार
मैंने पैसा बहुत कमाया और पापा ने प्यार

वो उम्र में बढ़े हैं कद में बढ़े नहीं
इस वास्ते नजर में हमारे चढ़े नहीं
घेरे हूए खड़े हैं वो पंजो के बल हमें
कुछ लोग चाहते हैं कद मेरा बढ़े नहीं

चोर के डर से माल छुपाया जाता है
थप्पड़ खाकर गाल छुपाया जाता है
तुमने उनसे भीख मांगली अय्यर जी
जिनसे घर का हाल छुपाया जाता हैं।

राहत  इंदौरी
मैं वो दरिया हूँ हरेक बूंद भंवर हैं जिसकी
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके
मुन्तजिर हूँ सितारों की जरा आँख लगे
चांद को छत पे बुला लूंगा इषारा करके

ये जो सहारा नहीं तो परेषां हो जाए
मुष्किलें जान ही लेले अगर आसां हो जाए
ये जो कुछ लोग फरिष्ते बने फिरते हैं
मेरे हत्थे कभी लग जाए तो इसंा हो जाए

मेरी निगाह में वो शख्स आदमी भी नहीं
लगा है जिसको जमाना खुदा बनाने में
लगे थे जिद पे कि सूरज बनाके छोड़ेगे
पसीने छूट गये हक दिया बनाने में
तमाम उम्र मुझे दर-बदर जो करते गये
जुटे है वो ही मेरा मकबरा बनाने में
ये चंद लोग जो बस्ती में सबसे अच्छे हैं
इन्हीं का हाथ है मुझको बुरा बनाने में

तू किसी ओर से न हारेगा
तेरा गरूर ही तुझको मारेगा
तुझको दस्तार जिसने बख्शी है
तेरा सर भी वो ही उतारेगा
एक जरा और इंतजार कर लो
सब्र जीतेगा जुल्म हारेगा

 

            संचालन
बापू तेरी मौजूदगी में दुनिया कौन देखेगा
मेले में देखेंगे तुझे सब, मेला कौन देखेगा

दरिया को जौन था कि मैं धारे पे आ गया
लेकिन मैं एक था जो किनारे पे आ गया
मुझको बुलाने वालों की उम्र निकल गई
लेकिन मैं एक तेरे इषारे पे आ गया

ये और बात है खामोष खड़े रहते है
फिर भी जो लोग बड़े हैं वो बड़े रहते है

हर खुषी हँसी मांगे आपसे
हर फूल खुषबू मांगे आपसे
इतनी रोषनी हो आपकी जिदंगी में
कि खुद बिजली वाले कनेक्षन मंागे आपसे

चेहरे पे खुषी आ जाती है आँखो में सुरूर आ जाता है
जब तुम मुझे अपना कहते हो अपने पे गुरूर आ जाता है
जब तुमसे मोहब्बत की हमने तब जाके कहीं ये राज खुला
मरने का सलीका आते ही जीने का सुरूर आ जाता है

जो सफर इख्तयार करते है
वहीं मंजिल को पार करते है
बस एक बार चलने का हौसला रखिये
ऐसे मुसाफिर का रास्ते भी इंतजार करते है

जब कोई ख्याल दिल से टकराता है
दिल न चाहकर भी खामोष रह जाता है
कोई सब कुछ कहकर भी दोस्ती निभाता है

कोई पूछता नहीं था, जब तक बिका ना था
तुमने मुझे खरीद कर अनमोल कर दिया

मैं प्रेेमी का उपहार हॅविवाह का हार हूँ
मैं खुषी के एक पल की यादगार हूँ
मैं मृतक को जिदंगी का आखिरी उपहार हूँ
मैं आनंद और गम दोनों का राजदार हूँ

सौ चाँद भी चमके तो क्या बात बनेगी
तुम आओ तो इस रात की औकात बनेगी

हमारा जिक्र तो हर पल हुआ फसाने में
तो क्या हुआ जो थोड़ी देर हुई आने में


चिराग हो के न हो दिल जला के रखते है
हम आँधियों में भी तेवर बला के रखते है
मिला दिया है भले पसीना मिट्टी में
हम अपनी आँख का पानी बचा के रखते है
बस एक खुद से ही नहीं बनी वरना
जमाने भर से हमेषा निभा के रखते हैं
हमें पंसद नही जंग में भी चालाकी
जिसे निषाने पर रखते है बता केे रखते है

देखो कहीं ये जुगनू दिनमान हो न जाये
ये रास्ते का पत्थर, भगवान हो ना जाये
जो कुछ दिया है प्रभु ने अहसान मानता हूँ
बस चाहता यही हूॅं, अभिमान हो ना जाये

लगन से काम को अपने जो सुबह-ओ-षाम करते है
जिन्हेें मंजिल की ख्वाइष है वो कब आराम करते है
ये छोटी बात है लेकिन तुम्हारे काम आएगी
जो अच्छे लोग होेेते है वो अच्छे काम करते है
बहुत कम लोगों को मिलता है यह एजाज दुनिया में
जो अपने साथ में रोषन बड़ो का नाम करते हैं।

मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं
ये हुकूमत किसी तलवार की मेाहताज नहीं

ये कैंचिया हमें उड़ने से खाक रोकेगी
कि हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं

जंग में कागजी अफदाद से क्या होता है
हिम्मतें लड़ती है तादाद से क्या होता है

फिर एक बच्चे ने लाषों के ढेर पर चढ़कर
ये कह दिया कि अभी खानदान बाकी है

मैं पर्वतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली जमीन खोद के फरहाद हो गये

तुझे खबर भी है मेले में घूमने वाले
तेरी दुकान कोई दूसरा चलाता है

आग नफरत की जो हम लोग बुझाने लग जाए
फिर सियासत के यहाँ होष ठिकाने लग जाए
अपनी मेहनत के सबब और उसकी इनायत के तुफैल
मैं जहां पहुँचा दूँ औरों को जमाने लग जाए
काम को फर्ज समझकर जो निभाने लग जाए
फिर बुलंदी से बुलाने हमें आने लग जाए

      शुभकामनाएँ
फूलों की तरह महकते रहो, तारों की तरह चमकते रहो
बुलबुल की तरह चहकते रहो, हीरे की तरह दमकते रहो
तुम्हारे जीवन में कोई नीरसता न कोई शोक हो
कदम कदम पर खुषियाँ और पवं भरा आलोक हो

हँसते रहे आप हजारों के बीच में
जैसे हँसता है फूल बहारों के बीच में
रोषन हो आप दुनिया में इस तरह से
जैसे होता है चाँद सितारों के बीच में

तलाष करोगे तो कोई मिल ही जाएगा
मगर हमारी तरह रिष्ते कौन निभाएगा
माना कमी नहीं आपके चाहने वालों की
मगर क्या कोई हमारी जगह ले पाएगा

अपने दिल की सुनो अफवाहों पर कान ना दो
हमें बस याद रखो, बेषक कभी नाम ना लो
आपको वहम है हमने भुला दिया आपको
पर मेरी कोई ऐसी सांस नहीं जब आपका नाम न लूं

आपकी एक मुस्कान ने हमारे होष उड़ा दिये
और हम जब होष में आए आप फिर मुस्कुरा दिये

छते, सुंदर देहरियाँ, दालाने व द्वार
तोरण, दीप, रांगोलियां, झिलमिल बांदरवार
अपने आंगन रोषनी, कर लेना भरपूर
कुछ उनको भी बांटना , जो बैठे मजबूर

दो सुमन मिले, दो वंष मिले, दो सपनों ने श्रृंगार किया
दो दूर देष के पथिको ने संग-संग चलना स्वीकार किया

वक्त की धूप हो या तेज आँधिया, कुछ कदमों के निषां कभी नहीं खोते
जिन्हें याद कर मुस्कुरा दें आंखे वे दूर होकर भी दूर नहीं होते

आज के बाद न जाने क्या समां होगा
हममें से ना जाने कौन कहां होगा
फिर मिलना होगा सिर्फ ख्वाबों में
जैसे सुखे गुलाब मिलते है किताबों में


सीढि़याँ उनके लिये बेमानी हैं जिन्हें चाँद पर जाना है
आसमान पर हो जिनकी नजर, उन्हें तो रास्ता खुद ही बनाना है।
 
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा
हम तो दरियाँ है हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी हम बहेंगे रास्ता हो जाएगा

दिल ऐसा कि सीधे किये जूते भी बड़ो के
जिद इतनी कि खुद ताज उठाकर नहीं पहना

     श्रृध्दांजली
सोचते हो कि ये नहीं होगा, आसमां एक दिन जमीं होगा
कोई मरने से मर नहीं जाता, देखना वो यहीं कहीं होगा

बिछड़ा वो इस अदा से कि रूत ही बदल गयी
एक शख्स सारे शहर केा वीरान कर गया

दिल के किसी कोने में आबाद रहेंगेे
कुछ लोग जमाने को सदा याद रहेगे

दुनिया बड़ी खराब है शायद इसीलिये
अच्छे जो लोग आये वो जल्दी चले गये

दिलों में दर्द आँखो में नमी महसूस करते है
कोई मौसम हो हम तेरी कमी महसूस करते है

वो आज जिसके जाने से आलस उदास है
लगता है जैसे अब भी मेरे आसपास है

वो मजबूत है इतना कि टूटा सा लगता है
सच्चा है इस कदर कि झूठा सा लगता है
रूठे तो सोचा था मनाएगा वो हमको
मनाने वाला भी मगर रूठा सा लगता है

याद हमें जब भी आते संग बिताए पल छिन सारे
बरबस ही निर्झर बह जाते, नैनांे से दो जल-कण खाटे

   दोपहर में सूर्यास्त
इस कहरे इलाही का यारों लफ्जों में बयंा है नामुमकिन
जब बाल पके कंाधो को मय्यत बेटों की उठानी होती है
औरों के काम जो आते है मरकर भी अमर हो जातेे है
दुनिया वालों के होठों पर उनकी ही कहानी होती है
अनमोल बुजुर्गों की बातेें अनमोल ही कहानी होती है
उस चीज की कीमत मत पूछो जो चीज पुरानी होती है

हमसे मोहब्बत करने वाले रोते ही रह जाएंगे
हम जो किसी दिन सोये तो फिर सोते ही रह जाएगें

वो देखो सामने है, अभी तक नजर में है
बिछड़ा कहाँ से भाई , हमारा सफर में है

शाम का वक्त है शाखों को हिलाता क्यों है
तू थके मांदे परिंदो को उड़ाता क्यों र्हैं।
वक्त को कौन भला रोक सका है  पगले
सुइयां घडि़यों की तू पीछे घुमाता क्यों है।
स्वाद कैसा है पसीने का ये मजदूर से पूछ
छांव में बैठ के अंदाज लगाता क्यों है
मुझको सीने से लगाने मे है तौहीन अगर
दोस्ती के लिए फिर हाथ बढ़ाता क्यों है
प्यार के रूप हैं सब, त्याग-तपस्या-पूजा
इनमें अंतर का कोई प्रष्न उठाता क्यों है
मुस्कुराना है मेरे होठों की आदत में शुमार
इसका मतलब मेरे सुख-दुख से लगाता क्यों है
देख न चैन से सोना न कभी होगा नसीब
ख्वाब की तू कोई तस्वीर बनाता क्यों हैं।

बदमस्त वो अल्हड़ सी कुंआरी पलके
रात की जगी नींद सी भारी पलके
उन पलकों पर जब से डाली है नजर
अल्लाह की कसम नहीं झपकी पलके

राज जो कुछ हो इषारों में बता भी देना
हाथ जब उनसे मिलाना दबा भी देना
और वैसे नषा तो बुरी बात है मगर
राहत से शेर सुनना हो तो थोड़ी पिला भी देना

जुंबा तो खोल, नजर तो मिला, जबाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूँ मुझे हिसाब तो दे
तेेरे बदन की लिखावट में है उतार-चढ़ाव
मैं तुझे कैसे पढंूगा मुझे वो किताब तो दे

जहालतो के अंधेेरे मिटा के लौट आया
मैं आज सारी किताबें जला के लौट आया
वो अब भी रेल में बैठी सिसक रही होगी
मैं अपना हाथ हवा में हिलाके लौट आया
बदन था जैसे कहीं मछलियाँ थिरकती थी
वो बहता दरिया थी और मैं नहाके लौट आया
खबर मिली है कि सोना निकल रहा है वहाँ
मैं जिस जमीन को ठोकर लगा के छोड़ आया

हाले दिल सबसे छुपाने में मजा आता है
आप पूछे तो बताने में मजा आता है

चाँद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
रोज तारो की नुमाइष में खलल पड़ता है
उनकी याद आई है साँसो जरा धीरे चलो
धड़कने से भी इबादत में खलल पड़ता है


हर लहजा तिरे पांव की आहट सुनाई दे
तू लाख सामने न हो फिर भी दिखाई दे
आ इस हयाते दर्द को मिलकर गुजार दे
या इस तरह बिछड़ कि जमाना हाई दे

बहुत रोई हूँ हँसना चाहती हूँ
मैं तेरे दिल में बसना चाहती हूँ
दरीचे खोल दे सब अपने दिलके
मैं बदली हूँ बरसना चाहती हूँ
0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000

चाँदनी बनके तेरे दिल में उतर जाऊंगी
तू निगाहों से छुएगा तो निखर जाऊंगी
जिंदगी मेरी नहीं मुझसे संवरने वाली
तू मेरा आइना बन जा तो सवर जाऊंगी

लाली, पावडर और काजल की
चलती फिरती दुकान लगती हो
जब भी मेकअप उतार देती हो
केाई पुराना मकान लगती हो

जुगनुओं को जतन से पाला है, तब कहीं मुष्क भर उजाला है
तुमने ठोकर पर रख दिया दिल को, हमने किस तरह संभाला है

लहजे की उदासी कम होगी बातों में खनक आ जाएगी
दो रोज हमारे साथ रहो, चेहरे पे चमक आ जाएगी
ये चाँद सितारों की महफिल , मालूम नहीं कब रोषन हो
तुम पास रहो, तुम साथ रहो, जज्बों में कसक आ जाएगी

हमें आना है हाले दिन सुनाने
तुम्हें किस रोज आसानी रहेगी
किसी का दिल दुखाओगे तो घर में
बहुत रोज परेषानी रहेगी

कभी खुषी से खुषी की तरफ नहीं देखा
एक तेरे बाद किसी की तरफ नहीं देखा
ये सोच कर कि तेरा इंतजार लाजिम है
ये सोचकर कभी घड़ी की तरफ नहीं देखा

मोहब्बत का मुकद्दर तो अधूरा था अधूरा है
कभी आसूँ नहीं होते, कभी दामन नहीं होता

किसी से कोई ताल्लुक न दोस्ती न लगाव
फिजूल यूं ही जिदंगी बिता रहा था मैं
तेरी निगाह ने एक काम कर दिया वरना
बहुत दिनों से कबूतर उड़ा रहा था मैं

जो हुक्म देता है वा इल्तिजा भी करता है
ये आसमान कहीं पर झुका भी करता है
तू बेवफा है तो ले इक बुरी खबर सुन ले
कि मेरा इंतजार दूसरा भी करता है

उन्हें ये जि़द है मुझे देखकर किसी को न देख
मेरा ये शौक है की सबसे सलाम करता चलूं
ये मेरे ख्वाबों की दुनिया न सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन क़याम करता चलूं

कोई दीवाना कहता है
कोई पागल समझता है
मगर धरती की बैचेनी को
बस बादल समझता है
मैं तुमसे दूर कैसा हूँ
तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है
या मेरा दिल समझता है

हाय ये कैसा मौसम आया, पंछी  गाना भूल गये
बुलबुल भूली गज़ल, पपीहे प्रेम तराना भूल गये
जाने हवा चली ये कैसी, कैक्टस उगे गुलाबों में
नफरत पढ़ने लगी पीढि़याँ, खुषबू भरी किताबों में
बम और बारूद की भाषा इतनी  भायी दुनिया की
आग लगाना याद रहा हम आग बुझाना भूल गये

हमें कुछ पता नहीं हम क्यों बहक रहे हैं
रातें सुलग रही है दिन भी दहक रहे है
जबसे है तुमको देखा बस इतना जानते है
तुम भी बहक रहे तो हम भी बहक रहे हैं
बरसात ही नहीं पर बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई जुल्फें और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भौरंा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो, हम भी समझ रहे हैं


          मजाकिया
बुरे समय को देखकर गंजा तू क्यों रोये
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाका होय

तुम्हारी अंगड़ाई से मेरी जान निकल जाती है
मेरी जान तू डी. ओ. क्यों नहीं लगाती है

काजल, पावडर और लाली की
चलती फिरती दुकान नजर आती हो
और जब धो लेती हो मुहँ अपना
केाई पुराना मकान नजर आती हो

नल आने की बात करते हो
दिल जलाने की बात करते हो
हमने देा दिन से मुँह नहीं धोया अपना
और तुम नहाने की बात करते हो

ये लड़की नहंी झांसी की रानी है
इसकी एक नहीं कई कहानी है
शरीर पर हे मेरे जो चोंटो के निषान
ये सब इसी के हाथों की निषानी हैं

लोहे को लोहा काट सकता है
हीरे को हीरा काट सकता है
ज़हर को काटे हे ज़हर
तुम प्लीज अपना ख्याल रखना
तुुमको कुत्ता काट सकता है

              दीपावली
दीप जले देता उजियारा, मन जलकर देता अंधियार
इसलिये सब दीप जलाना, नहीं जलाना अपने मन को
एक जरा सी कौध्ंा तुम्हारी दीपक को अर्पित कर देना
वो छोटा सा दीप चुनौती दे देगा तमके शासन को

दीपावली पे ये भी दुआ मंदिरो में हो
चाहत वफा खुलूस मोहब्बत घरों में हो
हमने घरों में अपने उजाले तो कर लिये
कोषिष करें कि रोषनी सबके घरों में हो

कुछ सितारों की चमक नहीं जाती
कुछ यादों की कसक नहंी जाती
कुछ लोगों से होता है ऐसा रिष्ता
दूर रहकर भी उनकी महक नहीं जाती

खुषी दोमाला हो जाती हरेक त्यौहार की अपने
मुसीबत में किसी मजबूर के जो काम आ जाते
दीवाली पर दिये घर के जलाने से तो बेहतर था
किसी मुफलिस के घर का हम अगर चूल्हा जला पाते

आंखो में आंसुओ की जगह अब रहेगा कौन

हुई शाम अब तो चलो अपने घर चलंे
लेकिन वहाँ भी अपने अलावा मिलेगा कौन
ऐसी गजल की जिसमें हो सच्चाईयों का जिक्र
मैं कह भी लंू अगर तो फिर उसको सुनेगा कौन

ये जो हरसु फलक मंजर खड़े हंै
न जाने किसके पैरो पर खड़े हैं
तुला है धूप नरसाने पर सुख
शेर भी छतरियां लेकर खड़े हैं
इन्हें नामों से पहचानता है
मेरे दुष्मन मेरे अदंर खड़े हैं
किसी दिन चाँद निकला था यहां से
उजाले आज तक यहां खड़े हैं

कभी उंगली पकड़कर मैं जिसे चलना सिखाता था
उसी का हाथ अब मेरी ही पगड़ी तक पहुँचता हैं
वो भी दिन थे कभी अपने अदालत घर मे ंलगती है
मगर मन मसहला घर का कचहरी तक पहुँचता है।

वो मेरे लब को चूमकर बोले
जिंदगी भर जुबान बंद रखना
आज कोई त्यौहार है शायद
आज अपनी दुकान बंद रखना
कुछ दिनों से खराब मौसम है
ऐ परिंदो उड़ान बंद रखना

सफर हयात का तमाम हिजरतो में बंट गया
वतन जमीन ही रही में सरहदों में बंट गया
हजार नाम थे मेरे मगर मैं सिर्फ एक था
न जाने कब मैं मंदिरों मस्जिदों में बंट गया
मैं जख्म-जख्म आदमी के दुख समेटता रहा
खुदा जो मस्जिद में था नाराजगी में बंट गया

जिसकी आहट पर निकल पड़ता था सीने से
आज उसेे देखकर दिल मेरा धड़का ही नहीं
यूं तो मुंतजीर किसी शाम में भी नहीं था उसका
वादे पर उसके कभी वो भी आया नहीं

जिंदगी भर का सफर साथ कटा है इसके
लाष के पांव से कांटा ना निकाला जाए

उजाले इस कदर बेनूर क्यों है
किताबें जिदंगी से दूर क्यों है
कभी यूं हो की पत्थर चोट खाए
ये हरदम आइना ही झूट क्यों है

आज तो आप भी शीदों की तरह बोलकर
हम तो समझे थे कि पत्थर नहीं बोला करते

इतना उड़ने के लिये पर नहीं खोला करते
लब हिलाने की किमत भी इन्हें दी जाती है
ये शराफत से कभी मुंह नहीं खोला करते
जी हजूर मैं किसी पद से नवाजे जाते
हम भी सरकार के अतराफ जो बोला करते

साम्प्रदायिकता के दानव का अंत निकट अब आया है,
राष्ट्रहित रक्षार्थ अर्जुन ने फिर गांडीव उठाया है।

जिस कौम को मिटने का एहसास नहीं होता,
उस कौम का दुनिया में कहीं घर नहीं होता

क्या रंग दे रहा है, माषूक का बुढ़ापा,
अंगूर का मजा, किषमिष में आ रहा है।

गिला तुझसे नहीं है ओ आस्तीन के सांप,
हमसे ही तुझे खून पिलाते नहीं बना।

दुम हिलाता फिर रहा है चंद वोटो के लिये,
इसको जब कुर्सी मिलेगी, भेडि़या हो जाएगा

मैयत पर मेरी लोग आकर ये कहेंगे,
सही में मरा हुआ है या ये भी चुटकुला है।

ये ना समझो क्रूर कृत्य का भागी केवल व्याघ्र
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध
                                   राष्ट्रकवि दिनकर
सपनों के रंग तिनका-तिनका बनाया
हर उमंग को दबाया
आज हुए हैं सच सब सपनों के रंग
भरके दिल में उमंग रखे पहला कदम
सपनों के रंग
लाखों वसंत से गुजरो तुम
हो रंग बसंती जीवन का
है हर बसंत की एक दुआ
कि अंत ना हो इस जीवन का

तबीयत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में,
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं

जब से चला हूं बस मेरी मंजिल पर नजर है
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई विरासत में नहीं मिले
तुमने मेरा कांटो भरा बिस्तर नहीं देखा

किस्मत में जो लिखा वो मिल जाएगा मेरे आका
वो दीजिये जो मेरे मुकद्दर में नहीं है।

हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था,
मेरी किष्ती जहां डूबी, वहां पानी बहुत कम था।

मुझे थकने नहीं देते जरूरत के पहाड़,
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते।

जेहमत उठाके आप जो तषरीफ लाए हैं
फूलों की क्या बिसात हमने दिल बिछाए हैं

अभी आए, अभी आकर जरा दामन संभाला है
तुम्हारी जाऊं-जाऊं ने हमारा दम निकाला है

कानों की बालियां चाॅंद-सूरज लगे,
ये बनारस की साड़ी खूब सजे
राज की बात बताएं समधीजी घायल हैं
आज भी जब समधन की झनकती पायल है

जादू है या तिलस्म है तुम्हारी जुबान में
तुम झूठ भी कहते हो तो होता है एतबार


अपनी आवाज की लर्जिष पे तो काबू पा लो
प्यार के बोल तो होठों से निकल जाते हैं
अपने तेवर तो संभालो कि कोई ये ना कहे
दिल बदलते हैं तो चेहरे भी बदल जाते हैं

हयात लेके चलो, कायनात लेके चलो
चलो तो सारे जमाने को साथ लेके चलो

कष्मीर की वादियों में बेपर्दा निकले हो
क्या आग लगाओगे बर्फीली चट्टानों में

कागज का ये लिबास बदन से उतार दो
बारिष जो हुई तो कहां सर छिपाओगे

दोस्ती ही एक ऐसा रिष्ता है,
जिसे हम हमारी पसंद से चुनते हैं

कह दो ये समंदर से हम ओस के मोती हैं
दरिया की तरह तुझसे मिलने नहीं आएंगे

जलजले ऊंची इमारत को गिरा सकते हैं
मैं तो बुनियाद हूं मुझको तो कोई खौफ नहीं

षोहरत की बुलंदी भी पलभर का तमाषा है
जिस षाख पर बैठे हो वो टूट भी सकती है

अगर ताकत के माने हैं पाष्विक ताकत तो वाकई
नारी में है कम और अगर ताकत के माने हैं नैतिक ताकत
तो निःसंदेह मर्द से कई गुना ज्यादा आगे है औरत
                                         महात्मा गांधी
मूर्ति वंदनीय है, इसलिये नहीं कि उसमें देवता है
बल्कि इसलिये कि उसने तराषे जाने का दर्द सहा है

ढल गई षाम सितारों का जुलूस आया है

आंख मीची तो अपना गया
आंख खोली तो सपना गया
आंख मूंदी तो दफना दिया गया

वो किसी चीज का मोहताज नहीं है
जिसे जीने का हुनर आता है

यादों में उनकी बातों में खुषियों के रंग बरसते हैं
खुषियों में अपनों से मिलने को नैना तरसते हैं।

खुषी के रंग लाई ये घड़ी
प्यार के रंग लाई ये घड़ी

दिल के फफोले जल गए सीने के दाग से
घर को आग लग गई घर के चिराग से

फूल की पत्ती से भी कट सकता है हीरे का जिगर
मर्दे नांदा पर कलामे पाक भी है बेअसर

वो आए मुझको ढूंढने और मैं मिलूं नहीं,
ऐसी भी जिंदगानी में तकदीर चाहिये

मौत उस षख्स की है जिसपे जमाना रोए
यूं तो सभी आते हैं दुनिया में मरने के लिये

कहां ये मर्तबा अपना के हम तकलीफे षिरकत दें
मगर मेहमां गरीबों के हुए हैं बादषाह अक्सर

मेरी मंषा है मेरे आंगन में दीवार उठे
मेरे हिस्से की जमीं भी मेरे भाई तू रख ले

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाय मौसम की तरह दोस्त भी बदल जाते हैं

तुलसी भैया की मेहनत फिर हो गई साकार
स्वीकारो है बंधुवर बधाइयाॅं और सत्कार

हवा महक उठी रंगे चमन बदलने लगा
वो मेरे सामने जब पैरहन बदलने लगा

कौन से फूल थे कल रात तेरे बिस्तर में
आज खुषबू तेरे पहलू से बहुत आती है

यही है राज मेरी कामयाबी का जमाने में
कि मैं साहिल पर रूककर भी नजर रखता हूं तूफां पर

सारी दुनिया की निगाहों में गिरा है मजरूह
तब जाकर कहीं तेरे दिल में जगह पायी है

मिलन की रात है गुल कह दो इन चिरागों को
खुषी के वक्त में क्या काम जलने वालों का

दौलत ने दिया वो लिबास कि आ गया गुरूर
दामन था तार-तार अभी कल की बात है

वक्त सारी जिंदगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले एक तेरे जाने के बाद

कुछ नया करने की जिद में पुराने हो गए
बाल चांदी हो गए, बच्चे सयाने हो गए

मुस्कुराओ ऐसे कि बहारों को होंष आ जाए
तालियां बजाओ ऐसे कि कवियों को जोष आ जाए

इस मंजर को देखकर झूम गया मन आज
मन रविषंकर हो गया, तन बिरजू महाराज

दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है

अंगड़ाई भी ना लेने पाए उठाके हाथ
जो मुझको देख लिया छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ

चमन को सींचने में पत्तियां कुछ झड़ गई होंगी
यही इल्जाम मुझ पर लग रहा है बेवफाई का
मगर कलियों को जिसने रौंद डाला अपने हाथों से
वही दावा कर रहे हैं इस चमन की रहनुमाई का

जेब देता है अंगूठी में नगीना जिस तरह
है दुआ मेरे रहे जोड़ी सलामत उस तरह

मरने के बाद भी मेरी आंखे खुली रही
आदत जो पड़ी हुई थी उनके इंतजार की

हद से बढ़कर हसीन लगते हो, झूठी कसमें जरूर खाया करो
मुस्कुराहट है हुस्न का जेवर मुस्कुराना ना भूल जाया करो

तू लाख छुपाये दामन मेरा फिर भी है ये दावा
तेरे दिल में मैं ही हूं, कोई दूसरा नहीं है
कोई आरजू नहीं है, कोई जुस्तजू नहीं है
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल में क्या नहीं है

उनके आने से जो चेहरे पे आ गई रौनक
वो समझने लगे बीमार का हाल अच्छा है
यूं जन्नत की हकीकत तो हमें है मालूम
दिल को बहलाने के लिये गालिब ये ख्याल अच्छा है

काटे नहीं कटते हैं लम्हें इंतजार के
नजरे जमाए बैठे हैं रस्ते पे यार के

हजारों ख्वाहिषें ऐसी कि हर ख्वाहिष पर दम निकले
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

जब हम ना होंगे तो क्या रंगे महफिल
किसे देखकर आप षर्माइयेगा

स्वागत है अभिनंदन है क्या भाग्य हमारा है
सेवादल का वीर सिपाही आज पधारा है

हमारी आन, हमारी बान, हमारी षान आए हैं
हमारे प्राण, हमारी जान ले वरदान आए हैं
हमारे हैं, हमारों का भला स्वागत करें कैसे
कहें तो क्या, कहें किससे कि घर भगवान आए हैं

वक्त अच्छा भी आएगा नासीर
गम ना कर जिंदगी पड़ी है अभी

मैटर -

तेज सूर्य सा, धन कुबैर सा
बुद्धि चाणक्य सी, कीर्ति अषोक सी
यह सब तुम्हें सुलभ हो

बढ़ती हुई महंगाई और हारती हुई नैतिकता के दिनों में
अपना रक्त जलाकर जलता हुआ दिया
आपके व्यक्तित्व को आलोकित करे

दीपपर्व आतंकवाद, साम्प्रदायिकता,
भ्रष्टाचार की अमावस का  मुक्तिपर्व हो

दुर्गम पर्वत षिखर यूंही हमें डराते हैं
किंतु किये जो काम आपने याद हमें आ जाते हैं
अभी कहां आराम लिखा यह निंद्रा तो बस छलना है
अरे अभी तो मीलों तुमको राह बनकर चलना है।

सूरज से कहते हैं बेषक वह अपने घर आराम करें
चाॅंद-सितारे जी भर सोये नहीं किसी का काम करें
आॅंख मंूद लो दीपक तुम भी दिया-सलाई जलो नहीं
अपना सोना, अपनी चांदी गला-गला कर मलो नहीं
अगर अमावस से लड़ने की जिद कोई कर लेता है
तो एक जरा सा जुगनू सारा अंधकार हर लेता है

तनकर खड़ा था जो वो जड़ से उखड़ गया
वाकिफ नहीं था वो हवा के मिजाज से

कायरता जिन चेहरों का सिंगार करती है
मक्खियां भी उन चेहरों पर बैठने से इंकार करती है

दौलत और जवानी एक दिन खो जाती है
सच मानों तो सारी दुनिया दुष्मन हो जाती है
उम्रभर दोस्त मगर साथ चलते हैंष्

षाम तन्हाई की है आएगी मंजिल कैसे
जो मुझे राह दिखाए वही तारा न रहा

कल रहे ना रहे मौसम ये प्यार का
कल रूके ना रूके डोला बहार का
चार पल मिले जो आज प्यार में गुजार दे

अच्छी सूरत को संवरने की जरूरत क्या है
सादगी भी तो कयामत की अदा होती है।

तुझे  देखकर जग वाले पर यकीं नहीं क्यों कर होगा
जिसकी रचना इतन संुदर वो कितना सुंदर होगा

छोटी सी, प्यारी सी, नन्ही सी आई कोई परी
भोली सी, प्यारी सी, अच्छी सी आई कोई परी
पालने में ऐसे ही झूलते रहे खुषियों की बहारों में झूलते रहे
गाते मुस्कुराते संगीत की तरह ये तो लगे रामा के गीत की तरह
खुषियां देती है दुख ले लेती है
माॅं की ममता का मोल नहीं कोई
उम्रभर मैं करूॅं माॅं की बंदगी
माॅं तेरे नाम है मेरी जिंदगी

फूलों सा चेहरा तेरा कलियों सी मुस्कान है
रंग तेरा देखकर रूप तेरा देखकर कुदरत भी हैरान है
महलो की रानी दुख से बेगानी लग जाए ना धूप तुझे
उड़-उड़ जाऊं सबको बताऊं धूप लगे है छाॅंव मुझे
कांटो से हो जाए पांव ना घायल

चलते हैं वो भी हमसे तेवर बदल-बदल कर
चलना सिखाया जिनको हमने संभल-संभल कर
बिस्तर की सलवटों से महसूस ये हो रहा है
तोड़ा है दम किसी ने करवट बदल-बदल कर

वो आए मुझको ढूंढने और मैं मिलूं नहीं
ऐसी भी जिंदगानी में तकदीर चाहिये

क्या है मुकद्दर में फिक्र नहीं इसकी
हारते हैं फिर भी हिम्मत नहीं थकती
वही तो कहलाते हैं फाइटर
मंजिल उनके पास खुद चलकर आती है
खुद ही जो लिखते हैं किस्मत अपनी
क्योंकि फाइटर हमेषा जीतता है।

मेरे जनाजे में सारा गांव निकला
पर वो ना निकले जिनके खातिर जनाजा निकला

देख सकता हूं मैं कुछ भी होते हुए
नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए
एक दिन बिगड़ी किस्मत संवर जाएगी
ये खुषी हमसे बचकर किधर जाएगी
देखना जिंदगी यूं गुजर जाएगी
देखा फूलों को कांटो में हंसते हुए
नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए

आ चल के तुझे मैं लेकर चलूं एक ऐसे गगन के तले
जहां गम भी ना हो आंसू भी ना हो बस प्यार ही प्यार पले

उस मोड़ से षुरू करें फिर ये जिंदगी
हर रात जहां हसीन थी हम तुम थे अजनबी
लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख्वाब थे
फूलों के ख्वाब थे वो मोहब्बत के ख्वाब थे
लेकिन कहां है इनमें वो पहले सी दिलकषी
रहते थे हम हसीन ख्यालों की भीड़ में
उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में
आने लगी है याद वो फुरसत की हर घड़ी
षायद ये वक्त हमसे कोई चाल चल गया
रिष्ता वफा का और कोई रंगो में ढल गया


ये दौलत भी ले लो ये षोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज की कष्ती वो बारिष का पानी
मोहल्ले की सबसे पुरानी निषानी
वो बुढि़या जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुरियों में सदियों का फेरा
भुलाए नहीं भूल सकता है कोई
वे छोटी सी रातें वो लंबी कहानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिडि़या वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुडि़या की षादी पे लड़ना-झगड़ना
वो झूले से गिरना वो गिरकर संभलना
वो पीतल के छल्लांे के प्यारी से तोहफे
वो टूटी हुई चूडि़यों की निषानी
वो कागज की कष्ती ़ ़ ़ ़
कभी रेत के ऊंचे टीलो पे जाना
घरोंदे बनाना बनाकर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गम था ना रिष्तों के बंधन
बड़ी खूबसूरत थी वो जिंदगानी

बात निकलेगी तो फिर दूर तक ले जाएगी
लोग बेवक्त उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे तुम इतनी परेषां क्यों हो
उंगलियां उठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ
इक नजर देखेंगे गुजरे हुए सालो की तरफ
चूडि़यों पर भी कई तंज किये जाएंगे
कांपते होठो पर भी फिकरे कसे जाएंगे
लोग जालिम हैं हरेक बात का ताना देंगे
उनकी बातों का जरा सा भी असर मत लेना
वरना चेहरे के तास्सुर से समझ जाएंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात ना करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात ना करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तक जाएगी

उबरने ही नहीं देती है ये मजबूरियां दिल की
वरना कौन कतरा है जो दरिया बन नहीं सकता

दिले नाउम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की षाम मगर षाम ही तो है

जीवन गाथा महापुरूष की हमको यही सिखाती है
हम भी ऊंचे उठ सकते हैं जीवन विकास की थाती है
जब ये महापुरूष जाते हैं हमें छोड़कर धरती पर
रह जाते हंै पदचिन्ह उभरकर सदा समय की रेत पर

चले जाएंगे हम मुसाफिर हैं सारे
फिर भी एक षिकवा है लबों पे हमारे
खुदा ने तुझे बहुत जल्दी बुलाया
ना फनकार तुझसा तेरे बाद आया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया
मेरे दिल को आज तड़पा रहा है
वो मंजर मेरे सामने आ रहा है
कि लोगों ने तेरा जनाजा उठाया
मोहम्मद रफी तू बहुत याद आया

हम रातों को उठ-उठकर जिनके लिये रोते हैं
वो अपने मकानों में आराम से सोते हैं
कुछ लोग जमाने में ऐसे भी होते हैं
महफिल में तो हंसते हैं तन्हाई में रोते हैं
दीवानांे की दुनिया का आलम ही निराला है
हंसते हैं तो हंसते हैं रोते हैं तो रोते हैं
इस बात का रोना है इस बात पर रोते हैं
कष्ती के मुसाफिर ही कष्ती को डुबोते हैं
कुछ ऐसे दीवाने हैं सूरज को पकड़ते हैं
कुछ लोग उमर सारी अंधेरा ही ढोते हैं
जब ठेस लगी दिल को ये राज खुला हम पर
धोखा तो नहीं देते नष्तर ही चुभोते हैं
मेरे दर्द के टुकड़े हैं बेचैन नहीं सागर
हम सांसो के धागों में जख्मों को पिरोते हैं

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम, पत्थर के ही इंसा पाए हैं
तुम षहरे मोहब्बत कहते हो हम जान बचाके आए हैं
हम सोच रहे हैं मुद्दत से अब उम्र गुजारें भी तो कहां
सहरा में खुषी के फूल नहीं षहरो में गमों के साए हैं

झूठी-सच्ची आस पर जीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
मय की जगह खूने दिल पीना कब तक आखिर कब तक
सोचा है अब पार उतरेंगे या टकराकर डूब मरेंगे
तूफानों से डरकर जीना कब तक आखिर कब तक
एक महीने के वादे पर साल गुजारा फिर भी ना आए
वादे का एक महीना कब तक आखिर, आखिर कब तक
सामने दुनियाभर का गम है और इधर एक तन्हा हम हैं
सैकड़ों पत्थर एक आइना कब तक आखिर, आखिर कब तक

ऐ खुदा रेत के सेहरा को समंदर कर दे
या छलकती हुई आंखों को भी पत्थर कर दे
और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मेरे पैरों के बराबर कर दे

दिन गुजर गया इंतजार में रात कट गई इंतजार में
वो मजा कहां वस्ले यार में लुत्फ जो मिला इंतजार में

अब में समझा तेरे रूखसार पे तिल का मतलब
दौलते हुस्न पे दरबान बिठा रखा है

पत्ती-पत्ती गुलाब हो जाती ये हंसी नजरे ख्वाब हो जाती
तूने डाली ना मैकदा नजरें वरना षबनम षराब हो जाती

पत्ती-पत्ती गुलाब क्या होगी ये षबनम षराब क्या होगी
जिसने लाखों हंसी देखे हों उसकी नीयत खराब क्या होगी

तुम धड़कनों में बस गए अरमां बन गए
सौ साल यूं बस पहचान बन गए

कल रात उनको देखा उर्दू लिबास में
कुछ लोग कह रहे हैं अगला चुनाव है
वो भीख मांगते हैं हाकिमों के लहजे में
हम अपने बच्चों का हक भी अदब से मांगते हैं

छुपे बैठे हैं गुलजार में बहारे लूटने वाले
कली की आंख लग जाए ऐ कांटो तुम ना सो जाना

दिखाओ चाबुक तो झुककर सलाम करते हैं
ये वो षेर हैं जो सर्कस में काम करते हैं

कुदरत ने तो बख्षी थी हमें एक ही धरती
हमने कहीं चीन, कहीं ईरान बनाया
                                साहिर लुधियानवी

पैदा उल्फत में वो सिफात करें पत्थरों के सनम भी बात करें
तुम जरा रूह के करीब आओ जिस्म के दरमियां क्या बात करें

विशिष्ट है आपका ये जन्मदिन
षुभकामना है बार-बार आए यह सुदिन

कामयाबी की मिसाल आपके पूरे पचास साल
तुम हमेषा पत्रकारिता के भाल का तिलक बनकर चमको

मान अधूरा लगता है सम्मान अधूरा लगता है
एक राजीव तेरे बिना संसार अधूरा लगता है

तुम सही वक्त पर खबरों को
इसी तरह क्लिक करते रहो

समय समय की बात है समय समय  का योग
लाखों मंे बिक रहे है दो कौड़ी के लोग

हमने किया गुनाह तो दोजख हमें मिला
दोजख का क्या गुनाह जो दोजख को हम मिले।

कायरता जिन चेहरो का श्रंगार करती है
मक्खियाॅ भी उन पर बैठने से इंकार करती है।

लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
पिया की दुलारी भोली भाली रे दुल्हनियाॅ
तेरी सब राते हो दीवाली रे दुल्हनियाॅ
लाली लाली डोलियाॅ में लाली रे दुल्हनियाॅ
दुल्हे राजा रखना जतन से दुल्हन को
कभी न दुखाना तुम गोरिया के मन को
नाजुक है नाजो की है पाली रे दुल्हनियाॅ

एक ब्राह्मण ने कहा है के ये साल अच्छा है
जुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो
आग चूल्हो मे हरेक रोज जलेगी अब तो
भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोएगा
चैन की नींद हर एक शख्स यहाॅ सोएगा।
आॅंधी नफरत की न चलेगी कहीं अब के बरस
प्यार की फस्ल उगाएगी जमीं अब के बरस
है यकी अब ना कोई शोर शराबा होगा ।
जुल्म होगा ना कही खून खराबा होगा
ओस और धूप के सदमे ना सहेगा  कोई
अब मेरे देष में बेघर न रहेगा कोई ।
नये वादो का जो डाला है वो जाल अच्छा है।
रहनुमाओ ने कहा है ये साल अच्छा है।
दिल को खुष रखने का गालिब यह ख्याल अच्छा है ।

दुष्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले
हम अपने बुजुर्गाें का जमाना नहीं भूले
तुम आॅंखो की बरसात बचाए हुये रखना
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले।
ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने
हम अपनी तस्वीर बनाना नही भूले।
एक उम्र हुई मैं तो हॅंसी भूल चुका हूॅ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखाना नही भूले।

उनके मकबरे पर तो एक भी दिया नही
जिन्होंनें अपना खून चढ़ाया वतन पर
जगमगा रहे है मकां उन्हीं के
बेचा जिन्होंने शहीदो के कफन को

कोई चांदनी रात का चांद बनकर तुम्हारे तसव्वुर में आया तो होगा
किसी से तो की होगी तुमने मोहब्बत किसी को गले लगाया तो होगा
तुम्हारे ख्यालों की अंगड़ाइयों में मेरी याद के फूल महके तो होंगे
कभी अपनी आंखों के काजल से तुमने मेरा नाम लिखकर मिटाया तो होगा
लबों से मोहब्बत का जादू जगाके भरी बज्म में सबसे नजरे बचाके
निगाहों की राहों से दिल में समाके किसी ने तुम्हें भी चुराया तो होगा
कभी आइने से निगाहें चुराकर जली होगी भरपूर अंगड़ाइयों में
तो घबराके खुद तेरी अंगड़ाइयों ने तेरे हुस्न को गुदगुदाया तो होगा
निगाहों में षम्मे तमन्ना जलाके तकी होगी तुमने भी राहे किसी की
किसी ने तो वादा किया होगा तुमसे किसी ने तुम्हें भी रूलाया तो होगा

तुझसे मिलकर उंगली मीठी लगती है
तुमसे बिछड़कर षहद भी खारा लगता है
तेरे आगे चांद पुराना लगता है
तुझसे मिलके कितना सुहाना लगता है

माषूक का बुढ़ापा लज्जत दे रहा है
अंगूर का मजा किषमिष में आ रहा है

जड़ दो चांदी चाहे सोने में
आइना झूठ बोलता ही नहीं है
सच हारे या बढ़े तो सच ना रहे
झूठ की कोई इंतहा नहीं है

सुनते है कि मिल जाती है हर चीज दुआ से
एक रोज तुझे मांगकर देखंेगे खुदा से

तुझको यूं देखा है, यूं चाहा है, यूं पूजा है
तू जो पत्थर भी होती तो खुदा हो जाती

कहां ले जाएगा बांधकर तू ये षान ओ षौकत
कि कफन में कभी किसी के भी जेब नहीं होता

प्यास है ओस की बूंद पिये लेते हैं
रात है तारों को देखकर जिये लेते हैं
तुम न दे सके लेकिन भरोसा मुझको
जाओ तुम्हें चांद सी मुस्कान दिये देते हैं

क्षितिज तक प्रत्येक दिषा में हम उठे नवप्राण भरने
नवसृजन की साध लें हम उठे निर्माण भरने
साधना के दीप षुभ हो ज्ञान का आलोक छाए
नष्ट तृष्णा के तिमीर हो धाम अपना जगमगाए

तंग आकर मरीज ने अस्पताल से छलांग लगाई
तो डाॅक्टर ने टांग पकड़कर प्रभाती सुनाई
सुबह-सुबह षहर को प्रदूषित करता है नादान
खाली हाथ कहां चला जजमान फोकट में मुक्ति पाएगा
अबे मुर्दे को तो छोड़ा नहीं जिंदा कैसे जाएगा

भूख हर दर्षन का घूंघट उतार देती है
रोटी सामने हो तो लाजवंती भी कपड़े उतार देती है

इस देष में जिंदा लोग रहते हैं मुझे तो इस बात पर भी षक है
यारों ऐसे लोगों को जीने का क्या हक है
जो अपनी बदनसीबी पर खिलखिलाए
और पचास साल में पचास ईमानदार आदमी भी नहीं ढूंढ पाए

पत्थर उबालती रही एक माॅं तमाम रात
बच्चे फरेब खाकर चटाई पर सो गए

कभी तो कोई सच का साथ देेने सामने आए
कि हरेक सच के लिये मुजरिम हमारी जुबां क्यों हो

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाॅं जलाने में

‘‘दुष्मनी जमकर करो, लेकिन ये गुंजाइष रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो षर्मिन्दा न हों‘‘

खुदा महफूज रखे मुल्क को गंदी सियासत से
षराबी देवरों के बीच भोजाई रहती है

मिलकर बैठे भी और कोई न हो
खुदा करे कभी ऐसी कोई मुलाकात न हो

ऐ दिल जो हो सके तो लुत्फे गम उठा ले
तन्हाइयों में रोले महफिल में मुस्कुरा ले

दिनभर गमों की धूप में जलना पड़ा हमें
रातों को षमां बनकर पिघलना पड़ा हमें
हर एक कदम पे जानने वालों की भीड़ थी
हर एक कदम पे भेस बदलना पड़ा हमें

दिल के लहु को मेहंदी की खुषबू ने छीन लिया
जो हुआ बेटा जवान तो बहू ने छीन लिया

मेरा क्या है फिर एक सूरज उगा लूंगा
उजाले उनको दो जो तरसते हैं उजालों को
मेरी मजदूरी पर निगाह भी जमाने की
पर किसने देखा मेरे हाथों के छालों को

लब पे आए जिक्रे काना कहे काषी भी साथ-साथ
बात जब है कि हो नमाज और आरती भी साथ-साथ
कोई कहता है खुदा कोई कहता है नहीं
चल रही है झूठ और सच की कहानी साथ-साथ
नन्हें जहनों पर ये भारी बोझ किसने रख दिया
फिक्र रोटी-दाल की और ए बी सी डी साथ-साथ

जितने कष्ट कंटकों में हैं उनका जीवन सुमन खिला
गौरव गंध उन्हें उतना ही यत्र-तत्र-सर्वत्र मिला

मोहब्बतों में था जो खुमार वो जाता रहा
बुरा ना मान पर एतबार जाता रहा

इनके साथ 950 करोड़ लोगों का प्यार था
तो उनके साथ वे भी नहीं थे, जिन्होंने उन्हें भेजा
इन षहीदों के पार्थिव षरीर के लिये षहर उमड़ पड़ा
तो उनके गद्दारों के षव भी हमें दफनाना पड़े

तजुर्बों में कमी रही होगी
हादसे बेसबब नहीं होते

आगे बढ़ने का जिनमें है साहस
लोगों की आषाओं का जिन्हें है अहसास
कर्म करने में जिन्हें है विष्वास
सेवा और दयालुता का जिन्हें है अहसास
ठिकाना है उनका सेठी निवास

सफलता आपके यूं ही कदम चूमे
खुषियों ऐसे अवसर आते रहें आप झूमें
प्रगति और सफलता, विस्तार और उपलब्धियां
आपके कार्य को मिले नित-नित नई ऊंचाइयाॅं

अग्रणी रहने का जिनमें है साहस
नमोकार मंत्र जैसा जिन पर हमें है विष्वास
षक नहीं ऐसी दोस्ती पर बढ़ाया है हमारा आत्मविष्वास
मार्ग जिन्होंने सदा दिखाया चलो चले सिस्ट निवास

तुम्हारे इष्क पर कुरबान है मेरी सारी जिंदगी
पर मादरे वतन पर मेरा इष्क भी कुरबान है

आंधियां मगरूर दरख्तों को पटक जाएगी
वही षाख बचेगी जो लचक जाएगी

तू जब रिष्तों की समाधी बनाने जाएगा
ये बता विष्वास की मिट्टी कहां से लाएगा
दक्षिणा के नाम पर चाहे अंगूठा मांग ले
तेरा पागलपन तुझे इतिहास बनकर खाएगा

घर से मस्जिद है बड़ी दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए

हमसे उजली ना सही राजपथो की षाम
जुगनू बनकर आएंगे हम पगडंडी के काम

यूं बेबस ना रहा करो कोई षाम घर भी रहा करो
वो गजल की सच्ची किताब है उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
मुझे इष्तहार सी लगती है ये मोहब्बतों की कहानियाॅं
जो कहा नहीं वह सुना करो, जो सुना नहीं वह कहा करो
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करें

दीवानगी हो, उम्मीद हो अक्ल हो या आस
अपना वही है वक्त पे जो काम आ गया

फूल थे गैर की किस्मत में ही ऐ जालिम
तूने पत्थर ही मुझे फेंक के मारे होते

दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिये

रात को दिन में मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा ना था अंजाम भी अच्छा ना हुआ

संयोग न हो तो मिलन नहीं संभव
गज भर की दूरी भी योजन बन जाती है
यदि मिलन हो तो भू-अंबर में
किरणों वाली सीढ़ी बन जाती है

जो पे्रम में रोया ना हो जिसने पे्रम विरह को जाना ना हो
उसे तो प्रार्थना की तरफ इंगित भी नहीं किया जा सकता
इसलिये मैं पे्रम का पक्षपाती हूं प्रेम का उपदेष दे रहा हूं
कहता हूं पे्रम करो, क्योंकि पे्रम का निचोड़ ही एक दिन प्रार्थना बनेगा
प्रेम की एक हजार बूंद निचोडे़गे तब कहीं प्रार्थना की एक बूंद एक इत्र की बूंद बनेगी

दोस्त के लिये जान देने के लिये हर कोई तैयार है
बषर्ते जान देने का मौका नहीं आए।

दोस्त मददगार होते है पर इस षर्त पर कि आप उनसे मदद ना मांगे।

सबसे दुष्वार होता है दोस्त की कामयाबी पर मुबारकबाद देना
हाय आंख में आंसू हैं और लब पर मुस्कान।

अगर आपके यहां खुषी का कोई मौका है और आपने दुनिया को उसमें
हिस्सेदारी की दावत देते हैं तथा आप मेरे हरे दोस्त होते हुए भी मुझे भूल गए
मैं इसकी षिकायत नहीं करूंगा, बल्कि खुष हो आप कि आपने खुषी में मुझे याद
नहीं किया। अपनी दोस्ती आपने निभायी, लेकिन खुदा ना खास्ता कभी आप पर मुसीबत
आ जाए और आप उसकी खबर मुझे न दें ताकि मैं आपके कुछ काम ना आ सकूं तो मैं
जरूर बुरा मानूंगा कि आप मुझे अपना दोस्त नहीं मानते।

हे भगवान ! दोस्तों से मेरी रक्षा कर, दुष्मनों से तो मैं खुद अपनी रक्षा कर लूंगा।

अगर मुझे दोस्त या मुल्क में से किसी एक के साथ गद्दारी करना पड़े तो मैं मुल्क
के साथ कर लूंगा।

चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने
समझते थे मगर रखी ना फिर भी दूरियां हमने

पुलिस और ईमानदारी क्या बात करते हो श्रीमान्
जैसे सरदारों के मोहल्ले में दुकान

‘‘षब्द के मोती चुगने और बुनने वाला पत्रकारिता का हंस
अपने विषाल पंखो के बावजूद हल्की सी सरसराहट किये
बगैर ही उड़ गया‘‘

मधुमय वसंत जीवन वन के तुम अंतरिक्ष की लहरों में
कब आए थे चुपके से, रजनी के पिछले प्रहरों मंे
क्या तुम्हें देखकर आते यांे मतवाली कोयल बोली थी
उस नीरवता में अलसाह कलियों ने आंखे खोली थी।

किसी ने जर दिया, जेवर दिया, किसी ने खुषी दे दी
किसी का घर बसाने को हमने अपने घर की रोषनी दे दी

बेटे और पिता का हाथ दो बार ही मिलना चाहिये। एक बार
जब बाप-बेटे का हाथ पकड़कर चलना सिखाए, दूसरा जब
बूढ़े बाप को बेटा हाथ पकड़कर सहारा देकर चलाए। जवान
बेटे और बाप का आपस में हाथ मिलाना हमारी संस्कृति नहीं है।

दीवार में दरारे नहीं आती हैं, जहां दरारे पड़ती हैं वहां दीवार खींची जाती हैै।

आज के समय में जब मेरे कमरे में से चीख की आवाज आती है, जब दूसरे
भाई के कमरे में से ठहाके की आवाज आती है। यह समझ में नहीं आता है
कि मेरी चीख को सुनकर वे ठहाके लगा रहे हैं या उनके ठहाके को सुनकर
मेरी चीख निकल रही है।

हम माॅं-बाप के साथ रहे, वे हमारे साथ ना रहे
पहले मैं माॅं-बाप के साथ रहता था, अब वे मेरे साथ रहते हैं।

मनुष्य मूलतः अच्छे स्वभाव का प्राणी है। हमारी सोच नकारात्मक हो गई है।
हम चाहते हैं कि हम भले ही मैच हार जाएं पर पाकिस्तान फाईनल नहीं जीत पाए।

एक बार तीन व्यक्तियों को भगवान ने वरदान दिया- एक को गोरा, दो को गोरा
तीसरा बोला- दोनों को वापस काला कर दो।

एक बार भगवान बोला- तेरे को जो होगा, उससे पड़ोसी को दुगुना होगा। तो मैंने कहा
मेरी एक आंख फूट जाए।

हम जब कम पढ़े-लिखे थे तो सरदार पटेल को ज्यादा चुनते थे। अब ज्यादा पढ़-लिख
लिये तो फूलन देवी को चुनते हैं।  हम षिक्षित तो हो गए पर सभ्य नहीं हो पाए।

अगर कहीं पर्वत है तो यकीन मानिये आस-पास कहीं नदी भी होगी
बिना हृदय में गहरा दर्द संजोए कोई कोई इतना ऊंचा उठ नहीं सकता।

खंडवा जैसे छोटे षहर में आदमी इस खुषी में ही जिये जाता है
कि उसके मरने पर बहुत लोग आएंगे।

बच्चे फूलगोभी हैं, माॅं-बाप बंदगोभी

अजान की तरह पढि़ये, आरती की तरह गाइये

पीतल की बाली भी नहीं उसकी बीबी के कान में
जिसने अपनी जिंदगी गुजार दी सोने की खान में

जाएगी कहां मौज किनारों को छोड़कर
मिल जाएगा सुकून क्या सहारों को छोड़कर
मानाकि हमसे दूर चले जाओगे मगर
रह भी सकोगे क्या इष्क के मारो को छोड़कर

असत्य में षक्ति नहीं होती उसे अपने अस्तित्व
के लिये भी सत्य का सहारा लेना होता है।

सत्य बोले- प्रिय बोले, ऐसा सत्य न बोलें जा प्रिय ना हो
ऐसा प्रिय ना बोलें जो सत्य ना हो।

दुष्कर्म से सफलता की कामना करने के बजाय सत्कर्म करते हुए मर जाना बेहतर है।

जब  क्रोध उठे तो उसके नतीजे पर विचार करो।

जिस दिन मनुष्य दूसरों की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझेगा
मांसाहार उसी दिन समाप्त हो जाएगा।

वाणी से आदमी की बुद्धि और औकात का पता लग जाता है।

ज्ञान पाप हो जाता है, अगर उद्येष्य षुभ ना हो।

लेके तन के नाप को घूमे बस्ती-गांव
हर चादर के छोर से बाहर निकले पांव

सातो दिन भगवान के क्या मंगल, क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर

अच्छी संगत बैठकर संगी सदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप

चाहे गीता बाचिये या पढि़ये कुरआन
मेरा-तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान

वो रूलाकर हंस न पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माॅं ने फिर पानी पकाया देर तक

कैसे पता चले पतझड़ है या बहार
ऐ दोस्त कोई पेड़ नहीं आस-पास में

मावस का मतलब बिटिया को भूखी माॅं ने यूं समझाया
भूख की मारी रात अभागन आज चांद को निगल रही है

दुश्मनी का सफर इक कदम, दो कदम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएंगे

उलझे हुए दामन को छुड़ाने की सजा है
खुद अपने चिरागों को बुझाने की सजा है
षहरों में किराए का मंका ढूंढ रहे हम
ये गांव का घर छोड़कर आने की सजा है

आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंजर क्यूं है
जख्म हर सर पे, हर हाथ में पत्थर क्यूं है
अपना अंजाम तो मालूम है सबको फिर
अपनी  नजरों में हर आदमी सिकंदर क्यूं है

अब मैं राषन की कतारों में नजर आता हूं
अपने खेतों से बिछड़ने की सजा पाता है
इतनी मंहगाई की बाजार से कुछ लाता हूं
अपने बच्चों में उसे बांट के षरमाता हूं

मैं खिलौनों की दुकाने खोजता ही रह गया
और मेरे फूल से बच्चे सयाने हो गए

ये दुनिया गम तो देती है षरीके गम नहीं होती
किसी के दूर जाने से मोहब्बत कम नहीं होती

जिंदगी सच्चाई बनकर जिस्म छूने को लगी
जब जरा पैसे मिले बाजार मंहगा हो गया

मंजिले ख्वाब बनकर रह जाए
इतना बिस्तर से प्यार मत करना

तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता

दिले नांदा तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है

न्यौछावर संकल्पमय सेवा का वरदान
चिर कृतज्ञ हम कर रहे अमृत महोत्सव सम्मान
सरस सिपाहा सुहृदय की आत्मीयता अगाध
अब गिरीष पूरी करें सौ वर्षों की साध

हम तो बिक जाते है उन अहले करम के हाथों
करके अहसान भी जो नीची नजर रखते हैं

उस पार है उम्मीद और उजास की एक पूरी दुनिया
अंधेरा तो सिर्फ देहरी पर है

उन दिलों के नाम जिनमें अभी प्यार करने की ताकत है
और जिनमें बसी है यह बात कि बेहतर जिंदगी रखने के लिये
एक ताजा षुरूआत करने के लिये कभी भी देर नहीं हुआ करती

जाने कैसे पंख लगाकर पल-पल उड़ जाता है
वक्त तो है आकाष पंछी कहां पकड़ में आता है

क्या भरोसा जिंदगानी का, आदमी बुलबुला है पानी का

बंद रखते हैं जुंबा लब नहीं खोला करते
चांद के सामने तारे नहीं बोला करते
हम अपनी बात का रखते हैं भरपूर जवाब
तुम्हारी तरह हवा में नहीं बोला करते
फासला कितना है इस डाली से उस डाली तक
इतनी दूरी के लिये हम पर नहीं खोला करते

बता सितारों की पगडंडी तुझे चांद तक जाना है
और वहां की बंजर धरती पर एक बाग लगाना है

जन्म दिवस के षुभ प्रभात पर, जब खोलो नयनों के द्वार
सौ-सौ सूरज पास खड़े हों, ले ज्योति षक्ति भंडार

दिले नाउम्मीद नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की षाम पर षाम ही तो है

तुझे मिली हरियाली डाली, मुझे नसीब कोठरी काली
तेरा नभ भर में संचार, मेरा दस फुट का संसार
तेरा गीत कहा वे वाह रोना भी है मुझे गुनाह

सच्चा है अपना प्यार तो क्या इस जहां का डर
फूल बनकर गुलिस्ता में फिर खिलंेगे हम
अब बिछड़ रहे हैं तो कोई रंज मत करो
जब जब बहार आएगी  तो फिर मिलेंगे हम
सितारों को आंखो में महफूज रख लो दूर तक रात ही रात होगी
मुसाफिर हैं हम भी, मुसाफिर हो तुम भी, इसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी

देखना चाहते हो गर इनकी उड़ान को
और ऊंचा करो इस आसमान को

कष्ती का जिम्मेदार फकत् नाखुदा ही नहीं
कष्ती में बैठने का सलीका भी चाहिये

कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गए
कुछ लोग हैं जो वक्त के सांचे बदल गये

किसी का कद बड़ा देना, किसी का कद घटा देना
हमें आता नहीं ना मोहतरम को मोहतरम कहना
ष्
लब पर उसके कभी बदृदुआ नहीं होती
एक माॅं ही तो है जो कभी खफा नहीं होती

जिंदगी है तो ख्वाब है, ख्वाब है तो मंजिले हैं
मंजिले हैं तो रास्ते हैं, रास्ते हैं तो मुष्किले हैं
मुष्किले हैं तो हौंसला है, हौंसला है तो विष्वास है
विष्वास है तो जीत है

मन में अगर हो प्यार तो हर दौर मधुवास है
देता है रब भी साथ अगर दिल में सच्ची आस है
ये तो माना हम बिछड़ रहे हैं मगर
हम यहीं पर फिर मिलेंगे, ये अटल विष्वास है

सूखी धरती, सूखे समंदर आओ पानी बहाएं
रंग गुलाल के सबसे अच्छे सूखी होली मनाएं
आओ दूर कर लें दिल के मलाल
गालों पर लगा दें प्रेम का गुलाल

जरा सी भी वफा तेरी फितरत में नहीं आई,
तुझे पच्चीस बोतल खून कुत्ते का चढ़ाया था

सत्य की विजय होती है यह बात पुरानी है
अब तो जो विजयी होता है, वही सत्य है

रेस में हारे हुए लोगों के पास जीते हुए को
कोसने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता
खंडवा रेस में हारे हुए लोगों का षहर है अतः
विजयी को कोसना यहां का राष्ट्रीय चरित्र बन गया है

तुम्हारा बेवफा कहना हमें मंजूर है क्योंकि
तुम्हारा साथ देने से मदीना छूट जाएगा

इतनी ऊंची मत छोड़ो गिर पड़ोगे धरती पर
क्योंकि आसमान में सीढि़याॅं नहीं होती
सबको उस रजिस्टर में हाजिरी लगानी है
मौत वाले दफ्तर में छुटिृटयाॅं नहीं होती

बंदूके बंद रहे हमेषा, गायब नफरत फसाद हो
आंसा हो खुलकर मुस्कुराना, हर दिल में उल्लास हो
न्याय चिरायु बनें यहां, अन्याय का अवसान हो
चहक उठे हर चप्पा-चप्पा कोई कोना ना वीरान हो
हर ईद मने खुषहाली में, सदा सुखी रमजान हो

हम लगा ना सके उसके कद का अंदाज
वो आसमां था पर सर झुकाए बैठा था

चमन में इकतलफ बू और रंग से बात बनती है
तुम्ही तुम हो तो क्या तुम हो, हमीं हम हैं तो क्या हम हैं

तमाम रिष्ते मैं अपने घर पर छोड़ आया था
फिर उसके बाद कुछ अजनबी ना मिला

वह मूर्ति कर्म में जीती थी हों परमषांत प्रस्थान मिला
अमणित अनुनय बेकार हुए निष्ठुर हरि में कब ध्यान दिया
दुनिया की आंख मिचैली से वे दोनों आंखे बंद हुई
बंधन ठुकराकर तपोमयी, वह आत्मा अब स्वछंद हुई

नमोमंडल पर जरूरत नहीं कि तुम नक्षत्रों
की तरह बंधी घडि़यों और बंधे दिनों में आओ
और तारूण्य में जन्मते ही तुम्हारा विज्ञापन हो
तुम सर्वनाष के नहीं सर्वप्राण के भूकम्प बनकर क्यों ना आओ
पेज गिनने वाले प्रकाषक का पुस्तक के पन्ने बनकर आने के
बजाय तुम अपने जमाने की उथल-पुथल के संदेषवाहक बनकर
क्यों ना आओ। तुम्हारा स्वागत करने वाले बरस अचंभा करें कि
तुम विष्व में किस द्वार से आये थे और किस जीने पर चढ़कर लौट गए।
                            --माखनलाल चतुर्वेदी--


मंजिल मिलेगी जरूर, विष्वास ले चलना होगा वरना
हो अमावस की हुकूमत तो दीप बनकर जलना होगा

ऊंचे पहाड़ों पर जो परिंदा बैठा है
जब भी सोचता है आसमान की बात होगी

पुलिस नहीं परिहास, ठिठोली अथवा कोई मसाला
पुलिस बांटती तुमको अमृत, स्वयं थामती हाला

पड़ाव-दरपड़ाव, मंजिल के अंतिम पड़ाव पर आ पहुंचा सफर
सहेजते-सहेजते, पड़े-पड़े बिखर गई जिंदगी की किताब


गरीब रोज मरना चाहता है, अमीर उसे मरने नहीं देता
जानता है अमीर, गरीब मर जाएगा तो अमीरी भी नहीं रहेगी
गरीबी की पीठ पर ही टिका है अमीरी का अस्तित्व

हर ओर फूल है, खुषबू है, रस है रसवंती मौसम में
गहरे मन से दे रहे तुम्हें हम, विदा वसंती मौसम में

किताबे जिंदगी का एक नया उनवान है षादी
दो अजनबी जब एक हों वह इकरार है षादी
दुनिया का तकाजा है और फर्ज मजबूर करता है
ये कैसा जष्न है जो लख्ते जिगर को दूर करता है

तू प्यार करना छोटो से, बड़ो की कद्र भी करना
कहे तुझको बुरा कोई तो दीपा सब्र भी करना
तुझे कुछ दे नहीं सकता, बस ये आन देता हूं
बजाए सोने-चांदी के तुझे कुरआन देता हूं

सर्द रातों की आवारगी, उस पर नींद का बोझ
हम अपने षहर में होते तो घर जाकर सोते

काफिरों के लिये फकत एक शोर, मोमिनों के लिये एक अजान हूं मैं
ऐ नयी दौर की नस्ल मुझे गौर से सुन, गालिब और मीर की जबान हूं मैं

मोहब्बत में अना नहीं चलती, खुद ना आते हमें बुलाते हो
चांदनी रात सिसकियां भरती तुम जब छत पर आते हो

हजार लाषों को देखकर, आंखे नम नहीं होती
कैसे खा जाते हैं वे झूठी कसमें, हमसे रोटी हजम नहीं होती

काटकर गैरों की टांगे, खुद लगा लेते हैं लोग
इस षहर में इस तरह भी, कद बढ़ा लेते हैं लोग
षेर सुनने का सलीका जब इन्हें आता नहीं
षायरों को जाने ना फिर क्यों बुला लेते हैं लोग

जीने दो हर बषर को, तितली के पर तलक की हिफाजत किया करो
बिन आदमी के क्या वजूद कायनात का, इंसान हो इंसान से मोहब्बत किया करो
                                --अब्दुल जब्बार--

बनाये प्यार की माला जो बिखर न पाये कभी
नषा अहिंसा का चढ़कर, उतर ना पाये कभी
तुम्हीं दुआएं दो, आषीर्वाद दो मुझको
मेरे पांव से चींटी भी ना मर पाए कहीं

निहत्थे लोग भी जंगल में काम करते हैं
तो गाय-बैलों के घर षेर काम करते हैं
करिष्मा है ये महावीर जी के होने का
कि मोर, सांपो को झुककर सलाम करते हैं

वो एक सच है जिसे सब भुलाए बैठे हैं
खुद अपनी आंखों पर पर्दा गिराए बैठे हैं
किसी को कोई भी उस एक से नहीं मतलब
सब अपनी-अपनी दुकान सजाए बैठे हैं

नई सुबह की, नई किरण हो
नया जोष हो, नई लगन हो
हर पल चिंतन, यही हमारा
मंगलमय हो, जीवन तुम्हारा

मौत रास्ते में बिछाई जा रही थी
षहरों को जिंदा जलाया जा रहा था
बज रही थी डुगडुगी बाजीगरों की
खेल टीवी पर दिखलाया जा रहा था

कीमती कालीन जब से मेरे घर में आ गए
बेहिचक घर आने-जाने की अदा जाती रही
बाथरूमों की नये कल्चर में इतना बंद हूं
खुलकर बारिष में नहाने की अदा जाती रही

अगर मिल जाते मुझे वापस उम्र के पिछले हिस्से
भूल जाता मैं बाकी जिंदगी सारी
जी लेता अपना बचपन फिर से

ताजी सांसे ही रहेगी मन में
माॅं की यादें प्राणों में
पिता की ऊर्जा आंखों में उजाला होगा
जाने कैसे मेरे पिता ने मुझे पाला होगा

संतान होना यूं ही नहीं कि आपकी प्रगति है
आपका सोपान है, संतान का होना यूं कि
आपसे भी परे, आपसे भी पार कोई इंसान है
जो अभी-अभी खेलकर सोया हुआ है मगर
जिसमें नियती ने ईष्वर को बोया होगा

माना कि मेरे पास खाली गिलास है
तसल्ली की बात है कि सुराही के पास है

मैं ना जुगनू हूं, ना दिया हूं, ना कोई तारा
रोषनी वाले मेरे नाम से डरते क्यों हैं
लोग हर मोड़ पर रूककर संभलते क्यों हैं
इतना डर है तो घर से निकलते क्यों हैं


क्या हार में, क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत में
कर्तव्य पथ पर जो मिले ये भी सही वो भी सही

कुछ ना पहले-पहल आऊं ये दुनिया छली गई
सुमनों के मुख पर धूल सदा ही मली गई
युग-भुज फैलाकर फूलों ने सरिता से मांगा आलिंगन
वह आज नहीं प्रिय कल, कल कहती चली गई

बेरंग जिंदगी तो बेरंग ही सही, हम तो यहीं रहेंगे जमीं तंग ही सही
हम अमन चाहते हैं जुल्म के खिलाफ, गर जंग लाजमी है तो जंग ही सही

आज की यह कविता में खो जाइये
क्या पता ये मिल न फिर दोबारा ना हो
और दोबारा तो क्या इसका पता
मन तुम्हारा न हो मन हमारा न हो
डूबकर कुछ सुनों और सुनकर बुनो
मन मिलाओगे मन से तो मिल जाएंगे
वरना हम हैं परिंदे बहुत दूर के
बोलियां अपनी बोलकर उड़ जाएंगे

मेहरबां होकर जब चाहे बुला लो मुझको
मैं गया वक्त नहीं जो आ भी ना सकूं

कमरे कम दीवार बहुत हैं
इस घर में लाचार बहुत हैं

खुद अपने अपमान से बच, यारों के अहसान से बच
जो निकले आसानी से ऐ दिल, उस अरमान से बच
बात इषारों में कर ले, दीवारों के कान से बच

जगमगाते हुए सूरज पर नजर रखता हूं
तुम समझते हो कि झिलमिलाते सितारों बहक जाऊंगा

घर भर को जन्नत बनाती है बेटियाॅं
अपनी तबस्सुम से इसे सजाती हैं बेटियाॅं
जब वक्त आता है इनका बिदाई का
जार-जार सबको रूलाती हैं बेटियाॅं

सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां
और जिंदगानी रही भी तो नौजवानी फिर कहो

मेरा मुझमें कुछ नहीं जो है सो है तेरा
तेरा तुझको सौंप दूं, क्या लागे है मेरा

जो भी आता है सजा देता है दोस्त बनकर दगा देता है
वो तो माॅं-बाप का ही दिल है वरना मुफ्त में कौन दवा देता है

वो आती रही मिलती रही, हम हंसी को प्यार समझ बैठे
वो एक दिन नहीं आई, हम इतवार समझ बैठे

सभी गीत ऊंचे स्वर में गाए नहीं जाते
जिगर के जख्म सभी को दिखलाए नहीं जाते
जिसे देखो वो बेताब है मीनार बनने को
पर नींव के पत्थर कहीं पाए नहीं जाते

नेता, कुत्ता और जूता पहले तो चरण चाटते हैं
और उसके बाद काटते हैं

गत क्या ढली, सितारे चले गये
गैरों से क्या गिला, जब अपने चले गये
जीत तो सकते थे इष्क की बाजी हम भी
पर तुम्हें जिताने के लिये हम हारते चले गये

वो घटाएं, वो फुहारें वो खनक भूल गये
बज्में बारिष में नहाने की ललक भूल गये
जब से इस बाग में तूने आना छोड़ दिया
तब से पंछी भी यहां अपने चहक भूल गये
हमारे होंठो की हंसी सबने यहां याद रखी
जाने क्यों लोग हमारे दिल की कसक भूल गये

जिन्होंने अपनों को ना माना, माना देष महान है
उन्हीं के दम पर खड़ा हुआ मेरा ये हिन्दुस्तान है

हर चमकती चीज सोना नहीं होती
भावुकता सिर्फ रोना नहीं होती
किसी की दूरी से उदास मत हो दोस्त
किसी की दूरी, उसे खोना नहीं होती

जो बसे हैं वो उजड़ते हैं, प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दिया जलाना कब मना है

लोगों को कहते सुना अक्सर जिंदा रहे तो फिर मिलेंगे
मगर इस दिल ने महसूस किया है, मिलते रहेंगे तो जिंदा रहेंगे

जब दोस्ती की दास्तान वक्त सुनाएगा
हमको भी कोई षख्स याद आएगा
तब भूल जाएंगे जिंदगी के गमों को
जब आपके साथ गुजरा वक्त याद आएगा

वही अल्फाज जो अखबार में पत्थर के होते हैं
गजल में आ गये तो आंख की पलकें भिगोते हैं

बंगले से भी सड़क को दिये उजाले हमने
दौलत आई तो कुत्ते नहीं पाले हमने

हवेली वाले हिकारत से मेरी सल्तनत ना देख
मुझे यहां नहीं जन्नत में घर बनाना है
इबादतों के लिये तू मुझे जगह न बता
मुझे पता है कि सर कहांॅ झुकाना है

यूं बेबस न फिरा करो, कोई षाम घर भी रहा करो
वह गजल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिजाज का षहर है, जरा फासले से मिला करो

रंजिश रही दिल में सफाई के बाद
बंजर रही जमीं सिंचाई के बाद
तुम गुफ्तगू करो तो तुम्हें पता चले
कितने हैं लोग जाहिल पढ़ाई के भी बाद

न रहा मोहताज चांद-सितारों का कभी
सदा मैंने अपने मेहनत के उजाले देखे
तष्कीरा लकीरों का वही पर रख दिया
जब नजमियों ने मेरे हाथ के छाले देखे

अक्लें हैरां हैं मेरी रफ्तारे दुनिया देखकर
एक को आता देखकर, एक को जाता देखकर
भूलकर मेरे जनाजे को कांधा मत देना
जिंदा ना हो जाऊं फिर मैं सहारे देखकर

ना पूछा कौन है, क्यों राह में लाचार बैठै हैं
मुसाफिर हंै, सफर करने की हिम्मत हार बैठै है

टूटी हुई मंुडेर पर, छोटा-सा एक चिराग
मौसम से कह रहा है, आंधी चलाके देख

नषेमन पर नषेमन इस कदर तामीर करता चल
कि बिजली गिरते-गिरते आप ही बेजार हो जाएं

ठंडी हवाएं, महक, फिजां, नर्म चांदनी
रात तो एक थी जो बस तेरे साथ काट दी
गोसा बदल-बदलके सारी रात काट दी
कच्चे मकां ने अबके भी बरसात काट दी
हालांकि हम मिले है बड़ी मुद्दतों के बाद
औकात की कमी ने मुलाकात काट दी
वो सर भी काट देता तो होता नहीं मलाल
अफसोस ये है कि उसने मेरी बात काट दी

फुर्सत-ए-काट फकत चार घड़ी है यारों
ना समझो अभी उम्र पड़ी है यारों
अपने अंधेरे मकानों से तो बाहर झांको
जिंदगी षमां लिये दर पर खड़ी है यारों

किसने दस्तक दी ये दिल पर कौन है
आप तो अंदर है ये बाहर कौन है

दिल धड़कने का तसव्वुर ख्याली हो गया
एक तेरे जाने से सारा षहर खाली हो गया

सियासत में सियाकारों के चेहरे लाल रहते हैं
यहां जो कुछ नहीं करते मालामाल रहते हैं
मेरे सोने की गंगा में, मेरी चांदी की जमना में
सुनहरी मछलियाॅं थीं, आजकल घडि़याल रहते हैं

या तो मुझसे छीन लो ये बुत तराषी का हुनर
या फिर जो बुत तराषूं वो खुदा हो जाए

हजारों मुष्किलें हैं दोस्तों से दूर रहने में
मगर एक फायदा है पीठ पर खंजर नहीं लगता

जिसको तेरी आंखों से प्यार होगा
गर जिया भी तो वह बीमार होगा
ये मोहब्बत है जरा सोच-समझकर रोना
एक आंसू भी टूटा तो गुनाह देगा

वह हादसा भी खूब था, जब आंसुओं का तीर
निकला किसी की आंख से आकर लगा मुझे

कितने मौसम बीत गये दुख-दर्द की तन्हाई में
दर्द की झील नहीं सूखी है आंखों की अंगनाई में

ना किसी की आंख का नूर हूं, ना किसी के दिल का करार हूं
जो किसी के काम ना आ सका, मैं वो एक मुष्ते गुबार हूं

बारिष का मजा चाहो तो, मेरी आंखों में आकर बैठो
वो तो बरसों में बरसती है, यह बरसांे से बरसती है

इतने हुए बदनाम हम इस जमाने में
तुमको लग जाएगी सदियां हमें भुलाने में
ना तो पीने का सलीका है ना पिलाने का षऊर
ऐसे ही लोग चले आए हैं मयखाने में

अबके सावन में षरारत ये मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़कर सारे षहर में बरसात हुई
षब्द झूठे हैं सत्य कथाओं की तरह
वक्त बेषर्म है वैष्या की अदाओं की तरह

सबूत हैं मेरे घर में धुएं के धब्बे
अभी यहां पे उजालों ने खुदखुषी की है

जिंदगी भर तो गुफ्तगू हुई गैरों से मगर
आज तक तुमसे हमारी ना मुलाकात हुई

खुषबू सी आ रही है इधर जाफरान की
षायद खुली है खिड़की, उनके मकान की

सातों दिन भगवान के क्या मंगल, क्या पीर
जिस दिन सोये देर तक भूखा रहे फकीर
मैं रोया परदेस में भीगा माॅं का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार

आपकी नजरों में सूरज की जितनी अजमत
हम चिरागों का भी उतना ही अदब करते हैं

रात को दिन में मिलाने की हवस थी हमको
काम अच्छा न था अंजाम भी अच्छा न हुआ

मैंने अपनी खुष्क आंखों से लहु टपका दिया
एक समंदर कह रहा था मुझको पानी चाहिये
और सिर्फ कब्रों की जमीनें देकर मत बहलाओ
हमने राजधानी दी थी हमको राज-धानी चाहिये

उस पार उतर जाएं ये बात ख्याली है
जिस नाव में बैठे हो वो डूबने वाली है
हालात की तब्दीली षायद उसे कहते हैं
जो बाग का दुष्मन था, वो बाग का माली है

भोर का तारा हुए तुम, रात के साए गए
रोशनी का दिन सजा तो तुम कहीं पर खो गए

तन समर्पित, मन समर्पित और ये यौवन समर्पित
और क्या दूं मातृ-भू तुम पर किया जीवन समर्पित

कौन कहता है बुढ़ापे में जवानी नहीं होती
ये अलग बात है किसी की मेहरबानी नहीं होती

भाषा चाहे जितनी भी हो, जीत सदा हिंदी की होगी
चंद्रमा पर जाओ या मंगल पर, पहली दुकान किसी सिंधी की होगी

नये कमरों में चीजें पुरानी अब कौन रखता है
परिंदों के लिये कुंडो में पानी अब कौन रखता है
ये तो ये हैं जो संभाले हैं गिरती दीवारों को
वरना बुजुर्गों की निषानी को कौन रखता है

कौन कहता है बूढ़ों को प्यार करने का हक नहीं होता
ये अलग बात है इन पर किसी को षक नहीं होता

उसके घर जाकर दिये सपाटे चार
देखता ही रह गया जगत का ठेकेदार
फटी जब पैर बिवाइ पीर जब समझ में आई

मेरे घर में चहकती रही बेटियाॅं
सारे षहर को खटकती रही बेटियाॅं
ओढ़कर सपन सारा षहर सो गया
राह पापा की तकती रही बेटियाॅं
छोड़ माॅं-बाप को जब बेटा चल दिया
सेवा माॅं-बाप की कर रही बेटियाॅं
मम्मी-पापा के आंसू के अंगारों पर
बनकर बदली बरसती रही बेटियाॅं
बेटी होना एक अपराध है देष मंे
यही सुन-सुन सिसकती रही बेटियाॅं
इस जमाने ने षर्मो-हया बेच दी
राह चलने में अब झिझकती रही बेटियाॅं
अब की तनख्वाह पर ये ये चीज होना हमंे
कहते-कहते झिझकती रही बेटियाॅं

यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिराके अगर तुम संभल सको तो चलो

चाहे बसों, पहाड़ पर या फूलों के गांव
माॅं के आंचल से अधिक षीतल कहीं न छांव
इसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माॅं की गोदी से अधिक नीरज कौन पवित्र

पूछिये तो कायम है रंगीनियाॅं जमाने की
सर धुनते हैं फिर भी वो दिन कहां गये

कुत्ते का घुमाना याद रहा और गाय की टोटी भूल गये
दोस्त-यार सब याद रहे पर सगे भाइयों को भूल गये
साली का जन्मदिन याद रहा और माॅं की दवाई भूल गये

षर्त लगी जब एक षब्द में दुनिया लिखा देने की
सबने दुनिया लिख डाला मैंने सिर्फ माॅं लिखा

थामले जो हाथ गिरते आदमी का
आदमी सही में वो ही इंसान है

अन्न देना, धन देना, देना ना मकान चाहे
बेटी कभी देना नहीं किसी निर्धन को

साधना इतनी बड़ी की जाप छोटे पड़ गये
पुण्य जब इतने बडे़ कि पाप छोटे पड़ गये
इतनी ऊंचाइयाॅं जब नापने निकले ये लोग
इतना कद ऊंचा मिला कि नाप छोटे पड़ गये


एक है षहर मुंबई जहां लोग पत्थर दिल होते हैं
एक आपका षहर है खंडवा जहां पत्थर के भी दिल होते हैं

जो भरत भूमि में जन्मा है मुस्लिम है, सिख, इसाई है
उससे पे्रम का रिष्ता है माता का जाया भाई है

अब तो कोई एक वरक तेरे-मेरे बीच हो
तेरे घर हो गीता और मेरे घर कुरआन हो
ईद, दीवाली, होली, मोहर्रम सब मिलकर एक साथ हो
मेरे घर हो जब उपवास, तब तेरे घर रमजान हो

आया वसंत तो फूल भी षोलो में ढल गये
मैं चूमने गया तो मेरे होठ जल गये

जिनके लिये दिलों में चाहत है, प्यार है
वो आ रहे हैं, जिनका हमें इंतजार है

जहां ना पहुंचे रेलगाड़ी, वहां पहुंचे मोटरगाड़ी
जहां ना पहुंचे मोटरगाड़ी, वहां पहुंचे बेलगाड़ी
जहां ना पहुंचे बेलगाड़ी, वहां पहुंचे मारवाड़ी

आ मिटा दे दिलों पे जो स्याही  आ गई
मेरी ईद तू मनाले तेरी दीवाली में मनालूं

एक-दूसरे से मिलने की फुर्सत नहीं
क्या कमी है आदमी की रफ्तार में

आदमी को पेषेवर होते हुए
हमने देखा गांव को षहर होते हुए
खुदा की तरह पूजे गए है यहां
न जाने कितने लोग पत्थर हुए


तुम्हारी षान घर जाती कि रूतबा घर गया होता
जो तुमने कहा गुस्से में प्यार से गर कह दिया होता

माना कि मेरे पास खाली गिलास है
तसल्ली की बात है कि सुराही के पास है

जब कलिका को मादकता में, हंस देने का वरदान मिला
जब सरिता को उन बेसुध-सी लहरों को कल-कल गान मिला
युग-युग की उस तन्मयता को, कल्पना मिली संचार मिला
तब हम पागल से झूम उठे, जब रोम-रोम को प्यार मिला

परिभाषा बांधती है, निष्चित करती है सीमाएॅं
अपरिभाषित प्रेम के बंधन में हम और तुम
परिणाम, परिणिति या नियति सोचकर
क्या किसी ने वास्तव में पे्रम किया है

एक दिन दिनमान से मैंने जरा जब यों कहा
आपके साम्राज्य मंे इतना अंधेरा क्यों रहा
तिलमिलाकर वो दहाड़ा मैं भला अब क्या करूं
तुम निकम्मों के लिये मैं अकेला कहां तक बढ़ूं
आकाष की आराधना के चक्करों में मत पड़ो
संग्राम ये घनघोर है कुछ मैं लड़ू कुछ तुम लड़ो

तुम न समझो तुम्हारा मुकद्दर हूं मैं
मैं समझता हूं तुम मेरी तकदीर हो

चंद मछेरो ने साजिष कर सागर की संपदा चुराली
कांटो ने माली से मिलकर फूलों की कुर्की करवा ली
खुषियों की हड़ताल हुई है, सुख की तालाबंदी है
आने को आई आजादी, मगर उजाला बंदी है

रहा ना कारवां अब गर्द लिये बैठे हैं
हमें ना छेडि़ये हम दर्द लिये बैठे हैं


हर फूल की किस्मत में नहीं सेहरे की ताजनषीन
कुछ फूल तो खिलते हैं मजारों के लिये भी

कहीं पर चांद-तारे हैं, कहीं बादल गरजते हैं
कहीं षादी के जलसे हैं, कहीं आंसू बरसते हैं
कहीं टुकड़ों के लाले हैं, कहीं किस्मत बनी रानी
कहीं सूखा समंदर है, कहीं लहरा रहा पानी
हमें दोनों ही प्यारे हैं, बना कुछ भी न बोलेंगे
खुषी भेजे तो हंस लेंगे, सितम भेजे तो रो लेंगे

उस दिन आवाज ने नहीं, चुप्पी ने साथ दिया मेरा
बिगाड़ा चुप्पी ने ही उस दिन मेरे ईमान को

गर हौसले बुलंद हो मंजिले मिलती रहेगी
एक कदम तुम चलोगे, दो कदम मंजिल चलेगी

तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है

ज्यादा खाय, जल्द मरी जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय
रहे निरोगी जो कम खाय, बिगड़े काम न जो गम खाय

टूटे नहीं संकल्प, बस संदेष यौवन का यही
सच हम नहीं सच तुम नहीं, सच है सतत् संघर्ष ही

आपको मैंने निगाहों में बसा रखा है
आइना छोडि़ये आइने में क्या रखा है

या रहिये इसमें अपने घर की तरह
या मेरे दिल में आप घर ना करें

करीब आओ तो षायद हमें समझ लोगे
ये फासले तो गलतफहमियां बढ़ाते हैं


दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिष्ता
दिल मिले या ना मिले हाथ मिलाते रहिये

षब्द के तीर प्यार की कमान रखते हैं
बंद होंठो में एक मीठी जुबान रखते हैं
तुम तो रहते हो हिन्दुस्तान में लेकिन
ये तो वो हैं जो दिल में हिन्दुस्तान रखते हैं

रूके तो चांद चले तो हवाओं जैसा है
वो षख्स धूप में देखो तो छांव जैसा है

परी चेहरों की कमी नहीं दुनिया मंे मगर ऐ दोस्त
तेरे मिजाज की ठंडक कहां मिलती है

छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता
मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते
न ही मैदान जीतने से, मन भी जीते जाते हैं

गहरी नदियां, नांव पुरानी, तिस पर यह मौसम तूफानी
तू किसको आवाज लगाता, सभी करेंगे आना-कानी
वैसे तो इस जग में यारों, बड़ी प्रखर आंसू की बानी
लेकिन अंधो की नगरी में, मत कर रोने की नादानी
तू ही नहीं दुखी इस जग में, सबकी अपनी राम कहानी

जीवन में एक सितारा था, माना वो बेहद प्यारा था
वो डूब गया तो डूब गया, अंबर के आंगन को देखो
इसके कितने तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गये, फिर कहां मिले, पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर षोक मनाता है, जो बीत गई सो बीत गई

इस राज को एक मर्दे फिरंगी के किया फाष
हर चंद की दाना इसे खोला नहीं करते
जम्हूरियत एक तर्जे हुकूमत है कि जिसमें
बंदो को गिना करते हैं तौला नहीं करते

मंजिल भी उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों मंे जान होती है
पंख होने से कुछ नहीं होता, हौंसलो से उड़ान होती है

माना कि तेेरे प्यार के काबिल हम नहीं
पर उनसे जाकर पूछिये, जिन्हें कि हम हासिल नहीं

खाक से बढ़कर कोई दौलत नहीं होती
और छोटी-मोटी बात पर हिजरत नहीं होती
पहले दीप जले तो चर्चा हुआ करती थी
अब षहर जले तो भी हैरत नहीं होती
रोटी की गोलाई नापा करता है पगले
इसलिये तो घर में बरकत नहीं होती

फैसला होने से पहले मैं भला क्यों हार मानूं
जग अभी जीता नहीं है, मैं अभी हारा नहीं हूं

मोहब्बत एक खुष्बू है हमेषा साथ चलती है
कोई इंसा तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
परखना मत, परखने से कोई अपना नहीं होता
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता
बड़े लोगों से मिलने में जरा सा फासला रखना
दरिया समंदर में मिल जाए तो समंदर नहीं होता

झुकते वही जिनमें जान होती है
अकड़े रहना मुर्दों की पहचान होती है

जिसने बनाई दसो दिषाएं और बनाई ऋतुएं चार
करें विनम्र षीष नवाकर उस रब से मैं बारम्बार
जब-जब जन्म लूं धरती पर संगनी तुझे पाऊं हर बार

यूं तो तुम्हे रोज प्यार करते हैं
पर आज षब्दों से इजहार करते हैं

आप भी आइये हमको भी बुलाते रहिये
दोस्ती जुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिये
दुष्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिष्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये

नजर बदल लो, नजारे बदल जाएंगे
सोच बदल लो सितारे बदल जाएंगे
जरूरत नहीं है किष्तियां बदलने की
राह बदल दो किनारे बदल जाएंगे

सुमुखी तुम्हारा सुंदर मुख नहीं, माणिक मदिरा का प्याला
छल रही है जिसमें छल-छल, रूप मदिर मादक हाला
मैं ही साकी बनता मैं ही पीने वाला बनता हूं
जहां कहीं मिल बैठे हम-तुम, वहीं हो गई मधुषाला

जो दर्द दिया तुमने, गीतों में पिरो लेंगे
आंखे भी छलकेगी, जी भर के भी रो लेंगे

अब तक है जमाने पे जिस आवाज का जादू
उसके मेरे नगमात पे उपकार बड़े थे
कहना रफी साहब के लिये है बड़ा मुष्किल
इंसान बड़े थे या कलाकार बड़े थे

खंडवा की मिट्टी ने मुझको गढ़ा, यहीं की फिजा में ये पौधा बढ़ा
खंडवा का रंग ऐसा मन चढ़ा, कोई षहर लगता न इससे बड़ा

गूढ़ ज्ञान, संगीत कला का बिरसे में वो लाए हैं
गंधर्वों की वाणी लेकर इस धरती पर आए हैं
मन्ना दा पहुंचे जहां उन्नति की उच्चतम चोटी है
उनकी कला के सामने फिल्मी दुनिया छोटी है

गजल, गीत, अरू छंद से, छीन ले सबका चैन
दिव्य अमोलक रत्न है, रवीन्द्र जैन

लबों पर तबस्सुम, निगाहों में बिजली
कयामत कहीं से चली आ रही है
खुदा के लिये अपनी नजरों को रोको
मेरे दिल की दुनिया लुटी जा रही है

जिंदगी या तो किसी को प्यार से देखने का नाम है
या किसी की आंखों में प्यार देखने का नाम है

जिस तरफ से गुजरकर हम गये
लोग उसे रास्ता कहने लगे

तुम ही मेरी आरजू हो, किस्मत हो
मेरे मरने के बाद भी नहीं छूटेगी
तुम मेरी जिंदगी की आदत हो
जिसको सदियों से ढूंढ रहा था मैं
तुम उसी रोषनी की दौलत हो
तुमको देखा तो यूं लगा जैसे
तुम्हीं दिल हो तुम्हीं मोहब्बत हो

बिखरा पड़ा है मेरे ही घर में मेरा वजूद
बेकार महफिलों मंे इसे ढूंढता हूं मैं

कुछ हकीकत का सामना भी कर
खुष खयाली के जाल ही मत बुन
आइना देखकर पलट मत जा
हौंसला है तो उसकी बात भी सुन

घरों में छुपकर ना बैठो कि ऋतु सुहानी है
छतों पर चले आओ कि बहता पानी है

पूनम डूबी अमावस के घर, सावन सारे सलाखों में डूबे
और मौसम डूब गया बे मौसम, डूबने वाले तो लाखों में डूबे
षाखों में डूबा है मधुबन सारा, पंछी सयाने भी पाखो में डूबे
और तैर गये हम यूं तो समंदर, डूबे तुम्हारी तो आंखों में डूबे

साजिषें लड़वाने वाली, दीन-ओ-ईंमा हो गयी
गीत हिंदू हो गये, गजलें मुसलमां हो गयी

ला पिला दे साकिया, पैमाना पैमाने के बाद
होष की बाते करेंगे, होष में आने के बाद
सुरखरू होता है इंसा आफते आने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे घिस जाने के बाद
दिल मेरा लेने की खातिर मिन्नतें क्या-क्या ना की
कैसे नजरें फेर ली मतलब निकल जाने के बाद
वक्त सारी जिंदगी में दो ही गुजरे हैं कठिन
एक तेरे आने से पहले, एक तेरे जाने के बाद

कभी दिये के आगे पल दोपल बर्बाद कर लेना
पतंगा जब चले कोई तो, हमको याद कर लेना

वो जितनी खुदनुमाई कर रहा है
खुद अपनी जग हंसाई कर रहा है
जरा सा जोर दरिया में क्या आया
समंदर की बुराई कर रहा है
तमाषा देख तो खुद गर्जियों का
दगा भाई से भाई कर रहा है
हमारे बल पर मसनद पाने वाला
हमसे ही कद अदाई कर रहा है

खुद जिंदगी के हुस्न का मयार बेचकर
दुनिया अमीर हो गई किरदार बेचकर
दीवानगी तो देखिये जूते पहन लिये
उस सरफिरे ने जुनबाओ दस्तार बेचकर
बुजदिल तेरी रगो में अगर खूं नहीं बचा
जा चूडि़यां पहन ले तलवार बेचकर

कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद, कहीं गिरजा बना देना
फिर उसके बाद कुछ अफवाह के पर्चे उड़ा देना
गलतफहमी से बढ़कर प्यार का दुष्मन नहीं कोई
परिंदो को उड़ाना हो तो बस षाखें हिला देना

नजर-नजर में उतरना कमाल होता है
नफ्स में बिखरना कमाल होता है
बुलंदी पर पहुंचना कमाल नहीं
बुलंदी पर ठहरना कमाल होता है

कड़वा भले है नीम क्या, चंदन से कम है
अपना षहर खंडवा क्या चंदन से कम है

जो साज से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो तार पे बिली है वो इस दिल को खबर है

वह पथ क्या पथिक कुषलता क्या, पथ में बिखरे यदि षूल ना हो
वह नाविक धैर्य परिक्षा क्या, यदि धाराएं प्रतिकूल ना हो

वक्ते सफर करीब है बिस्तर समेट लूं
बिखरा हुआ हयात का दफ्तर समेट लूं
फिर जाने हम मिलें, ना मिलें इक जरा रूको
मैं दिल के आइने में ये मंजर समेट लूं

ऐ मेरे हमसफरों तुम भी थके-हारे हो
धूप की तुम हो मिलावट ना करो इन छांवांे में
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
बंट ना जाए तेरा बीमार कहीं इन मसीहाओं में

उनके हमारे अंदाजे इष्क में बस फर्क इतना है
हम मिलने को तरसते हैं वो तरसाके मिलते हैं

लबों पर तबस्सुम, निगाहों में बिजली
अदाओं के झुरमुट में वो आ रहे हैं
नजर लड़ कई है जो मेरी नजर से
पसीने-पसीने हुए जा रहे हैं

आए जुबां पे राजे मुहब्बत मुहाल है
तुमसे मुझे अजीज तुम्हारा ख्याल है

षाहजहां से ताजमहल बन गया
मैं तेरे लिये रंगमहल बनवाउंगा
षाहजहां ने तो मुर्दा दफनाया था
मैं तुझे जिंदा दफनाउंगा

जो भी ससुर ने हमको दिया, दान ले चले
टी वी, फ्रिज और साथ में मान ले चले
लेकिन जब चली साथ में दुल्हन तो ये लगा
हम आज अपनी मौत का सामान ले चले

जिस गेट पर लिखा रहता था, मेहमान है मेरा भगवान के समान
तरक्की ए जमाना देखिये, उस गेट पर लिखा है कुत्ते से सावधान

एक तलवार है मेरे घर में, जिसका दस्ता ठोस सोने का
क्या करेगी मेरी हिफाजत वो, डर सा रहता है जिसके खोने का

उससे मिलने की जुस्तजू भी है, वो मेेरे रूबरू भी है
सोचा था दिल जला डालें, ख्याल आया कि दिल में तू भी है

गांव लौटे षहर से तो सादगी अच्छी लगी
हमको मिट्टी के दिये की रोषनी अच्छी लगी
बासी रोटी सेंककर जब नाष्ते में माॅं ने दी
तब अमीरी से हमें ये मुफलिसी अच्छी लगी

मैं तेरी आंख में आंसू की तरह रहता हूं
जलते-बुझते हुए जुगनू की तरह रहता हूं
सब मेरे चाहने वाले हैं मेरा कोई नहीं
मैं इस मुल्क में उर्दू की तरह रहता हूं

खूबसूरत हैं आंखे तेरी, रातों को जागना छोड़ दे
खुद-बखुद नींद आ जाएगी, तू मुझे सोचना छोड़ दे
तेरी आंखों से कलियां खिले, तेरे आंचल से बादल उड़े
देख ले तेरी चाल को, मोर भी नाचना छोड़ दे

जो बातें राज की हैं, उसे आम कर देगी
तुम्हारी दोस्ती मुझे बदनाम कर देगी

इससे बढ़कर वो क्या लाएगा जुल्मों-सितम
षरीर बूढ़ा कर दिया पर दिल जवान रह गया

सारे रिष्ते हैं टिके अब झूठ की बैसाखी पर
भाई तो है जिंदा, लेकिन भाईचारा मर रहा है

कैचियां हमें उड़ने से क्या रोक पाएगी
हम परो से नहीं हौसलों से उड़ते हैं

गम तो मेरे साथ दूर तक गये
मुझे ना आई थकान तो वे खुद थक गये

मजाल क्या है कोई रोके दिलेर को
कुत्ता भी काट लेता है दोस्ती में षेर को

जिद से जिद टकरा गई खुद्दारियों के नाम
वरना देर क्या लगती थी फैसला होते हुए

इस कदर भी नाज मत अपनी वफा पर कीजिये
जाने क्या गुजरी हो उस पर बेवफा होते हुए

किसी ने पूछा राज-ए-कामयाबी
हमने बताया बस मोहब्बत तुम्हारी षुक्रिया

सफर ए जिंदगी में कितनों को दोस्त कहकर जाना है
दोस्ती प्यार है, जिंदगी इबादत है, तुम्हें सिर्फ कहा नहीं दिल से माना है

पंजाब 4 फायटिंग, बंगाल 4 राइटिंग
कर्नाटक 4 सिल्क, हरियाणा 4 मिल्क
केरला 4 बे्रन, यूपी 4 ग्रेन, एचपी 4 एप्पल
ओडि़सा 4 टेम्पल, एपी 4 हेरिटेज
एमपी 4 ट्राइवल्स, स्टेट 4 युनिटी, इंडिया 4 इंटरसिटी

लोग कहते हैं कि इतनी दोस्ती मत करो
कि दोस्त दिल पर सवार हो जाए
हम कहते हैं दोस्ती इस तरह से करो
कि दुष्मन को भी तुमसे प्यार हो जाए

एहसास बहुत होगा, जब छोड़ के जाएंगे
रोओगे बहुत लेकिन आंसू नहीं आएंगे
जब साथ न दे कोई आवाज हमें देना
आसमां पर भी होंगे तो लौट के आएंगे

मदमस्त हवाएं हैं, मौसम भी सुहाना है
बंदर भी एमबीबीएस पड़ रहे हैं देखो क्या ज़माना है

खिड़की से देखा तो रास्ते पर कोई नहीं था
रास्ते से देखा तो खिड़की पर कोई नहीं था

प्यार करने वालों की किस्मत बुरी होती है
हर मुलाकात जुदाई से जुड़ी होती है
कभी रिष्ते की किताब पड़ लेना
दोस्ती हर रिष्ते से बड़ी होती है

जिन अमीरों के आंगन में सोने का सजर लगता है
उनका हर ऐब जमाने को हुनर लगता है

फूल में कितना वजन है, षूल में कितनी चुभन है
यह बताएंगे तुम्हें वे, लुट गया जिनका चमन है

बर-बार राजा और मंत्री बदलने से क्या होगा
बदलना है तो इस काठ महल को बदलो

यादों की रूत आते ही सब हो गये हरे
हम तो समझ रहे थे सभी जख्म भर गये
जो हो सके तो अब भी सागर को लौट आ
साहिल के सीप स्वाति की बूंदो से भर गये

असलियत जमाने से किसलिये छुपाते हो
जब दिल नहीं मिलता तो हाथ क्यों मिलाते हो

तुम मुझे भूल जाओ ये मुमकिन नहीं
तुम्हें मेरी तरह चाहता कौन है

जो दिन में अम्न कमेटी नयी बनाते हैं
सुना है रात में वो बस्तियां जलाते हैं
लगे हुए हैं कई दाग जिनके चेहरे पर
वो लोग आज हमें आईना दिखाते हैं

सारे अंदाज हैं माषूक के राठन की तरह
संग मारे हैं निगाहों से वो गोफन की तरह
कमसिनी बीत गयी, दौरे जवानी भी गया
बल वो खाते हैं मगर आज भी हेलन की तरह
इस ढली उम्र में था जिसका सहारा मेयर
रूठकर बैठ ये वो भी समधन की तरह

जिस्म पर मिट्टी मलेंगे, खाक हो जाएंगे हम
ऐ जमीं एक दिन तेरी खुराक हो जाएंगे हम
ऐ गरीबी देख रास्ते में हमंे मत छोड़ना
ऐ अमीरी दूर रह नापाक हो जाएंगे हम


सियासी गुफ्तगू मत कीजिये अच्छा नहीं लगता
रफू को फिर रफू मत कीजिये अच्छा नहीं लगता

कुंए के पहरेदारों को लबो की प्यास मत दिखला
खुदा का नाम ले पानी तेरी ठोकर से निकलेगा

पुलिस नहीं परिहास, ठिठोली अथवा कोई मसाला
पुलिस बांटती सबको अमृत, स्वयं थामती हाला
पुलिस हमारे दिवस सजाने अपनी रात जलाती है
राज्य व्यवस्था के दीपक में पुलिस तेल बनाती है
खाकी वर्दी समाधान है, संकट के हर काल का
पुलिस हमारी उत्तर केवल, जलते हुए सवाल का
खाकी वर्दी पहन निकलना नहीं कोई आसान
इस वर्दी पर टंका हुआ है पूरा हिन्दुस्तान

मेरी षाम के धुंधलके, मेरी सुबह के उजाले
तुझे दोनों दे दिये हैं, तेरी बात कौन टाले

पी लेता हूं पीने के तमन्ना के लिये भी
डगमगाना भी जरूरी है संभलने के लिये

उम्मीदें कम चष्म ए वरीदार में आए
हम लोग जरा देर से बाजार मंे आए
ये आग हवस की है झुलसा देगी उसे भी
सूरज से कहो साये दीवार में आए

दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूं कितना है
नोक-ए-खंजर ही बताएगी कि खूं कितना है
जमा करते रहे जो अपने को जर्रा-जर्रा
वो ये क्या जाने बिखरने में सुकूं कितना है

लुटाके अपने काले धन को इज्जत चाहते हैं हम
बहुत आसान तरकीबों से जन्नत चाहते हैं हम
हमें इस वास्ते कोई षराब लगती नहीं अच्छी
षराबों में भी तेरे होंठो की लज्जत चाहते हैं हम

जरा सा कतरा कहीं आज उभरता है,
समंदरों के लहजे में ही बात करता है
खुली चाहतों के दिये कबसे बुझ गये होते
कोई तो है जो हवाओं के भी पर कतरता है

सजदा ए दिल में तराने बहुत हैं
जिंदगी जीने के बहाने बहुत हैं
आप सदा मुस्कुराते रहें
आपकी मुस्कुराहट के दीवाने बहुत हैं

अंधेरे चारो तरफ सांय-सांय करने लगे
चराग हाथ उठाकर दुआएं करने लगे
सलीका जिनको सिखाया था हमने चलने का
वो लोग हमेें आज दायंे-बायें करने लगे
जमीं पर आ गया आंखों से टूटकर आंसू
बुरी खबर है फरिष्ते खताएं करने लगे
तरक्की कर गये बीमारियों के सौदागर
ये सब मरीज हैं जो अब दवाएं करने लगे

सबको रूसवा बारी-बारी किया करो
हर मौसम में फतवे जारी किया करो
कतरा-कतरा षबनम गिनकर क्या होगा
दरियाओं की दावेदारी किया करो
रोज वहीं एक कोषिष जिंदा रहने की
मरने की भी कुछ तैयारी किया करो
चांद ज्यादा रोषन है तो रहने दो
जुगनू भैया दिल मत भारी किया करो

हजारों हमदर्द मिलते हैं, काम के चंद मिलते हैं
बुरा जब वक्त आता है, सारे दरवाजे बंद मिलते हैं

मुझे सहल हो गई मंजिलें, वो हवा के रूख भी बदल गये
तेरा हाथ, हाथ में आ गया कि चिराग राह में जल गये

जीवन क्या है चलता-फिरता एक खिलौना है
दो आंखों में एक से हंसना, एक से रोना है

बहल जाएंगे पत्थरों से ही बच्चे
गरीबी खिलौने कहां मांगती है

हम जिंदगी की जंग में तन्हा लड़े रफीक
आई करीब मौत तो सब साथ हो गये

साया बनकर खड़ा रहा मैं आंगन में
बना नहीं मैं रास्ते की दीवार कभी
बारिष की बूंदो के भरोसे मत रहना
आंखे भी कर देती है बौछार कभी

दौलत की क्या हवस है रिलायंस से पूछ लो
पैसा सगा और भाई पराया ही रहेगा
जब तक रहेगी जेब गर्म देखते रहो
हर लफ्ज ‘‘जाहिरा‘‘ का बदलता ही रहेगा
दल कोई भी हो और कोई भी निषान हो
नेता तो है नेता और वो नेता ही रहेगा
झूठ के आगे-पीछे दरिया चलते हैं
सच बोला तो प्यासा मारा जायेगा
धुंआ भरा हो जिन आंखों मंे नफरत का
उनसे कोई ख्वाब ना देखा जाएगा
एक मदारी के जाने का गम किसको
गम तो ये है मजमा कौन लगाएगा

किसी चिराग का कहीं कोई मकां नहीं रहता
जहां जाएगा, वहीं रोषनी लुटाएगा

तेरी नफरतों को प्यार की खुषबू बना देता
मेरे बस में अगर होता तो तुझे उर्दू सिखा देता

पहले जमीन बांटी थी अब घर भी बंट गया
इंसान अपने आप में कितना सिमट गया
हम मुंतजिर थे षाम से सूरज के दोस्तों
लेकिन वो आया सर पे तो कद अपना घट गया

जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैं जमाने की षर्तों पे जीता नहीं
देखे जाते नहीं मुझसे हारे हुए,
इसलिये मैं कोई जंग जीता नहीं
अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चिरागों की सांसो से जीता नहीं

स्याह रात नहीं लेती है नाम ढल तेरा
यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का
कहीं न सबको समंदर बहाके ले जाए
ये खेल खत्म करो कष्तियाॅं बदलने का

बहुत मषहूर होता जा रहा हूं,
मैं खुद से दूर होता जा रहा हूं
यकीनन अब कोई ठोकर लगेगी
मैं बहुत मगरूर होता जा रहा हूं

षैतान एक रात में इंसान हो गये
जितने भी थे हैवान वे कप्तान हो गये

कभी-कभी यूं भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिस बात को खुद ही ना समझे, दूसरों को समझाया है

ये षेख बिरहमण हमें अच्छे नहीं लगते
हम हैं जितने सच्चे ये उतने नहीं लगते
ऐसे भी गली-कूंचे हैं बस्ती में हमारी
बचपन में भी बच्चे जहां बच्चे नहीं लगते

रखना हमेषा याद ये मेरा कहा हुआ
आता नहीं के लौटके पानी बहा हुआ
सबके फसाने सबने सुने गौर से मगर
जो मेरा वाकिया था वही अनसुना हुआ

हुकूमत मुंहभराई के हुनर से खूब वाकिफ है
ये हर कुत्ते के आगे षाही टुकड़ा डाल देती है
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों में
गरीबी कान छिदवाती है तिनका डाल देती है
कहां की हिजरतें, कैसा सफर, कैसा जुदा होना
किसी की चाह पैरों पर दुपट्टा डाल देती है

फुरसत-ए-काट फकत चार घड़ी है यारों
ये ना समझो अभी उम्र पड़ी है यारों
अपने अंधेरे मकानों से बाहर झांको
जिंदगी षमां लिये दर पर खड़ी है यारों

किसी फनकार का षोहरत पर इतराना नहीं अच्छा
दौराने सफर में कुछ धूल सर पर बैठ जाती है
तवायफ की तरह अपनी गलतदारी के चेहरे पर
हुकूमत मंदिर और मस्जिद का परदा डाल देती है

मोहब्बत करने वालो में ये झगड़ा डाल देती है

सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है
ये चिडि़या भी मेरी बेटी से कितनी मिलती-जुलती है
कहीं भी षाखे गुल देखे तो झूला डाल देती है

गांव से षहर में भेज दिया मुझको पढ़ने स्कूल
मैं था कांटा गांव का हो गया षहर का फूल
मैंने सारी जिंदगी खुषबुएं बांटी
माॅं ने सारी उम्र मेरी याद में काटी

इससे पहले कि हम जुदा हो जाएं
बेहतर है दोस्त हम जुदा हो जाएं
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी ना जाने क्या से क्या हो जाएं

मेरा दुष्मन मेरे जीने की दुआ देता है
कोई षख्स खुद को यूं भी सजा देता है
अपना चेहरा कोई कितना भी छुपाए लेकिन
वक्त हर षख्स को आईना दिखा देता है

हरेक चेहरा यहां पर गुलाल होता है
तुम्हारे षहर मंे पत्थर भी लाल होता है
किसी हवेली के ऊपर से मत गुजर चिडि़या
यहां छते नहीं होती हैं जाल होता है
मैं षोहरतों की बुलंदी पर जा नहीं सकता
जरा उरूज पर पहुंचा तो बवाल होता है

मेरे आंगन की कलियों को तमन्ना षाहजादों की
मगर मेरी मजबूरी है कि मैं बीड़ी बनाता हूं
हुकूमत का हरेक ईनाम है बंदूकसाजी पर
मुझे कैसे मिलेगा मैं तो बैसाखी बनाता हूं
मुझे इस षहर की सब लड़कियां आदाब कहती हैं
मैं बच्चों की कलाई के लिये राखी बनाता हूं
सजा कितनी बड़ी है गांव से बाहर निकलने की
मैं मिट्टी गूंधता था अब डबलरोटी बनाता हूं

क्या कहिये कितनी जल्दी जवानी गुजर गई
अब ढूंढता हूं मैं किधर आई, किधर गई
मैं सिर्फ इसकी इतनी हकीकत समझ सका
एक मौज थी जो आई उठी और उतर गई

कुनबे का बोझ उठाता था तन्हा जो जान पर
बूढ़ा हुआ तो बोझ बना खानदान पर

देखकर फसल अंधेरों की ये हैरत कैसी
तूने खेतों में उजाला ही कहां बोया था
गुम अगर सुई भी हो जाए तो दिल दुखता है
और हमने तो मोहब्बत में तुम्हें खोया है

जब भी अपना गम छुपाना पड़ता है
बच्चों में बच्चा बन जाना पड़ता है
गलती पर तुम गलती करते रहते हो
और हमें खुद को समझाना पड़ता है

होकर मायूस ना यूं षाम से ढलते रहिये
जिंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिये
एक ही पांव पर ठहरोगे तो थक जाओगे

मुझे इसका गम नहीं है कि बदल गया जमाना
मेरी जिंदगी है तुमसे कहीं तुम बदल ना जाना

ये जहां पैसे बचाने में लगा रहता है
हम फकीरों का हाथ मगर खुला रहता है
मुफलिसी देकर वो बचाता है मक्कारी से
सब समझते हैं खुदा हमसे खफा रहता है
तुझको कुदरत ने नवाजा है तो मगरूर न बन
जिसमें फल रहते हैं वह पेड़ झुका रहता है

जो करते हो वो कहते हो, चुप रहने की लज्जत क्या जानो
इसे राज-ए-मोहब्बत कहते हैं तुम राज-ए-मोहब्बत क्या जानो

खूबसूरत आंखे तेरी रातों को जागना छोड़ दे
नींद खुद-ब-खुद आ जाएगी तू मुझे सोचना छोड़ दे

मत करो यकीन अपने हाथों की लकीरों पर
नसीब उनके भी होेते हैं जिनके हाथ नहीं होते

हम दाद भी फिर भाई को भाई नहीं देते
जाले भी पड़ोसी के दिखाई नहीं देते
बढ़ जाती है जब घर की दिवारांे की बुलंदी
मस्जिदों के मीनारे भी दिखाई नहीं देते

हिरषो हवस में कोई कमी क्यों नहीं हुई
सुख पाकर ये दुनिया सुखी क्यों नहीं हुई
जो मिल सका ना उसका ही गम क्या किया गया
जो कुछ मिला था उसकी खुषी क्यों नहीं हुई

फूल खुषबू, चांद तारे कहकषां भी साथ है
ये ज़मीं भी साथ है ये आसमां भी साथ है
इसलिये जन्नत के जैसा लग रहा है मेरा घर
मेरे बच्चों के अलावा मेरी माॅं भी घर में है

वो रूलाकर हंस ना पाया देर तक
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक
भूलना चाहा कभी उसको मगर
और भी वो याद आया देर तक
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माॅं ने फिर पानी पकाया देर तक
गुनगुनाता जा रहा था एक फकीर
धूप रहती है, ना साया देर तक

जब से उसके घर की दीवार ऊंची हो गयी
भाई की आवाज भी ऐ यार दुष्वार हो गई
भाइयों के दरमियां जब से हुआ है
दुश्मनांे के हाथ की तलवार ऊंची हो गई

गम की आहट भी ना आए तेरे दर पर
प्यार के समंदर का तू भी किनारा हो
कभी भूल से भी जो टपके तेरी आंख से मोती
थामे वही जो तुझको सबसे प्यारा हो

कई घरों को निगलने के बाद आती है
मदद भी षहर के जलने के बाद आती है
वो नींद जो तेरी पलकों पे ख्वाब बुनती थी
यहां तो धूप निकलने के बाद आती है
वही महक जो तुम्हारे बदन से आती है
कभी-कभी वो मेरे पैरहन से आती है
गुलाब ऐसे ही थोड़े गुलाब होता है
ये बात कांटो पर चलने के बाद आती है
ना जाने कैसी महक आ रही है बस्ती से
जो दूध के जलने के बाद आती है

दुख में नीर बहा देते थे, सुख में हंसने लगते थे
सीधे-सादे लोग थे लेकिन कितने अच्छे लगते थे

उनसे क्या करें मेहमान नवाजी की उम्मीद
जो अपनी मुंडेरों से कौएं तक उड़ा देते हैं

सबकी आंखे तो खुली हैं देखता कोई नहीं
सांस सबकी चल रही है जी रहा कोई नहीं
मैं सिसकने की सदाएं सुन रहा हूं बार-बार
आप कहते हैं कि घर में दूसरा कोई नहीं

षहर को षहर बहा देती है तिनके की तरह
तुम तो कहते थे कि अष्कों में रवानी कम है

षिकवा कोई दरिया की रवानी से नहीं है
रिष्ता ही मेरी प्यास का पानी से नहीं है

मेरे हिस्से की जमीं बंजर थी मैं वाकिफ न था
बेसबब इल्जाम मैं देता रहा बरसात को

ये काफिले यादों के कहीं खो गये होते
एक पल भी यदि भूल से हम सो गये होते
ऐ षहर तेरा नामो-निषा भी नहीं होता
जो हादसे होते थे अगर हो गये होते