रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, वही ये सृष्टि चला रहे है, जो पेड़ हमने लगाया पहले, उसी का फल हम अब पा रहे है, रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने, वही ये सृष्टि चला रहे है इसी धरा से शरीर पाए, इसी धरा में फिर सब समाए, है …
दर दर भटक रहा हु तेरी दोस्ती के पीछे दर दर भटक रहा हु तेरी दोस्ती के पीछे, क्या सजा मिली है मुझको तेरी दोस्त के पीछे, दर दर भटक रहा हु तेरी दोस्ती के पीछे मैं गरीब हु तो क्या है दीनो के नाथ तुम हो, होठो पे है उदासी तेरी रोशनी के पीछे दर दर भटक रहा हु …