मत मारे दृगन की चोट ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी - MAT MARE DRAGAN KI CHOT


श्याम पिया मोरी रँग दे चुनरिया ।


ऐसी रँग दे, के रंग नहीं छूटे ।
      धोबिया धोए चाहे सारी उमरिया ॥

लाल ना रँगाऊँ मैं, हरी ना रँगाऊँ ।

      अपने ही रंग में रँग दे चुनरिया ॥

बिना रँगाए मैं घर नहीं जाऊँ ।

      बीत ही जाए चाहे सारी उमरिया ॥

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर ।

      प्रभु चरनन पे लागी नजरिया ॥


मत मारे दृगन की चोट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

मैं बेटी वृषभान बाबा कीऔर तुम,
और तुम हो नन्द के ढोट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

मुझको तो लाज बड़े कुल-घर कीऔर तुम,
और तुम में बड़े-बड़े खोट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

पहली चोट बचाय गई कान्हाअरे कर,
अरे कर नैनन की ओट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

दूजी चोट बचाय गई कान्हाअरे कर,
अरे कर घूँघट की ओट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

तीजी चोट बचाय गई कान्हाअरे कर,
अरे कर लहँगा की ओट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

नन्दकिशोर वहीं जाय खेलोजहाँ मिले,
जहाँ मिले तुम्हारी जोट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

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