होली खेल रहे नन्दलाल- HOLI KHEL RAHE NAND LAL BRINDAVAN

होली खेल रहे नन्दलाल

सबका हाल बेहाल कर रहे हैं, साथ में चुनरी की भी शोभा बिगाड़ रहे हैं। तब भी भक्त जन मुग्ध नहीं, मन्त्र-मुग्ध हैं।

होली खेल रहे नन्दलालवृन्दावन की कुंज गलिन में
वृन्दावन की कुंज गलिन में, वृन्दावन की कुंज गलिन में
होली खेल रहे……………..

संग सखा श्याम के आये, रंग भर पिचकारी लाए
      सबका !!!! हो सबका करें हाल बेहाल || वृन्दावन की ----------
चल गली रँगीली आए, ढप-झाँझ-मृदंग बजाए
      गाँवें !!!! हो गाँवें नाचें, छेड़ें तान || वृन्दावन की ----------

रंग भर पिचकारी मारी, चूनर की आब बिगारी
      मेरे मुख पे !!!! हो मेरे मुख पे मला गुलाल || वृन्दावन की ----------
छवि निरख श्याम की प्यारी, सब भक्त बजावें तारी

      सब पर !!!! हो सब पर रंग डाल रहे ग्वाल || वृन्दावन की ----------

आज बिरज में होरी रे रसिया- AAJ BIRAJ ME HORI RE RASIYA

आज बिरज में होरी रे रसिया
       होली रे रसियाबरजोरी रे रसिया  आज बिरज में -----------
चोवा चन्दन और अगरजा,
   केसर मृगमद घोरी रे रसिया ॥ आज बिरज में -----------

इधर से आए कुँवर कन्हैयाइधर से आए कुँवर कन्हैया
       उधर से राधा गोरी रे रसिया  आज बिरज में -----------
अपने-अपने घर से निकलींअपने-अपने घर से निकलीं
       कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया  आज बिरज में -----------

कौन के हाथ कनक पिचकारीकौन के हाथ कनक पिचकारी
       कौन के हाथ कमोरी रे रसिया  आज बिरज में -----------
राधा के हाथ कनक पिचकारीराधा के हाथ कनक पिचकारी
       श्याम के हाथ कमोरी रे रसिया  आज बिरज में ----------

कितना लाल-गुलाल मँगायाकितना लाल-गुलाल मँगाया
       कितनी मँगाई केसर रे रसियाआज बिरज में -----------
सौ मन लाल-गुलाल मँगायासौ मन लाल-गुलाल मँगाया
       दस मन केसर घोली रे रसिया  आज बिरज में -----------

उड़ा गुलाल लाल हुए बादलउड़ा गुलाल लाल हुए बादल
       केसर हवा में घुली रे रसिया  आज बिरज में -----------
बज रहे ताल मृदंग-झाँझ-ढपबज रहे ताल मृदंग-झाँझ-ढप
       और नगाड़ों की जोड़ी रे रसिया   आज बिरज में -----------

चन्द्रसखी भज बाल कृष्ण छविचन्द्रसखी भज बाल कृष्ण छवि

       युग-युग जिए यह जोड़ी रे रसिया आज बिरज में -----------

नन्द के द्वार मची होली- NAND KE DWAR MACHI HOLI

नन्द के द्वार मची होली

सूरदास जी की दृष्टि में कुँवर कन्हैया की होली कैसी है? बाबा नन्द के द्वार पर होली की धूम है। एक ओर पाँच वर्ष के कुँवर कन्हैया खड़े हैं तो दूसरी ओर सात वर्ष की राधा रानी। प्रभु इस जोड़ी को बनाए रखें, यह सूर जी की विनती है। (कहते हैं कि दस वर्ष की आयु में कंस के निमंत्रण पर कृष्ण कुश्ती लड़ने उसके दरबार में चले गए थे।)


बाबा नन्द के द्वार मची होलीबाबा नन्द के |

इधर खड़े हैं कुँवर कन्हैया-लाला
      उधर खड़ी राधा गोरीबाबा नन्द के || नन्द के द्वार....

पाँच बरस के कुँवर कन्हैया-लाला
      सात बरस-की राधा गोरीबाबा नन्द के || नन्द के द्वार....

 हाथ में लाल गुलाल पिचकरा
      मारत हैं भर बरजोरीबाबा नन्द के || नन्द के द्वार....

सूरदास प्रभु तिहारे मिलन को

      अविचल रहियो यह जोड़ीबाबा नन्द के || नन्द के द्वार....

कान्हा पिचकारी मत मारे, मेरे घर सास लड़ेगी रे- KANHA PICHKARI MAT MARE

कान्हा पिचकारी मत मारे


यह गोपी पहले वाली से अधिक चतुर सुजान दिखाई देती है। कान्हा पिचकारी की धार मारें, उससे पहले ही चिरौरी कर रही है। उस समय के समाज का क्या सही चित्रण कर रही है। सास गालियाँ तो देगी ही (जब वह भीगी चुनरी और टूटी माला लेकर घर पहुँचेगी), रोटी भी नहीं देगी।  ननद बिजुलिया पिया से एक की चारऔर चार की सोलह लगाएगी।

कान्हा पिचकारी मत मारे, मेरे घर सास लड़ेगी रे
सास लड़ेगी रे, मेरे घर नन्द लड़ेगी रे || कान्हा पिचकारी ------

सास डुकरिया मेरी बड़ी खोटी, गारी दे, ना देगी रोटी
द्योरानी-जिठानी मेरी जनम की दुश्मन, सुबह करेंगी रे || कान्हा पिचकारी ------

जा-जा झूठ पिया से बोले, एक की चार, चार की सोलह
ननद बिजुलिया जाय पिया के कान भरेगी रे || कान्हा पिचकारी ------

कुछ नहीं बिगड़े श्याम तुम्हारा, मुझे होएगा देश-निकाला
ब्रज की नारी दे ताली, मेरी हँसी करेंगी रे || कान्हा पिचकारी ------

हा-हा खाऊँ पडूँ तोरी पइयाँ, डालो श्याम मती गलबहियाँ
नाजुक मोतिन की माला मेरी टूट पड़ेगी रे || कान्हा पिचकारी ------

कान्हा पिचकारी मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय - KANHA PICHKARI MAT MAAR


शब्दार्थ :  कुलवंसिन = कुलीन, औगुन = अवगुण,  गारो = अत्यन्त
कान्हा पिचकारी मत मार, चूनर रंग-बिरंगी होय |

  चूनर नई हमारी प्यारे 
       हे मनमोहन बंसी वारे
             इतनी सुन ले नन्द-दुलारे
पूछेगी वह सास हमारी, कहाँ से लाई भिजोय || 
कान्हा पिचकारी -----

सबको ढंग भयो मतवारो
     दुखदाई है फागुन वारो
             कुलवंसिन को औगुन गारो 
राह मेरी न रोक कान्हा मैं समझाऊँ तोय || 
कान्हा पिचकारी ------

तान दई रंग की पिचकारी
       हँस-हँस के रसिया बनवारी
             भीज गईं सबरी ब्रजनारी
राधा ने हरि का पीताम्बर खींचा मद में खोय ||
 कान्हा पिचकारी ---------


मत मारे दृगन की चोट ओ रसिया, होली में मेरे लग जाएगी - MAT MARE DRAGAN KI CHOT


श्याम पिया मोरी रँग दे चुनरिया ।


ऐसी रँग दे, के रंग नहीं छूटे ।
      धोबिया धोए चाहे सारी उमरिया ॥

लाल ना रँगाऊँ मैं, हरी ना रँगाऊँ ।

      अपने ही रंग में रँग दे चुनरिया ॥

बिना रँगाए मैं घर नहीं जाऊँ ।

      बीत ही जाए चाहे सारी उमरिया ॥

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर ।

      प्रभु चरनन पे लागी नजरिया ॥


मत मारे दृगन की चोट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

मैं बेटी वृषभान बाबा कीऔर तुम,
और तुम हो नन्द के ढोट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

मुझको तो लाज बड़े कुल-घर कीऔर तुम,
और तुम में बड़े-बड़े खोट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

पहली चोट बचाय गई कान्हाअरे कर,
अरे कर नैनन की ओट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

दूजी चोट बचाय गई कान्हाअरे कर,
अरे कर घूँघट की ओट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

तीजी चोट बचाय गई कान्हाअरे कर,
अरे कर लहँगा की ओट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

नन्दकिशोर वहीं जाय खेलोजहाँ मिले,
जहाँ मिले तुम्हारी जोट ओ रसियाहोली में मेरे लग जाएगी |

होरी खेले तो आ जइयो बरसाने रसिया होरी खेले तो- HORI KHELE TO AA JAIYO


होरी खेले तो आ जइयो बरसाने रसिया होरी खेले तो।


कोरे कोरे कलस मँगाए
केसरिया रंग इनमें घुलाए,
रंग रेले तो, होरी खेले तो, होरी खेले तो आ जइयो ----


भंग भी लइयो, बादाम भी लइयो

काली मिरच को जाम भी लइयो

भंग पेले तो, रंग रेले तो, होरी खेले तो,
होरी खेले तो आ जइयो ----

रंग भी लइयो, गुलाल भी लइयो


गोपी भी लइयो और ग्वाल भी लइयो


राधा मेले तो, भंग पेले तो, रंग रेले तो, होरी खेले तो,

होरी खेले तो आ जइयो ----

भर भर के पिचकारी मारूँ,
पागल हूँ, पागल कर डारूँ,
धक्का झेले तो, रंग रेले तो, राधा मेले तो, होरी खेले तो,
होरी खेले तो आ जइयो ----
(द्वारा रसिक पागल)