घर की जरूरतों ने मुसाफिर

 

ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की

आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है||

अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे

जिसकी जितनी जरूरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे ||

बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर

मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है ||

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका

चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना ||

ऐसा नहीं कि मुझमेंकोई ऐब नहीं है

पर सच कहता हूँ मुझमें कोई फरेब नहीं है||

सोचा था घर बनाकर बैठूँगा सुकून से

पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला मुझे ||

जीवन की भागदौड़ में क्यूँ वक्त के साथ रंगत खो जाती है ?

हँसती-खेलती जिन्दगी भी आम हो जाती है ||

एक सबेरा था जब हँसकर उठते थे हम

और आज कई बार बिना मुस्कुराए ही शाम हो जाती है||

कितने दूर निकल गए रिश्तों को निभाते-निभाते

खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते-पाते ||

लोग कहते हैं हम मुस्कुराते बहुत हैं

और हम थक गए दर्द छुपाते-छुपाते ||

खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ

लापरवाह हूँ ख़ुद के लिए मगर सबकी परवाह करता हूँ ||

मालूम है कोई मोल नहीं है मेरा फिर भीकुछ अनमोल लोगों से रिश्ते रखता हूँ।

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