रफ़्ता रफ़्ता वो मेरे हस्ती का सामां हो गए
पहले जां, फिर जान-ए-जांफिर जान-ए-जाना हो गएरफ़्ता...दिन-ब-दिन बढ़ती गईं, उस हुस्न की रानाइयां पहले गुल, फिर गुलबदन, फिर गुलबदाना हो गए रफ़्ता... आप तो नज़दीक से, नज़दीकतर आते गए पहले दिल, फिर दिलरुबा, फिर दिल के महमां हो गए रफ़्ता... प्यार जब हद से बढ़ा, सारे तकल्लुफ़ मिट गए आप से फिर तुम हुए, फिर तू का उनवा हो गएरफ़्ता...
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