कविता

 कितना अच्छा हो

जो मैं उसका तकिया

बन जाऊँ

उसकी हर साँस 

को महसूस कर पाऊँ

उसकी हंसी सुन पाऊँ

उसके अश्को को

समा लूँ खुद मैं

कभी उसकी बाहो में 

महफूज हो जाऊं

कभी उसके होंठो की

नरमी को महसूस कर पाऊँ

कितना अच्छा हो…


कितना अच्छा हो 

जो मैं हवा बन जाऊँ

जब भी मन करे

उसे अपनी गिरफ्त में

ले कर कस लूँ

जो कभी वो कांप जाए

उसे अपनी गर्माहट का

एहसास करा पाऊँ

जो कभी वो बेचैन

हो जाए

उसे अपनी

शीतलता दूँ

कितना अच्छा हो…


कितना अच्छा हो

जो मैं एक दरख्त 

हो जाऊं

मुझ पर बांधे

वो अपनी मन्नतो

का लाल धागा

कर ले आलिंगन मेरा

और मिल जाए मुझमे

जो हो जाए पूरी 

उसकी हर आस

फिर आए वो 

उस लाल धागे को

अपनी उंगलियों से खोलने

कितना अच्छा हो..


कितना अच्छा हो 

जो मैं एक मूरत बन जाऊँ

मुझमे ढूंढे वो अपने

इष्ट को

हर बार मेरे सजदे

में झुक जाए

रोज निहारे वो मुझे

रोज सँवारे मुझे

दूध ,दही रोज

मुझको भोग लगाएं

मेरी आँखों मे ढूंढे वो

अपने सारे जवाब

कितना अच्छा हो मैं

कृष्ण हो जाऊं

कितना अच्छा हो 

वो मेरी  बाँसुरी हो जाए ।


मीनाक्षी पाठक

आ जइयो श्याम बरसाने में

 आ जाइयो श्याम बरसाने गाँव


तोये होरी खूब खिलाय दूँगी


होरी को मजा चखाय दूँगी-2


संग लाइयो ग्वालन की टोली


सब छैल छबीले हम जोली


पीरो पटुका पगिया पीरो पीरी पोखर न्हवाय दूँगी, होरी को……


पहराय दऊँ लहँगा अरू चोली


निधरक खेलेगें हम होरी


चुरिया विछिया काजर बिदिंया पामन पायल पहराये दूँगी, होरी को…….


मेरी गली रँगीली अति प्यारी


होरी खेले श्यामा प्यारी


जब चले दुहत्था लट्ठ श्याम तोहे नानी याद दिलाय दूँगी, होरी को….


आय जइयो प्राणन के प्यारे


सखियन के नैनन के तारे


चित्रा संग सखिया विनय करै हियरा में तोहे बसाय लूँगी, होरी को…..

मालिक के दरवार में//MALI KE DARWAR ME SAB

 मेरे दाता के दरबार में, है सब का खाता

जितना जिसके लिखा भाग्य में, वो उतना ही पाता

रे पाता मेरे मालिक के दरबार मे रे

मेरे दाता के दरबार में

क्या साधू कया संत गृहस्थी, क्या राजा क्या रानी

प्रभु की पुस्तक में लिखी है, सब की कर्म कहानी

वही सभी के जमा खरच का सही हिसाब लगाता

लगाता मेरे मालिक के दरबार मे रे

मेरे दाता के दरबार में, हैं सब का खाता…

बड़े कड़े कानून प्रबु के बड़ी कड़ी मर्यादा

किसी को कोडी कम नही देता किसी को दमड़ी ज्यादा

इसलिए वो इस दुनिया का नगर सेठ कहलाता

कहलाता मेरे मालिक के दरबार मे रे

मेरे दाता के दरबार में, हैं सब का खाता…

करते हैं इन्साफ फैसले, प्रभु आकर के डट के

इनका फैसला कभी ना बदले, लाख कोई सर पटके

समझदार तो चुप रह ता हैं, मुर्ख शोर मचाता

मचाता मेरे मालिक के दरबार मे रे

मेरे दाता के दरबार में, हैं सब का खाता…

आछि करनी करो चतुरजन, कर्म ना करियो काला,

हज़ार आंख से देख रहा है, तुझे देखने वाला,

सूरदासजी युंह कहते है, समय गुजरता जाता

रे जाता मेरे मालिक के दरबार मे रे

मेरे दाता के दरबार में, हैं सब का खाता…

RACHA HE SHRISTI KO // रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है

इसी धरा से शरीर पाए,

इसी धरा में फिर सब समाए,
है सत्य नियम यही धरा का,
है सत्य नियम यही धरा का,
एक आ रहे है एक जा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

 
जिन्होने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
वही तो वापस बुला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

बैठे है जो धान की बालियो में,
समाए मेहंदी की लालियो में,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
गुल रंग बिरंगे खिला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥ 

 

बिन पिये नशा हो जाता है भोले

 

बिन पिये नशा हो जाता है जब सूरत देखू भोले की लिरिक्स 


बिन पिये नशा हो जाता है
जब सूरत देखू भोले की
उसके शीश पे चंदा विराज रह्या
चंदा की चांदनी में खो जाऊ
जब सूरत देखू भोले की
बिन पिये नशा हो जाता है
जब सूरत देखू भोले की
उसके गले में नाग विराज रह्या
नागा की लहर में खो जाऊ
जब सूरत देखू भोले की
बिन पिये नशा हो जाता है
जब सूरत देखू भोले की
उसके हाथ में डमरू विराज रह्या
डमरू की ताल में खो जाऊ
जब सूरत देखू भोले की
बिन पिये नशा हो जाता है
जब सूरत देखू भोले की
उसके पैरो में घुंघरू विराज रहे
घुंघरू की ताल में खो जाऊ
जब सूरत देखू भोले की
बिन पिये नशा हो जाता है
जब सूरत देखू भोले की

बिन पिये नशा हो जाता है// BIN PIYE NASHA HO JATA HAI

बिन पिये नशा हो जाता है

जो राधे राधे गाता  है

बिन पिये नशा हो जाता है
जब सुरत देखू मोहन की

मनमोहन मदन मुरारी है
जन जन का पालनहारी है
एह दिल उस पर ही आता है
जब.......

घुंघराली लट मुख पर लटके
कानो में कंडल है छलके
जब मन्द मन्द मुस्काता है
जब.......

अंदाज़ निराले है उनके
दुख दर्द मिटाये जीवन के
मेरा रोम रोम हर्षाता है
जब........

वानी में सरस विवार सरल
आंखो में है अंदाज़ उमंग
आनन्द नन्द बरसाता है
जब........

मेरे नैना लड़गये

नैना लड़ गए मेरे कुंज बिहारी से

उन्ही से नैना लड़ गए

मोरे नैना लड़ गये, हाय जी लड़ गए

नैना लड़ गए मेरे कुंज बिहारी से.....

बांके बिहारी से, कुञ्ज बिहारी से, रास बिहारी से,

मेरे नैना लड़ गए, हाय रे मेरे नैना लड़ गए।
नयना लड़ गए मेरे कुंज बिहारी से, उन्ही से नैना लड़ गए।
नैना लड़ गए, लड़ गए, लड़ गए,
मेरे नैना लड़ गए, हाय रे मेरे नैना लड़ गए॥

छवि देखि ऐसी वृन्दावन,
प्यारो रसिया मेरो मन भावन।
फ़ास्ट
मोर मुकुट पे अड़ गए,
यह तो अड़ गए, अड़ गए, अड़ गए,
मेरे नैना लड़ गए, हाय रे मेरे नैना लड़ गए॥

उन्ही से नैना लड़ गए

मोरे नैना लड़ गये, हाय जी लड़ गए

नैना लड़ गए मेरे कुंज बिहारी से.....

बांके बिहारी से, कुञ्ज बिहारी से, रास बिहारी से,


नयनो  में मेरे तेरी सूरत समाई,
कैसे भूली जाए श्याम, तेरी याद आई।
फ़ास्ट
बंसी के पीछे पड़ गए,
यह तो पड़ गए, पड़ गए, पड़ गए
मेरे नैना लड़ गए, हाय रे मेरे नैना लड़ गए॥

ऐसा क्यूँ प्यारे मुझपे जादू घेरे,
मोटे मोटे नयना तेरे, छोटे छोटे नयना मेरे।
फ़ास्ट
फिर भी ना जाने क्यूँ लड़ गए,
यह तो लड़ गए, लड़ गए, लड़ गए,
मेरे नैना लड़ गए, हाय रे मेरे नैना लड़ गए।