मेरे दाता के दरबार में, है सब का खाता
जितना जिसके लिखा भाग्य में, वो उतना ही पाता
रे पाता मेरे मालिक के दरबार मे रे
मेरे दाता के दरबार में
क्या साधू कया संत गृहस्थी, क्या राजा क्या रानी
प्रभु की पुस्तक में लिखी है, सब की कर्म कहानी
वही सभी के जमा खरच का सही हिसाब लगाता
लगाता मेरे मालिक के दरबार मे रे
मेरे दाता के दरबार में, हैं सब का खाता…
बड़े कड़े कानून प्रबु के बड़ी कड़ी मर्यादा
किसी को कोडी कम नही देता किसी को दमड़ी ज्यादा
इसलिए वो इस दुनिया का नगर सेठ कहलाता
कहलाता मेरे मालिक के दरबार मे रे
मेरे दाता के दरबार में, हैं सब का खाता…
करते हैं इन्साफ फैसले, प्रभु आकर के डट के
इनका फैसला कभी ना बदले, लाख कोई सर पटके
समझदार तो चुप रह ता हैं, मुर्ख शोर मचाता
मचाता मेरे मालिक के दरबार मे रे
मेरे दाता के दरबार में, हैं सब का खाता…
आछि करनी करो चतुरजन, कर्म ना करियो काला,
हज़ार आंख से देख रहा है, तुझे देखने वाला,
सूरदासजी युंह कहते है, समय गुजरता जाता
रे जाता मेरे मालिक के दरबार मे रे
मेरे दाता के दरबार में, हैं सब का खाता…