kabhi apne man ke bharose na rahna कभी अपने मन के भरोसे न रहना

कभी अपने मन के भरोसे न रहना

ये तन कीमती है मगर है विनाशी, कभी अगले क्षण के भरोसे न रहना।
निकल जाएगी छोड़ काया को पल में, सदा श्वास धन के भरोसे न रहना।। ये, तन कीमती है, मगर

एक क्षण में योगी, एक क्षण में भोगी, पलभर में ग्यानी पल में वियोगी।
बदलता जो क्षण -क्षण में  है वृत्ति अपनी, कभी अपने मन के भरोसे न रहना।। ये, तन कीमती है मगर

हम सोचते काम दुनियाँ के कर लें, धन-धाम अर्जित कर नाम कर लें।
फिर एक दिन बन के साधू रहेंगे, उस एक दिन के भरोसे न रहना।। ये, तन कीमती है, मगर

तुझको जो, मेरा- मेरा कहेंगे,जरूरी नहीं वह भी, तेरे रहेंगे....
मतलब से, मिलते है, दुनियाँ के, साथी, सदा इस मिलन के भरोसे न रहना.ये, तन कीमती है, मगर

"राजेश" अर्जित गुरु ज्ञान कर लो, या प्रेम से राम गुणगान कर लो।

वरना श्री राम नाम रटो नित नियम से, किसी अन्य गुण के भरोसे न रहना।। ये, तन कीमती है, मगर

EK VIDHATA HI NIRDOSH RAHA - एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥


 

एक विधाता ही बस निर्दोष रहा  

तर्ज -दिल का खिलौना हा टूट गया

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।
एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥
सब में कोई ना कोई दोष रहा ।
एक विधाता बस निर्दोष रहा । 

वेद शास्त्र का महापंडित ज्ञानी,

रावण था पर था अभिमानी,

शिव का भक्त भी सिया चुरा कर,

कर बैठा ऐसी नादानी,

राम से हरदम रोष रहा ।

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥


युधिष्टर धर्मपुत्र बलकारी,

उसमें ऐब जुए का भारी,

भरी सभा में द्रोपदी की भी,

चीखें सुनकर धर्म पुजारी,

बेबस और खामोश रहा ।

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥


विश्वामित्र ने तब की कमाई,

मेनका अप्सरा पर थी लुटाई,

दुर्वासा थे महा ऋषि पर,

उनमें भी थी एक बुराई,

हरदम क्रोध व जोश रहा ।

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥


सारा जग ही मृगतृष्णा है,

कौन यहां पर दोष बिना है,

नत्था सिंह में दोष हजारों,

जिसने सब का दोष गिना है,

फिर यह कहा निर्दोष रहा ।

सब में कोई ना कोई दोष रहा ।

एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥

मैंने भी अवगुण समझाए

में भी कहाँ निर्दोष रहा 

WO CHANDNI SA BADAN - वो चांदनी सा बदन ख़ुशबुओं

 वो चांदनी सा बदन

वो चांदनी सा बदन ,ख़ुशबुओं का साया है

बहुत अज़ीज़ हमें है, मगर पराया है

उतर भी आओ बस अब,  आसमाँ के ज़ीने से
तुम्हें ख़ुदा ने हमारे, लिये बनाया है

महक रही है ज़मीं, चांदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मुहब्बत पे मुस्कुराया है

उसे किसी की मुहब्बत का ऐतबार नहीं
उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है

तमाम उम्र मेरा दम उसके धुएँ से घुटा
वो इक चराग़ था मैंने उसे बुझाया है
  रचना -बसीर बद्र 

KOI LASHKAR HAI KI BADHTE HUYE GAM AA TE HAI - कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए ग़म आते हैं

 

कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए ग़म आते हैं

कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए ग़म आते हैं

शाम के साए बहुत तेज़ क़दम आते हैं

दिल वो दरवेश है जो आँख उठाता ही नहीं
इसके दरवाजे पे सौ अहले-करम आते हैं
 
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने कभी चाँदी के क़लम आते हैं

मैंने दो -चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीक़े मुझे कम आते हैं
 
ख़ूबसूरत-सा कोई हादसा आँखों में लिये
घर की दहलीज़ पे डरते हुए हम आते हैं
 रचना-बशीर बद्र  

YE KASAK DIL KI DIL ME JAMI RAH GAI ये कसक दिल की दिल

 ये कसक दिल की दिल  

ये कसक दिल की दिल में चुभी रह गई

ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई

एक मैं, एक तुम, एक दीवार थी
ज़िंदगी आधी-आधी बँटी रह गई

रात की भीगी-भीगी छतों की तरह
मेरी पलकों पे थोडी नमी रह गई

मैंने रोका नहीं वो चला भी गया
बेबसी दूर तक देखती रह गई

मेरे घर की तरफ धूप की पीठ थी
आते-आते इधर चाँदनी रह गई



TAKDEER BADAL JATI HAI तकदीर बदल जाती है



 तकदीर बदल जाती है बरसाना आने से,
बरसाना आने से राधा गुण गाने से,

बिन कारन करुना बरसावत प्रेम सो प्यारी दवार भुलावत,
जन्मो की प्यास जाती है दर्शन मिल जाने से,
बरसाना आने से राधा गुण गाने से,
तकदीर बदल जाती है 


मांगत भीख कृपा  की राधे,
तुम करुनामई प्रेम अगाधे ,
मुझे ब्रिज की याद आती है दरबार में आने से.
बरसाना आने से राधा गुण गाने से,
तकदीर बदल जाती है

जप ताप साधन, एक ना जानू,
ना कछु  पूजन की विधि जानू,
प्यारे की याद आती है राधा गुण गाने से,
बरसाना आने से राधा गुण गाने से,
तकदीर बदल जाती है 

तकदीर बदल जाती है वृद्धावन आने से,
वृन्दावन आने से वृन्दावन आने से,
तकदीर बदल जाती है वृद्धावन आने से,

वृन्दावन में बांके बिहारी राधा वल्लभ की छवि प्यारी,
दर्शन पाने से तकदीर बदल जाती है वृद्धावन आने से,

घर  घर तुलसी ठाकुर सेवा माखन मिश्री दूध का लेवा,
भोग लगाने से तकदीर बदल जाती है वृद्धावन आने से,

वृन्दावन में यमुना मइयां,मधुर मधुर कदमन की छइयां,
यमुना नहाने से यमुना नहाने से,
तकदीर बदल जाती है वृद्धावन आने से,

आपसे.......



गज़ल 


शुष्क जीवन हुआ है सजल आपसे

भाग्य मेरा हुआ है प्रबल आपसे


अब तो जो कुछ लिखूँ कथ्य बस आप हैं

मेरे मुक्तक,रुबाई,ग़ज़ल आपसे


आपकी दो भुजाएँ किनारे मेरे

और मै हूँ नदी इक धवल आपसे

 

राशिफल क्यों पढूँ अपना अख़बार में

आज है आपसे और कल आपसे


आपको जब निहारा तो खिल खिल गयी

नैन मेरे हुए हैं कमल आपसे


एक से थे दिवस एक सी थी निशा

किन्तु अब हर घड़ी है नवल आपसे 

 

मेरी मेहंदी में हों ख़ुशबुयें आपकी

माँगती हूँ वचन ये अटल आपसे


~सोनरूपा