एक विधाता ही बस निर्दोष रहा
तर्ज -दिल का खिलौना हा टूट गया
एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥
सब में कोई ना कोई दोष रहा ।
एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥
सब में कोई ना कोई दोष रहा ।
एक विधाता बस निर्दोष रहा ।
वेद शास्त्र का महापंडित ज्ञानी,
रावण था पर था अभिमानी,
शिव का भक्त भी सिया चुरा कर,
कर बैठा ऐसी नादानी,
राम से हरदम रोष रहा ।
सब में कोई ना कोई दोष रहा ।
एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥
युधिष्टर धर्मपुत्र बलकारी,
उसमें ऐब जुए का भारी,
भरी सभा में द्रोपदी की भी,
चीखें सुनकर धर्म पुजारी,
बेबस और खामोश रहा ।
सब में कोई ना कोई दोष रहा ।
एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥
विश्वामित्र ने तब की कमाई,
मेनका अप्सरा पर थी लुटाई,
दुर्वासा थे महा ऋषि पर,
उनमें भी थी एक बुराई,
हरदम क्रोध व जोश रहा ।
सब में कोई ना कोई दोष रहा ।
एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥
सारा जग ही मृगतृष्णा है,
कौन यहां पर दोष बिना है,
नत्था सिंह में दोष हजारों,
जिसने सब का दोष गिना है,
फिर यह कहा निर्दोष रहा ।
सब में कोई ना कोई दोष रहा ।
एक विधाता बस निर्दोष रहा ॥
मैंने भी अवगुण समझाए
में भी कहाँ निर्दोष रहा
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