VRINDAVAN JAUNGI- MERE UTHE VIRAH - मेरे उठे विरह की पीर

 सब द्वारन को छोड़ के,

श्यामा आई तेरे द्वार,
श्री वृषभान की लाड़ली,
मेरी और निहार।

मेरे उठे विरह में पीड़,
सखी वृन्दावन जाउंगी,
मुरली बाजे यमुना तीर,
सखी वृन्दावन जाउंगी।।

श्याम सलोनी सूरत पे,
दीवानी हो गई,
अब कैसे धारू धीर सखी,
सखी वृन्दावन जाउंगी।।

छोड़ दिया मेने भोजन पानी,
श्याम की याद में,
मेरे नैनन बरसे नीर,
सखी वृन्दावन जाउंगी।।

इस दुनिया के रिश्ते नाते,
सब ही तोड़ दिए,
तुझे कैसे दिखाऊं दिल चिर,
सखी वृन्दावन जाउंगी।।

नैन लड़े मेरे गिरधारी से,
बावरी हो गई,
दुनिया से हो गई अंजानी,
सखी वृन्दावन जाउंगी।।

मेरे उठे विरह में पीड़,
सखी वृन्दावन जाउंगी,
मुरली बाजे यमुना तीर,
सखी वृन्दावन जाउंगी।।


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