mohabbat se mohabbat ka मोहब्बत से मोहब्बत का तकाजा क्यों किया तुमने

 हमसे वादा तो वफाओं का किया जाता है
वक्त पड़ने पर मुंह फेर लिया जाता है
तेरी महफिल का अंदाज ही अलग है साकी
यारा मुंह देख के पैमाना दिया जाता है
रूहें यूँ तन के लिबासों में बसर करती हैं
चिट्टियां जैसे लिफाफे में बसर करती है
 कल तेरी याद  ने हीं बताया मुझको
तेरी नींदे मेरे ख्वाबों में बसर करती है
मोहब्बत से मोहब्बत का तकाजा क्यों किया तुमने
झुकी नज़रों से मिलने का इशारा क्यों किया तुमने
मेरा दिल तो नहीं टूटा मेरे जज्बात टूटे हैं
नआना था नहीं आते ये वादा क्यों किया तुमने
मेरी मंजिल मोहब्बत है तुम्हारी भूख है दुनिया
मोहब्बत कर नहीं सकते
तमाशा क्यों किया तुमने
जो तुमने हाथ पकड़ा था तो
कुछ दूर भी चलते
सफर आसान हो जाता
किनारा क्यों किया तुमने
जो मां का दिल दुखाते हैं
उन्हीं से पूछता हूं मैं
ये जन्नत छोड़ कर दोजख का
 सौदा क्यों किया करो

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