padharo mehfil me tum gori ke lala पधारो महफिल में तुम गौरा के लाला

 प्रथम गजानंद पूजिए,जिनसे होती सब काम!
आन विराजो महफिल में, मेरी बिगड़ी बना दो बात!
गणेश को प्रणाम,महादेव को प्रणाम है !
इस ठोर को प्रणाम गुरुदेव को प्रणाम है !
साज को प्रणाम,सब समाज को प्रणाम है!
वृंदावन के बसैया,श्री कृष्ण को प्रणाम है!
गुरूमूर्ति मुख चंद्रमा,सेवक नयन चकोर!
अष्ट प्रहर नखत रहूं, श्री गुरु चरणन की ओर!
गौरी के लाला तेरा .....बोलबाला
पधारो महफिल में तुम गौरा के लाला !
रिद्धि सिद्धि के तुम हो दाता,भक्त जनों के भाग्य विधाता!
 दरश से हमें देना तुम, गोरी के लाला !
पधारो महफिल में तुम गौरा के लाला !
गोरा की आंखों के तारे ,भक्तजनों के हो राज दुलारे !
शंकर को लेकर आना -भोले को लेकर आना,
तुम गोरा के लाला !
पधारो महफिल में तुम,गौरा के लाला
आज महफिल में मैं,तुमको मनाऊं!
आज महफिल में हम तुमको बुलाएं,
आरती वंदन कर शीश झुकाऊं,
 सम्मति को लेकर आना
 रिद्धि सिद्धि को लाना
 सुख संपति को लाना
तुम गोरा के लाला पधारो
महफिल में तुम गोरा के लाला

गोरी के लाला रखियो जी रखियो माहरी लाज जी,

 


गोरी के लाला रखियो जी रखियो माहरी लाज जी,
हाथ जोड़ थारी करू वंदना सुन लीजियो महाराज जी,
गोरी के लाला रखियो जी रखियो माहरी लाज जी,

इक दंत देया वंत कहावो महिमा थारी भारी,
चार भुजा मते तिलक विराजे शोभा सब से न्यारी,
करो सवारी मुश्क की थे देवो के सरताज जी,
गोरी के लाला रखियो जी रखियो माहरी लाज जी,

ध्यान धरे जो प्रथम तिहारो मन वंचित फल पावे,
मिट जावे सब विघन विनाछक रिधि सीधी घर आवे,
सब की नियाँ पार करो  माने करियो भव सु पार जी,
गोरी के लाला रखियो जी रखियो माहरी लाज जी,

पूजा पाठ ना आवे  कोई कैसे तुम्हे मनाऊ,
अवगुण माहरे ध्यान ना धरियों चरनन शीश निभाऊ,
प्रीत सदा चरनन की पाऊ दीजियो  मोहे वरदान जी,
गोरी के लाला रखियो जी रखियो माहरी लाज जी,

न जाने कौन से गुण पर दया निधि

 प्रबल प्रेम के पाले पड़ कर प्रभु को नियम बदलते देखा .

अपना मान भले टल जाये भक्त मान नहीं टलते देखा ..

ना जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही सद् ग्रंथ कहते हैं, यही हरि भक्त गाते हैं ॥

नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप सुयोधन का ।
विदुर के घर पहुँचकर भोग छिलकों का लगाते हैं ॥

न आये मधुपुरी से गोपियों की दु:ख व्यथा सुनकर।
द्रुपदजा की दशा पर, द्वारका से दौड़े आते हैं ॥

न रोये बन गमन में श्री पिता की वेदनाओं पर ।
उठा कर गीध को निज गोद में आँसु बहाते हैं ॥

कि जाने कौन से गुण पर, दयानिधि रीझ जाते हैं ।
यही सद् ग्रंथ कहते हैं, यही हरि भक्त गाते हैं ॥

नहीं स्वीकार करते हैं, निमंत्रण नृप दुर्योधन का ।
विदुर के घर पहुँचकर, भोग छिलकों का लगाते हैं ॥

न आये मधुपुरी से गोपियों की, दु: ख कथा सुनकर ।
द्रुपदजा की दशा पर, द्वारका से दौड़े आते हैं ॥

न रोये बन गमन में , श्री पिता की वेदनाओं पर ।
उठा कर गीध को निज गोद में , आँसु बहाते हैं ॥

कठिनता से चरण धोकर मिले कुछ 'बिन्दु' विधि हर को ।
वो चरणोदक स्वयं केवट के घर जाकर लुटाते हैं ॥

राम भक्त ले चला रे राम की निशानी

 

राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
प्रभु कर कृपा पावँरी दीन्हि
सादर भरत शीश धरी लीन्ही
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी (राम भक्त ले चला रे राम की निशानी)
शीश पर खड़ाऊँ अखियुं में पानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी निशानी (राम भक्त ले चला रे राम की निशानी)
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
शीश खड़ाऊ ले चला ऐसे
राम सिया जी संग हो जैसे
अब इनकी छाँव में रहेगी राजधानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी निशानी (राम भक्त ले चला रे राम की निशानी)
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
एक दिन तुम मुझे छोड़ कर चली गयी थी
आज मे तुझे छोड़ कर जा रहा हू
पल छिन लागे सदिओं जैसे चौदह बरस कटेंगे कैसे
जाने समय क्या खेल रचेगा कौन मरेगा कौन बचेगा
कब रे मिलन के फूल खिलेंगे नदियाँ के दो फूल मिलेंगे
जी करता है यही बस जाए
हिल मिल चौदह बरस बिताए
राम बिन कठिन है एक घड़ी बितानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी (राम भक्त ले चला रे राम की निशानी)
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
तन मन बचन उमंगी अनुरागा
धीर धुरंधर धीरज त्यागा
भावना में बह चले धीर वीर ज्ञानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी
शीश पर खड़ाऊँ अखियुं में पानी
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी (राम भक्त ले चला रे राम की निशानी)
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी

शबरी संवार रास्ता

 शबरी संवार रास्ता आयेंगे राम जी 

शबरी संवार रास्ता आयेंगे राम जी

मेरा भी धन्य जीवन बनायेंगे रामजी

आँखों से रोज अपनि राहे बुहारती
कांटे लगे ना कोई कोमल है राम जी
शबरी संवार रास्ता आयेंगे राम जी

डलिया में बेर बागो से चुन चुन के ला रही
खट्टे हो चाहे मीठे खायेंगे राम जी
शबरी संवार रास्ता आयेंगे राम जी

आये जब श्री राम जी चरणों में गिर पड़ी
अंसुअन से धो रही है चरणों को राम जी
शबरी संवार रास्ता आयेंगे राम जी

सुन्दर बिछा के आसन बैठाया राम को
दिया कंद मूल लाकर खाए है राम जी
शबरी संवार रास्ता आयेंगे राम जी

शबरी संवार रास्ता आयेंगे राम जी
मेरा भी धन्य जीवन बनायेंगे रामजी


 

है जिंदगी कितनी खूबसूरत जिन्हें अभी ये पता नही हैं

 है जिंदगी कितनी खूबसूरत  

जिन्हें अभी ये पता नही हैं 

कोई बहुत प्यार करने वाला 

जिन्हें अभी मिला नही हैं ।। 

है जिंदगी कितनी खूबसूरत  

जिन्हें अभी ये पता नही हैं 

कोई बहुत प्यार करने वाला 

जिन्हें अभी मिला नही हैं ।।

चले जो आंधी वो तिनका तिनका 

बिखर जाए आसिया गम नही हैं 

चले जो आंधी वो तिनका तिनका 

बिखर आसिया गम नही हैं 

जो तोड़ दे मेरे हौसलो को  

अभी तूफा उठा नहीं हैं 

है जिंदगी कितनी खूबसूरत  

जिन्हें अभी ये पता नही हैं....।।

हमे तो मतलब है सिर्फ तुमसे 

हमारे दिल मे तू ही तू है 

हमे तो मतलब है सिर्फ तुमसे 

हमारे दिल मे तू ही तू है 

तुमसे मोहब्बत तुमसे शिकायत 

और किसी से गिला नही हैं 

है जिंदगी कितनी खूबसूरत  

जिन्हें अभी ये पता नही हैं....।।

मेरी निगाओ से दूर मत जा 

सुकुनै दिल बंदिल में समाजा 

मेरी निगाओ से दूर मत जा 

सुकुनै दिल बंदिल में समाजा 

हे कह रही हैं हर एक धङकन 

तेरा बिना कुछ मजा नही हैं ।। 

है जिंदगी कितनी खूबसूरत  

जिन्हें अभी ये पता नही हैं.... ।।

है जिंदगी कितनी खूबसूरत  

जिन्हें अभी ये पता नही हैं 

कोई बहुत प्यार करने वाला 

जिन्हें अभी मिला नही हैं ।।

BRAJ KE SAWAIYAA ब्रज के सवैया - 3

 

अनमोल सवैया व दोहा,

1.कहे सन्त सगराम सुण ए,
धन री धणीयाणी,
सुकरत कर भज राम,
धोय कर बहते पाणी।
बहते जळ कर धोयले,
मौकों दियो महाराज,
कारज करले जीव रो,
करणो हैं सो आज।
करणो हैं सो आज,
काल री कोई न जाणी,
कहे सन्त सगराम सुण ए,
धन री धणीयाणी।।


2.छह साँसो की एक पल,
घड़ी एक पल साठ,
आठ घड़ी का एक पहर,
सगराम दास कहे आठ।
सांस सौ भर सातो ही,
अठहत्तर करोड़,
चौरासी लाख मिटाई,
भजन बिना सब खोय दिया,
अक्ल बायरी टाट।
छह साँसो की एक पल,
घड़ी एक पल साठ।।


3.सो विरला संसार,
सभा में बोले मीठा,
सो विरला संसार,
देख कर करे अदीठा।
सो विरला संसार केयो,
अण केयो सम्भाले।
सो विरला संसार,
प्रीत निर्धन सू पाले।
जग जीवण रण थंभणा,
बच चाले पर नार,
कवि गिरधर कहे रे गुणीजणा,
वे लाधे विरला ही संसार।।


4.एक सूम सत हीन ज्याको,
थू द्रव समर्पियो,
सूर औऱ दातार ज्याको प्रभु,
थे निर्धन कर थरपियो।
काळी कुचाल कुलखणी नार,
ज्याने भर चंचल लादो,
सुंदर और सुशील नार,
ज्यारें संग लफरी बांध्यो।
नागर बेल निर्फल करी.
और तूम्बा बेल अकारणा,
कवि गीध कहे किरतार ने,
तू भूल गयो रे भव तारणा।।


5.कही कही गोपाल की,
भई चौगुणी भूल,
काबुल में मेवा किया,
प्रभु बृज में किया बबूल।।


6.कठिन प्रीत की रीत,
कठिन तन मन वश करणो,
कठिन योग जुग ध्यान,
कठिन भव सागर तिरणो।
कठिन धर्म प्रतिपाल,
कठिन संकट में समता,
कठिन हैं पर उपकार,
कठिन मन मारण ममता।
वचन निभावणो हैं कठिन,
औऱ निर्धन सू नेह राखणो कठिन,
कवि बेताल कहे सुण विक्रमा,
ज्ञान युध्द जीतणो हैं अति कठिन।।


7.अरे प्रभु किसा छुणाउ महल,
महल गिरि मेरू कहावे,
किसा जु गाउ गुणगान,
गुण जो गांधर्व गावे।
मेलु किसो धनमाल,
श्री जी चरणों आगे,
किसा पखारु चरण,
चरण नख गंगा लागे।
किसा पुष्प चढ़ाऊँ,
सिर पर पारिजात वृक्ष तुज घरे,
राजाधिराज गिरिराज जो,
कवि ईसर थारी सेवा करे।।


8.कहे सन्त सगराम,
धणी सुण रे माया रा,
कर सुकरत भज राम,
भला दिन आया थारा।
दिन थारा आया भला,
चूक मती इण बार,
धन धरियो रह जावसी,
तनड़ों होसी क्षार।
तन हो जासी क्षार,
धोय कर बहती धारा,
कहे सन्त सगराम,
धणी सुण रे माया रा।।


9.राम छाप निर्वाण हैं औऱ,
के नाम की छापा सब झूठी,
राम को नाम हिरदे धरले भाई,
राम के नाम की बाँधलो पूठी।
राम के नाम से पत्थर तिर गया,
और तैतीसौ की बंदगी छूटी,
कहत कमाल कबीर सा,
की लड़की यू देखत देखत लंका लूटी।।


10.राम के नाम पहाड़ तिरे,
अहेल्या तरी पग की रज रे,
पाण्डु नार को चीर अनन्ता बढियो,
जळ डूबत राख लियो गज रे।
तोड़ सरासर दो टुकड़ा किया,
मिथिलेश की राख लीवी लज रे,
जिनकी रिछपाल गोपाल करे,
उनको बलभद्र कहाँ डर रे।।


11.दया गरीबी बंदगी,
समता शील सुजान,
ए ते लक्षण सन्त के,
कहत कबीर सूजान।।


12.दीन कहे धनवान सुखी,
धनवान कहे सुख राजा को भारी,
राजा कहे महाराजा सुखी,
महाराज कहे सुख इन्द्र को भारी।
इन्द्र कहे ब्रह्मा सुखी,
ब्रह्मा कहे सुख विष्णु को भारी,
तुलसीदास विचार करे,
हरी भजन बिना सब जीव दुखियारी।।


13.अल्प अवधि ज्यामे,
भ्रम को जंजाल बहुत,
करने को बहुत कुछ,
कहा कहा कीजिये।
काव्य की कला अनंत,
छन्द को प्रबन्ध बहु,
वाणी तो अनेक चित,
कहाँ कहाँ दीजिये।
पार न पुराण इको,
वेद उको अंत नाही,
राग तो रसीली रस,
कहाँ कहाँ पीजिये।
सौ बातों री बात एक,
तुलसी यू पुकारें जात,
जन्म सुधारणो हैं तो,
राम राम कीजिये।।


14.सतगुरु मिले सुजान,
श्रवण निज शब्द सुणायो।
सिर पर धरियो हाथ,
भ्रम सब दूर भगायो।
हिरदे सु उपज्यो ज्ञान,
ज्ञान उर अंदर लागो,
कियो ब्रह्म से नेह,
जगत से तोड़ियो तागों।
रामचरण यू पाविये तू बन्दा,
छूटेला वाद विवाद ते,
सुन्दरदास सुखी भये,
यू गुरु दादू प्रसाद ते।।


15.नमो श्री गुरु देवाय,
नमो सतगुरु देव,
नमो कर्ता अविनाशी,
अनंत करोड़ हरि भक्त नाथ,
नव सिद् चौरासी।
नमो पीर पैग़म्बरा,
ब्रह्मा विष्णु महेश को,
धरा गगन अगन पवन जळ,
नमो चाँद दिनेश को।।


16.एक वोही नाम तारण,
करो उसको धारण,
जो निवारण करेगो।
एक वोही नाम तारण,
सभी काम सारण,
धरो उसको धारण,
जो निवारण करेगो।
नथा दन्त बाकु,
दिया दूध माँ कु,
खबर हैं खुदा कु,
सबर जो करेगो।
तेरा ढूंढ सीना,
मिटे दिल का कीना,
जिन ये पेट दीना,
वो आप ही भरेगो।
मुरादम कहे रे भाई,
मुकनंदर के अंदर,
जिन्हें टांक मारी,
न टारी टरेगो।।


17.गूढ़ की बात को,
मूढ़ क्या जानत,
कुम्भ क्या जानत,
स्वेत जगह को।
प्रीत की रीत अतीत,
क्या जानत,
भैंस क्या जानत,
खेत सगा को।
बट की बात को,
जट क्या जानत,
गेला क्या जानत,
पाय लगा को।
गंग कहे गुण वान सुणो भाई,
खर क्या जाने नीर गंगा को।।


18. दया का होसी नाश,
धर्म वो जाय धरण में,
पुण्य गयो पाताल,
पाप भव वर्ण वर्ण में।
अब तो राजा न करे जग न्याव,
प्रजा संग होत खवारी।
घर घर होसी देव,
उबा नरत करे नर नारी,
उल्टो दत राजा मांगे,
शील संतोष किथे गयो।
कवि बेताल कहे,
सुणो विक्रम समझलो कि,
अब कलजुग प्रगट भयो।।


19.शब्द बराबर धन नहीं,
शब्द बराबर तोल,
हीरा तो दामों बिके,
शब्दों रो कोई तोल न मोल।।


20.कोई करे उपवास,
कोई अन्न खाय आलूणा,
कोई खावे फळकन्द,
कोई बोले केई उनमुना।
कोई ठंडे सिर राख,
कोई उंदे सिर झूले,
मनड़ों तो करे कुश्ती,
इतरा तो मोक्ष मार्ग ने भूले।
भेक लियो अर भ्रम नहीं भागो,
फिर फिर करत बकवास हैं,
कहे प्रेम मुनि,
निज आत्म ज्ञान बिना तो,
ए सब माया रा दास हैं।।


21.जड़ी बूटी जो कोई,
मुल्ला बणावे,
कोई भष्म बीच जाय,
श्मसान जगावे,
कोई तापे पंच धूणी,
बतावे मन री हुली अर हूणी।
आसन मार आस न मरी,
सहत भूख और प्यास हैं,
कहे प्रेम मुनि भाई रे,
निज आत्म ज्ञान बिना,
ए सब माया रा दास हैं।।


22.कुम्भ में कूप समात नहीं,
सुत सिंधु समस्त चळू भरहे,
गणिका सुत पद रघुनाथ गुरु,
झिवरी सुत वेद ह्रदय धरहे।
मकड़ी सुत चिरंजीव मारकण्डेय,
दासी सुत विधुर कृपा धरहे।
सुत होत बड़ो अपनी करणी,
पृथु वंश बड़ो तो कहा करहे।