कहीँ मान प्रतिष्ठा मिले न मिले, अपमान गले सो बाँधना पड़े।
जल भोजन की परवाह नहीँ, करके व्रत जन्म गँवाना पड़े।
अभिलाषा नही सुख की कुछ भी, दुःख नित्य नवीन उठाना पड़े।
ब्रज भूमि के बाहर किन्तु प्रभो, हमको कभी भूल न जाना पड़े।।
तू करूना मई सरकार तुम्हारा ब्रज मे अवतार न होता ।
तो रसिकंन का कोई आधार नहीं होता
ब्रिज राज से नाता जुड़ा जब है तो किया जग की परवाह करे,
बस याद में उनकी रोते रहे निरंतर अशरु परवाह करे,
जितने वोह दूर भागे हमसे उतनी दुनी हम चाह करे,
किया अद्भुत सुख इस प्रेम में है हम आह करे वो वाह करे,
मान सम्मान है ओर कीर्ति महान है
राधा जी की जय जय सारी दुनिया मे छाई है
धन्य भूमि जो होंटों से चूमी है
बार बार ब्रिष भानु जी आप को बधाई है
कन्हैया को एक रोज रोकर पुकारा,
कहा उनसे जैसा हूँ अब हूँ तुम्हारा।वो बोले साधन किये तूने क्या है,
मैं बोला किसे तुमने साधन से तारा।
वो बोले कि दुनिया में आकर किया कुछ,
मैं बोला कि अब भेजना मत दुबारा।
वो बोले परेशां हूँ तेरी बहस से,
मैं बोला ये कहदो तू जीता मैं हारा।
वो बोले कि जरिया तेरा क्या है मुझ तक,
मैं बोला कि दृग ‘बिन्दु’ का है सहारा।
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