बूटी हरि के नाम की सबको पिलाके पी ।
चितवन को चित के चोर से चित को चुराके पी ॥
अंतरा
पीने की तमन्ना है तो खुद मिटाके पी ।
ब्रम्हा ने चारो वेदों की पुस्तक बनाके पी ॥ बूटी ॥
शंकर ने अपने शीश पे गंगा चढ़ाके पी।
ठोकर से श्री राम ने पत्थर जगाके पी ।
बजरंग बली ने रावण की लंका जलाके पी ॥ बूटी ॥
पृथ्वी का भार शेष के सिर पर उठाके पी ।
बालि ने चोट बाण की सीने पर खाके पी ॥ बूटी ॥
अर्जुन ने ज्ञान गीता का अमृत बनाके पी ।
श्री जी बाबा ने भक्तों को भागवत सुनाके पी ॥ बूटी ॥
संतो ने ज्ञान सागर को गागर बनाके पी ।
भक्तों ने गुरु चरण रज मस्तक लगाके पी ॥ बूटी ॥
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बूटी हरि के नाम की buti hari ke nam ki
यह हर्ष हवस की मंडी है
कोई आए कोई जाए ये तमाशा क्या है
मैं तो समझा नहीं यह महफिल ए दुनिया क्या है
यह हर्ष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
कागज के कड़क के नोटों पर
दुनिया के चमन बिक जाते हैं
ये हर्ष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
हर चीज यहां पर बिकती है
हर चीज का सौदा होता है
इज्जत भी बेची जाती है
ईमान खरीदे जाते हैं
यह हरष हबस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
बिकते हैं मुल्लों के सजदे
पंडित के भजन बिक जाते हैं
बिकती है दुल्हन की रातें
मुर्दों के कफन बिक जाते हैं
यह हरष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
यह हर्ष हवस की मंडी है
अनमोल रतन बिक जाते हैं
कागज के कड़क के नोटों पर
दुनिया के चमन बिक जाते हैं
ये इश्क़ हवस की मंडी है , अनमोल रतन बिक जाते है ,
मुल्लाओ के सजदे बिकते है ,पंडित के भजन बिक जाते है
मंदिर भी यहाँ पर बिकता है , मस्जिद भी ख़रीदी जाती है चाँदी के खनकते सिक्कों पर ,शायर के शकुन बिक जाते है
बिकती है सुहाग की रात यहाँ , दुल्हन के चलन बिक जाते है
दुनिया के चलन का ज़िक्र ही क्या , मुर्दों के कफ़न बिक जाते है।
SHYAM MAKHAN CHURATE श्याम माखन चुराते चुराते
श्याम माखन चुराते चुराते, अब तो दिल भी चुराने लगे है।
वो बहाना बनाते बनाते ,अब दीवाना बनाने लगे है।।
पहले गऊऐ चराते थे वन में ,मस्त रहते थे मुरली की धुन में।
अब वो ग्वालो की टोली बनाके,रोज़ पनघट पे आने लगे है।।
श्याम माखन चुराते चुराते, अब तो दिल भी चुराने लगें हैं |
राधा रानी को ले कर कन्हिया, अब तो रास रचाने लगें हैं ||
देवकी के गर्भ से जो जाए, माँ यशोदा के लाल कहाए |
ग्वाल बालों के संग मे कन्हिया, अब तो गौए चराने लगें हैं ||
मोह ब्रह्मा का जिस ने घटाया, मान इन्द्र का जिस ने मिटाया |
स्वम बन कर पुजारी कन्हिया, अब तो गिरिवर पूजाने लगें है ||
श्याम ने ऐसी वंसी बजायी, तान सखिओं के दिल मे समायी |
राधा रानी को ले कर कन्हिया, रास मधुवन रचाने लगें है ||
दीन बंधु ज़माने के दाता, संत भक्तो के है जो विधाता |
दया ले कर शरण राधा रानी की, उनका गुणगान गाने लगें है ||
jo prem gali जो प्रेम गली में
जो प्रेम गली में आये नही,
प्रीतम का ठिकाना क्या जाने,
जिसने कभी प्रीत लगाई नही,
वह प्रेम निभाना क्या जाने,
जो प्रेम गली में आये नही,
प्रीतम का ठिकाना क्या जाने।
जो वेद पढ़े और भेद करे,
मन में नही निर्मलता आई।
कोई कितना चाहे ज्ञानी बने,
भगवान को पाना क्या जाने।
जो प्रेम गली में आये नही,
प्रीतम का ठिकाना क्या जाने।
यह दुनिया गोरख धंधा है,
सब जग माया में अंधा है।
जिस अंधे ने प्रभु को देखा नही,
वह रूप बखाना क्या जाने।
जो प्रेम गली में आये नही,
प्रीतम का ठिकाना क्या जाने।
जिस दिल में ना पैदा दर्द हुआ,
वह पीर पराई क्या जाने,
जो प्रेम गली में आये नही,
प्रीतम का ठिकाना क्या जाने।
मीरा है दीवानी मोहन की,
संसार दीवाना क्या जाने।
जो प्रेम गली में आये नही,
प्रीतम का ठिकाना क्या जाने।
आवारा हवा का झोंका हू
भजन प्रभु का सुमिरन करले स्वर्ग तुझे मिल जाएगा
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